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शुक्रवार, 28 जून 2024

आम की घरेलू तकनीक

#चार_आम की #घरेलू #तकनीक - 


यह जो #लंगड़ा आम है, मालदह, पद्म या हापुस जो भी कहते हैं आप। इसे कच्चा रहने पर ही तोड़ लें। #आम लेकर #दैनिक #भास्कर या #हिंदुस्तान समाचार पत्र में लपेट कर #अमेजन वाले कार्टून में रख दें। तीन से चार दिन में यह पक जायेगा। किसी #रसायन की आवश्यकता नहीं है। #कार्बाइड नहीं डालना है। इस प्रविधि से जो आम पकेगा वह #टपका से इतर और विशिष्ट होगा।

ध्यान से #अवलोकन किया जाए तो ज्ञात होगा कि ऐसे पके आम की #परत बहुत पतली हो गई है। यह आम अपना #सर्वस्व सौंप देता है, इसीलिए तो फलों के #राजा आम में भी #चक्रवर्ती सम्राट है।

सामान्यतया इतनी पतली परत/बोकला देखकर लोग आम को काट कर चम्मच से खाते हैं किंतु मैं #प्रस्ताव करता हूं कि इसे आदिम ढंग से खाना चाहिए। यह मानकर कि आप #रेंजर्स प्रशिक्षण शिविर में हैं जहां आपके पास कृत्रिम #संसाधन के नाम पर #शून्य है। अर्थात चाकू और #राहुल_गांधी के समर्थक (चम्मच) आदि नहीं हैं।


ऐसी दशा में आपको नख और दंत की सहायता से #रसपान करना है। यहां आपका वयस्क होना काम आएगा। चतुर #सुजान की भांति आपको वह स्थान समझना है जहां से आप इसे पा सकेंगे अन्यथा #चारुदत्त की तरह #वसंतसेना के भी उपहास का पात्र बनेंगे।


महीन #वल्कल को नाखून से हटाने की सोच #बच्चे जैसी होगी। वयस्क #व्यक्ति रस की एक #बूंद भी नीचे नहीं #गिरने देगा, इसलिए सहज ही वह #होंठो से काम लेगा। #दंतक्षत करेगा। हो सकता है कि यह #बाइट आपके मुखमंडल पर #कसैला स्वाद ले आए। छिलके में बस यही एक #अवरोध रह गया है। #कसैलापन । लेकिन आपने #घबराना नहीं है। क्योंकि #डर के आगे जीत है।


इस आम का #वल्कल एक झटके में नहीं उतरता। यह #एकवसना है अवश्य लेकिन एक #झटके में #उतरता नहीं। तो आपके #धैर्य की #परीक्षा यहीं है। #चारुदत्त को भी नहीं पता था। #वसंतसेना ने बताया था, तब जाना वह। #अस्तु!


जब इसका छिलका उतर जाए तो पहला #आस्वादन ही आपका #महासुख है। हमने एक बार बताया था कि इसे #हाआआआआऊप की तरह लेना चाहिए।

चार आम


अब क्या! 

#किस्सा गइल #वन में,

सोचो अपने #मन में।


जाओ, यह आम खाओ। फिर मुझे याद करना और कमेंट करके बताना।

बुधवार, 17 अप्रैल 2024

आम गज़ल

आम फलते रहेंगे बागों में

रोज निकलेगी बात आमों की।


कड़ा पहरा है अबकी आमों पर

रस में डूबेंगे कैसे आमों की।।

कच्चा आम


आम का साथ साथ आमों का 

आम की बात बात आमों की।


आम तो आम है, कोई खास नहीं

कब  लगेगी नुमाइश  आमों की।


आम देखूं तो ललक उठती है

दिल में उठती है हूक आमों की।


आम देखा तो होंठ याद आए

याद आती गई हैं आमों की।


आम की फस्ल आम नहीं होती

कई  कलमें  लगेंगीं  आमों की।


रसाल


#चार_आम

मंगलवार, 5 जुलाई 2022

चंडीदास और चार आम

ओड़िया कवि चंडीदास की कविता में राधा, कृष्ण के साथ रति के प्रगाढ़ क्षणों में भी व्याकुल रहती हैं कि यह मिलन चरम पर होगा और फिर विरह ही शेष रहेगा।

आम के साथ भी ऐसी ही भावना साथ चल रही है। #चार_आम के साथ संसर्ग हो रहा होता है कि 'जल्दी ही आम के

कथावार्ता : सांस्कृतिक पाठ का गवाक्ष

दिन चले जायेंगे', भाव उमगता रहता है।

शनिवार, 2 जुलाई 2022

कविता : चार_आम

#चार_आम पर मेरी कालजयी कविता पढ़िए- #चार_आम


सुबह हुई, नाश्ते में मार दिए चार आम

और थोड़ा दिन चढ़ा तो नाप दिए चार आम।


दोपहर में भोजन के साथ लिए चार आम

जब थोड़ा लेटे तो सपने में चार आम।


शाम को आम आम कह कह के चार आम।

गदबेला में राम राम कह कह के चार आम।


रात को भिगो दिए बाल्टी में चार आम

और रात बीती तो चू गए चार आम।


हरे राम हरे राम कहकह के चार आम

हुए थोड़ा दक्खिन से वाम तो चार आम।


पका आम देखा तो चिंचोड़ दिए चार आम

मार दिया पालथी, निचोड़ दिए चार आम।

कथावार्ता : सांस्कृतिक पाठ का गवाक्ष


- डॉ रमाकान्त राय

शुक्रवार, 1 जुलाई 2022

चार _आम और मिर्जा गालिब

 "मिर्ज़ा ग़ालिब" नाम से जो टीवी बायोपिक है, उसमें मिर्ज़ा आम खा रहे हैं। एक सज्जन यह कहकर कि वह आम नहीं खाते, महफिल में हैं।


तभी कहीं से एक गधा उन लोगों के पास आता है। हजरात कहते हैं- "गधे ने आम सूंघकर छोड़ दिया। मिर्ज़ा, आम तो गधे भी नहीं खाते।"

कथावार्ता : सांस्कृतिक पाठ का गवाक्ष


मिर्ज़ा कहते हैं- "गधे हैं, तभी आम नहीं खाते।"


#चार_आम

गुरुवार, 30 जून 2022

चार आम और मौलाना

       सालिम अली ने आत्मकथा "एक गौरैया का गिरना" में लिखा है कि उनके फ्रिज में 08 अलफांसो आम थे। एक मौलाना आए। उन्हें आम ऑफर किया गया। उन्होंने आठो आम दबा दिए।

     फ्रिज में रखे आम का स्वाद द्विगुणित हो जाता है। गांव में पानी भरी बाल्टी में आम रखकर खाने के पीछे यही भावना है।

      सबेरे सबेरे पद्म (लंगड़ा) का सेवन करते हुए अलफांसो और मौलाना की याद हो आई।

#चार_आम






शनिवार, 25 जून 2022

Kathavarta : भूपेंद्र भारतीय का व्यंग्य, ‛मेंगो डेमोक्रेसी’ में कटहल-वाद....!!

 -भूपेन्द्र भारतीय

आम का मौसम शिखर पर है। कोई सुबह उठते ही #चार_आम दबा रहा है तो कोई दो आम चूसकर दो-चार हो रहा है। कुछ नौसिखियें शाम का समापन आम के जूस से कर रहे हैं। वहीं कुछ बुद्धिजीवी आम को चूस-चूसकर स्वाद लेने का आनंद ले रहे हैं। इधर देखने में आया है कि डूड पीढ़ी आम को काटकर खाने में ही अपनी शान समझ रही हैं ! इस बीच इसी मौसम में कटहल भी कोई कम तेवर नहीं दिखा रही हैं। उसका तेल अलग ही चढ़ा हुआ है। उसके नाम से मेंगो डेमोक्रेसी में एक नया वाद ही चल निकला है, “जिसे कई आरामपसंद बुद्धिजीवी कटहल-वाद कहने लगे हैं।

एक तरफ आम आदमी आम मचकाने में मगन है। कटहल प्रेमी कटहल-वाद चलाने में पूरा जोर लगा रहे हैं। वहीं मेंगो डेमोक्रेसी में कुछ कट रहा है तो बहुत कुछ मेंगोमय हो रहा है।

हम सब जानते है कि लोकतंत्र में आम आदमी मेंगो की तरह होता हैं। जिसे डेमोक्रेसी के सैनिक कभी भी चुस कर फेंक सकते हैं। जिस तरह से कटहल को काटने के लिए चाकू पर हल्का-सा तेल लगाया जाता है, डेमोक्रेसी के सैनिक भी इसी तरह से आम आदमी के वोट आम व खास चुनाव में काटते हैं। आम आदमी अपने को आम लोकतंत्र का सिपाही समझता है लेकिन वह हर आम व सामान्य चुनाव में शिकार हो जाता है। मेंगो डेमोक्रेसी में माननीयों का लोकतांत्रिक मिक्सर आये दिन मेंगो मेननाम का जूस बनाते रहते है। कभी पांच सितारा होटलों में कटकर, तो कभी अंतरात्मा की आवाज़ के कारण डाक बंगलों व सर्किट हाउस में मेंगो मेन का सर्वे भवन्तु सुखिनःकरके...!

इधर विद्वानों के मत अनुसार जब से मेंगो डेमोक्रेसी में कटहल-वाद आया है बाकि सारे वाद इस वाद के सामने बेबुनियाद होते जा रहे हैं। कटहल-वाद में राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं का ऐसा तगड़ा बघार लगाया जा रहा है कि उसके सामने बाकि सारें वादों की सांसें फूल रही हैं। एक राज्य में जबतक मेंगो मेन सरकार बनाता है, “तबतक दूसरे राज्य में मेंगो डेमोक्रेसी करवट बदल लेती है। वहीं तीसरे राज्य से खबर आती है कि कोई कच्ची-पक्की डेमोक्रेसी को ही तोड़ कर किसी रिसॉर्ट में ले गया है।" बेचारी मेंगो डेमोक्रेसी के पांच साल होटल-होटल व एक राज्य से दूसरे राज्य में कटहल-वाद से छुपने में ही निकल जाते हैं।

 सर पसे की वाल से

इधर आमों का मौसम चलता रहता है और आम आदमी आम चूसते-चूसते टीवी पर यह मेंगो डेमोक्रेसी का मेगा ड्रामा देखने का आनंद भी उठाता रहता है। कटहल-वाद के जनक लगे हैं डेमोक्रेसी को काटने-पीटने-जलाने में ! कुछ पत्थर-वीर पत्थर फेंककर मेंगो डेमोक्रेसी पकने ही नहीं देना चाहते हैं। कोई अपनी मेंगो मांगों के लिए रेलगाड़ियों को जला रहा है, तो कोई आम आदमी बने मेंगो ट्वीट कर रहा है। मौसम विभाग हर बार की तरह इस बार भी आम से कुछ खास बारिश के संकेत बता रहा है। इधर बाजार में अब सभी तरह के आम आसानी से खरीदें जा सकते हैं। बस आपकी जेब में कुछ खास लोगों का फोटो लगा कागज पर्याप्त मात्रा में होना चाहिए। फिर आप बाजार से निकलते हुए कुछ भी व कैसे भी आमोखास को खरीद सकते हो !

इन सब झंझटों से दूरी बनाकर भी कुछ भलें आम आदमी चारों पहर तरह-तरह के आम दबा रहे हैं। कोई किसी फाईल को आगे बढ़ाने के नाम, तो कोई कम्प्यूटर के डाउन होते सर्वर को गति देने के लिए आम (मेंगो डेमोक्रेसी) का सहारा ले रहा है। शाकाहारी आम आदमी कटहल पकाकर ही अपने वादे पूरा कर रहा हैं। इन दिनों मेंगो डेमोक्रेसी में चारों दिशाओं से हवा चल रही है। कहीं गर्मी कम हो रही है तो कहीं उमस बढ़ने लगी है। लगता है बरखा-रानी अपनी फुहारों की यात्रा पर निकल चुकी है। देखते हैं आम आदमी आमरस का आनंद कबतक ले पाता है, वहीं कटहल-वाद के झंडाबरदार कहाँ तक अपनी साग पका पाते हैं व साख बचा पाते हैं....!


(कथावार्ता आम प्रेमियों के लिए एक विशेष कोना रखता है। देश में आम का मौसम आते ही हर तरफ वैष्णव भाव ज़ोर मारने लगता है, इससे प्रेरित हो #कथावार्ता ने आम प्रेमियों के सम्मान में एक कॉलम शुरू किया है। बीते दिन ट्विटर परआम ट्विटर की बात चली थीभूपेंद्र भारतीय का व्यंग्य इस कड़ी में पहला लेख --

भूपेंद्र भारतीय

भूपेंद्र भारतीय मध्यप्रदेश के एक महाविद्यालय में वकील बनाते हैं। वह जाने माने व्यंग्यकार और स्तंभकार हैं। देश के प्रतिष्ठित समाचार पत्र- पत्रिकाओं में आपके आलेख और व्यंग्य प्रकाशित होते रहते हैं। वह घुमक्कड़ी के शौकीन हैं। व्यंग्य आधारित उनकी पुस्तक प्रकाशकों की मेज पर रखी हुई है। - संपादक)

 

संपर्क-

205, प्रगति नगर,सोनकच्छ,

जिला- देवास, मध्यप्रदेश (455118)

मो. 9926476410

मेल- bhupendrabhartiya1988@gmail.com

 


सद्य: आलोकित!

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