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गुरुवार, 15 अक्तूबर 2020

कथावार्ता : झूला : मूल पाठ और व्याख्या

 

अम्मा आज लगा दे झूला

(मूल पाठ और व्याख्या)

-रीमा राय

अम्मा आज लगा दे झूला,

इस झूले पर मैं झूलूँगा।

उस पर चढ़कर, ऊपर बढ़कर,

आसमान को मैं छू लूँगा।

 

झूला झूल रही है डाली,

झूल रहा है पत्ता-पत्ता।

इस झूले पर बड़ा मज़ा है,

चल दिल्ली, ले चल कलकत्ता।

 

झूल रही नीचे की धरती,

उड़ चल, उड़ चल,

उड़ चल, उड़ चल।

बरस रहा है रिमझिम, रिमझिम,

उड़कर मैं लुटूँ  दल-बादल

इस प्यारी सी कविता में बालक अपनी माँ से आग्रह कर रहा है कि वह अपने बेटे के लिए एक झूला लगवा दे। झूला, जिसपर बैठकर वह बहुत ऊँचाई तक पींग भरे। बालक के मन में आकाश को लेकर गहरी उत्सुकता है और वह उस ऊँचाई तक पहुँचना चाहता है। झूले पर बैठकर वह आकाश को छू लेना चाहता है।  आसमान को छू लूँगा कहने से उसकी सहज महत्त्वाकांक्षा प्रकट हो रही है।

बालक अपने आसपास, प्रकृति के कई दृश्यों में झूला का रूप देख रहा है। डालियाँ हवा के असर से ऊपर नीचे हो रही हैं, उसके साथ-साथ पत्तियाँ भी तो बालक को प्रतीत होता है कि डाली और पत्तियाँ तक झूल रही हैं। झूले की ऊँची पींग को देखकर वह सोचता है कि इसपर बड़ा सुख मिलेगा, जैसे यात्रा करने पर प्राप्त होता है। बालक के मन में दो बड़े महानगरों- दिल्ली और कलकत्ता; की छवि है जो शान शौकत और ऊँची-ऊँची इमारतों के लिए प्रसिद्ध हैं।

झूले पर सवार बालक को नीचे आने पर लगता है कि धरती भी झूल रही है। फिर वह बहुत तेजी से ऊपर जाता है तो रोमांच से भर जाता है। ऊपर कविता में बालक की जो महत्त्वाकांक्षा व्यक्त हुई है, वह यहाँ स्पष्ट रूप से झलक रही है। 

आमतौर पर झूले का रिवाज सावन के महीने का है जब धरती पर वर्षा के बाद खूब हरियाली रहती है, बादल रिमझिम बरसते रहते हैं। कविता की आखिरी पंक्तियों में भी रिमझिम बरसते बादलों की स्मृति है। बालक कह रहा है कि रिमझिम बारिश में बहुत ऊँचाई पर जाकर वह बादलों के समूह को छू लेगा।

          बालक अपनी माँ से एक सहज अनुरोध कर रहा है। उसके अनुरोध में बालकोचित इच्छा है। आगे बढ़ाने और ऊँचाई तक जाने की आकांक्षा है। जब इतनी सहज माँग रहेगी तो कोई भी उसे पूरा करने का उपक्रम अवश्य करेगा। 

       इस कविता में विशेष ध्वन्यात्मकता है, जो लय के अनुरूप है। इसे बहुत आसानी से गाया जा सकता है और इसीलिए यह जल्दी ही याद हो जाती है। छोटे बालकों को यह बहुत मनोहर लगेगी।

(कक्षा एक की हिन्दी भाषा की पुस्तक में अम्मा आज लगा दे झूला शीर्षक कविता पाठ्यक्रम में रखी गयी है। इस कविता को समझने के लिए मूल पाठ और इसकी व्याख्या प्रस्तुत की जा रही है। व्याख्याकार श्रीमती रीमा राय अध्यापक हैं और बच्चों की अकादमिक और रचनात्मक गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी करती रहती हैं। उन्होंने आकाशवाणी इलाहाबाद (अब प्रयागराज) से बालकों के लिए कई वार्ताओं की प्रस्तुति भी की है।)

सद्य: आलोकित!

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