#चार_आम की #घरेलू #तकनीक -
यह जो #लंगड़ा आम है, मालदह, पद्म या हापुस जो भी कहते हैं आप। इसे कच्चा रहने पर ही तोड़ लें। #आम लेकर #दैनिक #भास्कर या #हिंदुस्तान समाचार पत्र में लपेट कर #अमेजन वाले कार्टून में रख दें। तीन से चार दिन में यह पक जायेगा। किसी #रसायन की आवश्यकता नहीं है। #कार्बाइड नहीं डालना है। इस प्रविधि से जो आम पकेगा वह #टपका से इतर और विशिष्ट होगा।
ध्यान से #अवलोकन किया जाए तो ज्ञात होगा कि ऐसे पके आम की #परत बहुत पतली हो गई है। यह आम अपना #सर्वस्व सौंप देता है, इसीलिए तो फलों के #राजा आम में भी #चक्रवर्ती सम्राट है।
सामान्यतया इतनी पतली परत/बोकला देखकर लोग आम को काट कर चम्मच से खाते हैं किंतु मैं #प्रस्ताव करता हूं कि इसे आदिम ढंग से खाना चाहिए। यह मानकर कि आप #रेंजर्स प्रशिक्षण शिविर में हैं जहां आपके पास कृत्रिम #संसाधन के नाम पर #शून्य है। अर्थात चाकू और #राहुल_गांधी के समर्थक (चम्मच) आदि नहीं हैं।
ऐसी दशा में आपको नख और दंत की सहायता से #रसपान करना है। यहां आपका वयस्क होना काम आएगा। चतुर #सुजान की भांति आपको वह स्थान समझना है जहां से आप इसे पा सकेंगे अन्यथा #चारुदत्त की तरह #वसंतसेना के भी उपहास का पात्र बनेंगे।
महीन #वल्कल को नाखून से हटाने की सोच #बच्चे जैसी होगी। वयस्क #व्यक्ति रस की एक #बूंद भी नीचे नहीं #गिरने देगा, इसलिए सहज ही वह #होंठो से काम लेगा। #दंतक्षत करेगा। हो सकता है कि यह #बाइट आपके मुखमंडल पर #कसैला स्वाद ले आए। छिलके में बस यही एक #अवरोध रह गया है। #कसैलापन । लेकिन आपने #घबराना नहीं है। क्योंकि #डर के आगे जीत है।
इस आम का #वल्कल एक झटके में नहीं उतरता। यह #एकवसना है अवश्य लेकिन एक #झटके में #उतरता नहीं। तो आपके #धैर्य की #परीक्षा यहीं है। #चारुदत्त को भी नहीं पता था। #वसंतसेना ने बताया था, तब जाना वह। #अस्तु!
जब इसका छिलका उतर जाए तो पहला #आस्वादन ही आपका #महासुख है। हमने एक बार बताया था कि इसे #हाआआआआऊप की तरह लेना चाहिए।
चार आम |
अब क्या!
#किस्सा गइल #वन में,
सोचो अपने #मन में।
जाओ, यह आम खाओ। फिर मुझे याद करना और कमेंट करके बताना।