कल
शाम वसु के साथ यूँ ही बेसबब घूमते हुए हम एक होटल के नजदीक से गुजरे। बड़े अक्षरों
में वहाँ KUNAL लिखा हुआ था। वसु इन अक्षरों को पहचानने लगे हैं
तो हिज्जे करने के बाद उन्होंने पूछा कि इसका क्या हुआ?
"कुणाल" मैंने बताया।
"इसका मतलब"- उनका बहुत भला प्रश्न था। "जिसकी आँखें हमेशा 'सुंदर' देखती हैं। इसका एक अर्थ सुंदर आंखों वाली एक
चिड़िया भी है।"
"किसकी आँखें पापा?" -वसु के पास बात जारी रखने के लिए प्रश्नों की अंतहीन सीरीज हैं।
"कुणाल की।" मैंने कहा। "कुणाल,
सम्राट अशोक का बेटा था। उसकी माँ तिष्यरक्षिता ने उसकी आँखें फोड़वा
दी थीं।"
कहानी दिलचस्प हो गयी थी। अब
वसु के पास स्वाभाविक प्रश्न थे। -"क्यों?" मैंने
कहानी याद करने की कोशिश की। हमलोगों के पास अपने इतिहास को कहने-जानने के लिए
कहानियों का अभाव है। बल्कि कहा जाए तो कहानियों को कहने-सुनने के अभ्यास का अभाव
है। हम किस्से और गप्प में भरोसा रखने वाले लोग हैं। तो याद आने के बाद मैंने कुछ
खिचड़ी बनाकर कहानी सुना दी।- "कुणाल जब बड़ा हुआ तो उसके विवाह का प्रस्ताव
आया। कपड़े, गहने और नारियल लेकर तिष्यरक्षिता के पिता अशोक
के पास आये। मजाक मजाक में अधेड़ अशोक ने कहा कि 'क्या यह
प्रस्ताव मेरे लिए है?' राजसभा में यह बात हँसी के फव्वारे
में उड़ गई किन्तु धार्मिक प्रवृत्ति के कुणाल ने इसे गंभीरता से लिया। उसने कहा कि
मजाक मजाक में ही पिता ने तिष्यरक्षिता को अपनी पत्नी के रूप में कामना की है। अतः
मैं तिष्यरक्षिता से विवाह कैसे कर सकता हूँ? राजसभा में यह
हड़कम्प मचा देने वाला मसला बन गया।"
वसु के लिए यह सब अब अझेल होने लगा और समझ से
बाहर लेकिन वह हुँकारी भरते रहे और अपनी उत्सुकता प्रकट करते रहे तो मैंने कहानी
आगे बढ़ा दी। "राजसभा में इस स्थिति की मीमांसा हुई और तय पाया गया कि कुणाल
ठीक कह रहे हैं। एक विद्वान ने महाभारत की एक कथा सुनाई।"
अब वसु को एक अन्य सिरा मिल गया था। उन्होंने
चहकते हुए कहा- "एक और कहानी?" -"हाँ,
महाभारत में एक कहानी आती है कि दो भाई थे। एक संन्यासी और एक
गृहस्थ। एक बार संन्यासी अपने गृहस्थ भाई से मिलने आया। गृहस्थ के बगीचे में अमरूद
के पेड़ थे। उनपर अमरूद फला हुआ था। संन्यासी के मन में इच्छा हुई कि काश यह खाने
को मिल जाता। और यह इच्छा प्रकट करते ही वह 'धर्मच्युत'
हो गया। उसे अपनी मानसिक पतन का आभास हो गया। तो भाई के आने के बाद
उसने इस गलती की बात बताई। भाई ने विचार किया और दण्ड का विधान किया कि संन्यासी
के दोनों हाथ काट दिए जाएं। ऐसा ही हुआ। लेकिन उस कहानी में फिर सब चीजें सामान्य
हो गयीं क्योंकि दोनों भाइयों की धर्मपरायणता ने यथास्थिति कर दिया।"
वसु को कुछ समझ में आया बहुत कुछ नहीं।
लेकिन उन्होंने पूछ लिया कि कैसे हुआ यह। तो मैंने पूछा कि कुणाल की कहानी सुननी
है या नहीं?
"सुननी है।"
"तो, तय हुआ कि तिष्यरक्षिता का
विवाह अशोक के साथ हो। तिष्यरक्षिता कुणाल की सौतेली माँ बनकर आयी। वह क्रोध में
थी। कुणाल से विवाह नहीं होने से दुःखी थी।
"एक बार कुणाल पढ़ने के लिए उज्जैन गए। राजा अशोक ने एक
पत्र लिखा और भेजा। उस पत्र में तिष्यरक्षिता ने कुछ हेर फेर कर दिया। 'अधीयु' की जगह 'अंधीयु'
कर दिया था। कुणाल ने यह पढ़ा तो स्वयं ही अपनी आँखें फोड़ लीं।"
"खुद से?"
"हाँ! खुद से। पापा की बात कैसे न मानता? फिर वह संन्यासी बन गया। बहुत साल बाद अशोक के राजसभा में लौटा। अशोक ने
उसके नवजात बेटे 'सम्प्रति' को मौर्य
वंश का उत्तराधिकारी बना दिया। अशोक का एक बेटा महेन्द्र और बेटी संघमित्रा
श्रीलंका गए।"
हम वापस लौट आये थे। वसु के पास कई दूसरे काम
थे। मैं कुणाल के बहाने कई दुनियावी बातों में उलझ गया। भारत में प्राचीन काल में
बहुत से प्रतापी राजा हुए हैं लेकिन उनके प्रति उपेक्षा और विशेष दृष्टि सम्पन्न
इतिहासकारों ने उनका ठीक मूल्यांकन नहीं किया। हमारी पीढ़ी और बाद की पीढ़ी शायद ही
उन्हें जान पाए।