जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मँह डेरा॥
भाग- 22
बीसवीं चौपाई।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। |
श्री हनुमान चालीसा पाठ सिद्धिदायक है। हनुमान जी अष्ट सिद्धि के दाता हैं, यह वरदान उन्हें माता जानकी ने दे रखा है। अष्ट सिद्धि नौ निधि पर हमने विस्तार से चर्चा की है। श्री हनुमान चालीसा को पढ़ने से सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं, यह बात इस चौपाई में कही गई है और इसके लिए यह भी कहा गया है कि इस बात की साक्षी स्वयं गौरी पार्वती हैं। उन्होंने इस चौपाई में स्वयं को भगवान का सदा सदा से चेरा अर्थात सेवक माना है और प्रार्थना की है कि श्री भगवान जी हमेशा उनके हृदय में निवास करें। हम जानते हैं कि हनुमान चालीसा लिखने की प्रेरणा तुलसीदास जी को भगवान शिव के कहने से मिली थी। यह हनुमान चालीसा पढ़ना प्रभावकारी है, इसकी साक्षी स्वयं माता पार्वती हैं।
तुलसीदास जी ने सामान्य मानवी पर विश्वास जताने के लिए इस वाक्य की योजना की है। जिस बात का साक्ष्य स्वयं माता पार्वती हैं, उसमें अविश्वास करने का कोई कारण नहीं हो सकता।
यह श्री हनुमान चालीसा की अंतिम चौपाई है। सभी कवियों की तरह तुलसीदास जी इस पंक्ति में अपनी छाप के साथ हैं। तुलसीदास का नाम तुलसी ही था किंतु भगवान से भक्ति और स्वयं को सेवक मानने के उनके आग्रह को देखते हुए उनके नाम के साथ ही दास शब्द जुड़ गया। जब यह संज्ञा में परिवर्तित हो गया तो तुलसी ने अपने सेवक रूप को पृथक प्रकट किया और इसी भाव को धारण किया। वह रघुकुल शिरोमणि श्रीरामचंद्र जी के सदा सदा से सेवक बनकर रहना चाहते हैं।
भगवान के भक्त के लिए इससे सुघड़ और उच्च भाव नहीं हो सकता कि वह श्री हरि के सबसे निकट के सेवक बनें। चूंकि भगवान की लीलाओं के भगवान के निकट के संबंधी किसी न किसी के अवतार हैं, इसलिए उसमें सम्मिलित होने की गुंजाइश नहीं है तो सेवक के रूप में रहना सबसे अधिक स्वीकार्य और सहज है। तुलसीदास जी यही प्रार्थना भी करते हैं।
होय सिद्ध साखी गौरीसा। |
पुनः बताना है कि हमारे विवेचन में अब तक बाईस भाग में दो दोहा के साथ जिन बीस चौपाइयों की चर्चा हुई है, वह चालीस अर्द्धाली हैं। चौपाई की एक अर्द्धाली में दो चरण होते हैं। चालीस पंक्तियों की रचना होने के कारण यह चालीसा है।
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