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सोमवार, 4 जुलाई 2022

रामचरितमानस में प्रकृति की पहचान


    मैं राम की वानर सेना की कल्पना कर बहुत मुदित हो जाता हूँ। प्रत्यक्षत: वानर देख, उनकी प्रकृति का अवलोकन करता हूँ तो यह मोद और बढ़ जाता है।
    रामसेतु पार करने के क्रम में कई कपि उड़तेहुए जाने लगे। सेतु समीप जुटे जलचरों पर चढ़कर, कूदते फाँदते बढ़ गये। और राम-लक्ष्मण? दोनों को पता है! -
अस कौतुक बिलोकि द्वौ भाई।
बिहँसि चले कृपाल रघुराई।।
सेन सहित उतरे रघुवीरा।
कहि न जाइ कपि जूथप भीरा।।
       प्रकृति की पहचान हो तो प्रबन्धन आसान हो जाता है। दोनों भाइयों ने यह शानदार तरीके से कर रखा है। इसलिए अगला आदेश भी मनोबल बढ़ाने वाला है -
खाहु जाहि फल मूल सुहाए।
    और फिर वानरों, कपि और भालुओं ने खूब मनमानी की। कुछ खाया, कुछ फेंका। इस उद्योग से उनकी थकान मिट गयी।



#लंकाकाण्ड

सद्य: आलोकित!

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