(२)
अदेषि देषिबा देषि बिचारिबा अदिसिटी राषिबा चीया।
पाताल की गंगा ब्रह्मण्ड चढ़ाइबा, तहां बिमल जल पीया।
अर्थ- न देखे हुए (परब्रह्म) को देखना चाहिए। देख कर उस पर विचार करना चाहिए। जो आंखों से देखा नहीं जा सकता उसे चित्त में रखना चाहिए। पाताल (मणिपुर चक्र) की गंगा (योगिनी शक्ति, कुंडलिनी) को ब्रह्मांड (ब्रह्मरंध्र, सहस्रार या सहस्रदल कमल) में प्रेरित करना चाहिए। वहीं पहुंचकर (योगी साक्षात्काररूपी) निर्मल रस पीता है।
(४)
बेद कतेब न षांणीं। सब ढंकी यदि आंणीं।।
गगनि सिषर महि सबद प्रकास्या। तहं बूझै अलष बिनांणीं।
अर्थ- (परब्रह्म का ठीक-ठीक निर्वचन) न वेद कर पाए हैं, न किताबी धर्मों की पुस्तकें और न चारों खानि की वाणी। यह सब तो उसे आच्छादन (ढंकी) के नीचे ले आए हैं। उन्होंने तो सत्य को प्रकट करने के बदले उस पर आवरण डाल दिया है। यदि ब्रह्म के स्वरूप का यथार्थ ज्ञान तुम्हें अभीष्ट है तो ब्रह्मरंध्र (गगन शिखर) में समाधि द्वारा जो शब्द प्रकाश में आता है उसमें विज्ञान रूप अलक्ष्य परब्रह्म का ज्ञान प्राप्त करे।
(७)
हसिबा
षेलिबा रहिबा रंग। कांम क्रोध न करिबा संग।।
हसिबा षेलिबा गाइबा गीत। दिढ करि राषि आपनां चीत।।
अर्थ- हंसना चाहिए, खेलना चाहिए, मस्त रहना चाहिए किंतु कभी काम क्रोध का साथ ना करना चाहिए। हंसना, खेलना और गीत भी गाना चाहिए किंतु अपने चित्त को दृढ़ करके रखना चाहिए।
(८)
हसिबा षेलिबा धरिबा ध्यांन। अहनिसि कथिबा ब्रह्म गियान।।
हसै षेलै न करै मन भंग। ते निहचल सदा नाथ कै संग।।
अर्थ- हंसना खेलना और ध्यान धरना चाहिए, रात-दिन ब्रह्म ज्ञान का कथन करना चाहिए। इस प्रकार (संयम पूर्वक) हंसते खेलते हुए जो अपने मन को भंग नहीं करते, वे निश्चल होकर ब्रह्म के साथ रमण करते हैं।
(१६)
अह निसि
मन लै रहे उनमन गम की छांड़ि अगम की कहै।
छांड़ै आसा रहै निरास, कहै
ब्रह्मा हूं ताका दास।।
अर्थ- जो रात दिन बहिर्मुख मन को उन्मनावस्था में लीन किए रहता है, गम्य जगत की बातें छोड़कर अगम्य आध्यात्मिक क्षेत्र की बातें करता है, सब आशाओं को छोड़ देता है, कोई आशा नहीं रखता, वह ब्रह्मा से भी बढ़कर है, ब्रह्मा उसका दासत्व स्वीकार करता है।
गोरखबानी :गोरखनाथ |
टिप्पणी-
गोरखबानी गुरु गोरक्ष नाथ (गोरखनाथ) के सबदी
और पदों का संकलन है। सबदी दोहे की तरह का एक छंद है। यह शब्द का अपभ्रंश रूप है।
गुरु के वचनों को इसमें संकलित किया गया है। इनमें उच्च दार्शनिक विचार समाहित
हैं। गुरु गोरखनाथ ने आचार-विचार, संयम नियम और गुरु आदि की महत्ता
पर सबदी की हैं।
उत्तर
प्रदेश के विश्वविद्यालयों में पीतांबरदत्त बड़थ्यवाल द्वारा संपादित गोरखबानी से
पाँच सबदी २, ४, ७, ८ और १६ को बी ए हिन्दी के प्रथम सेमेस्टर के पाठ्यक्रम में रखा गया है। उन्हीं पाँच सबदी को
यहाँ विद्यार्थियों की सुविधा के लिए अविकल रखने का प्रयास किया गया है।
हम
आशान्वित हैं कि विद्यार्थी इससे लाभान्वित होंगे और सही तथा सटीक पाठ से परिचित
हो सकेंगे।- सम्पादक
1 टिप्पणी:
Aadesh Guru Ji ko Aadesh 🙏
एक टिप्पणी भेजें