प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
भाग - 12
दसवीं चौपाई।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला : दसवीं चौपाई |
श्री हनुमान चालीसा शृंखला की इस चौपाई में हनुमान जी के एक महत्वपूर्ण कार्य को याद किया गया है। जब श्री जानकी का लंकाधिपति रावण ने हरण कर लिया तो वानर सेना को सीता जी का पता लगाने के लिए चारों दिशाओं में भेजा गया। वहां संपाति, जो जटायु के भाई थे; ने बताया कि रावण जानकी जी को लेकर दक्षिण दिशा में गया है।
तब जांबवंत के समझाने और हनुमान जी का बल स्मरण कराने पर हनुमान जी लंका जाने पर तैयार हो गए। बल स्मरण कराने के क्रम में गोस्वामी तुलसीदास ने श्री रामचरितमानस में लिखा है -
कवन सो काज कठिन जग माहीं।
जो नहिं होय तात तुम पाहीं।।
हनुमान चालीसा की इस चौपाई में यह बताया गया है कि उन्होंने भगवान श्रीराम द्वारा दी गई चिन्हारी मुद्रिका अपने मुंह में दबाई और समुद्र लांघ गए। यह सब इतना क्षिप्र गति से हुआ कि किसी किसी को समझ में ही नहीं आया।
तुलसीदास जी ने हनुमान जी के माहात्म्य को याद करते हुए इस चौपाई में यह भी जोड़ दिया है कि हनुमान जी की शक्तियों को देखते हुए इस काम के हो जाने में कोई आश्चर्य नहीं करना चाहिए। यह हनुमान जी के लिए बहुत सहज कार्य था। श्री हनुमान चालीसा में हनुमान जी का माहात्म्य बहुत प्रखर तरीके से व्यक्त हुआ है।
श्री हनुमान चालीसा के इस चौपाई में हनुमान जी के सम्बन्ध में यह भी कहा गया है कि दुनिया के जितने भी दुर्गम काम हैं, वह सब हनुमान जी के अनुग्रह यानी कृपा से संपन्न हो जाते हैं। दुर्गम का अर्थ है जहां जाना कठिन हो, जिसे करना कठिन हो। हनुमान जी उन सभी कार्यों को सुगम कर देते हैं जो दुर्गम हैं। हनुमान जी का अनुग्रह, कृपा प्राप्त हो जाए तो कठिन से कठिन कार्य आसान हो जाते हैं। यह कृपा कैसे प्राप्त हो? इसके लिए आवश्यक है कि हनुमान जी के श्रीचरणों में ध्यान लगा रहे। हम श्री हनुमान चालीसा का नियमित पाठ करें और हनुमान जी में अपनी भक्ति बनाए रखें।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला : दसवीं चौपाई |
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