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मंगलवार, 12 नवंबर 2024

श्री हनुमान चालीसा: छठीं चौपाई

 संकर सुवन केसरी नंदन।

तेज प्रताप महा जग वंदन।।


छठी चौपाई


श्री हनुमान चालीसा में छठी चौपाई में हनुमान जी को भगवान शिव का स्वरूप (सुवन) कहा गया है और उनके पिता केशरी का पुत्र बताया गया है। हनुमान जी को महान तेजस्वी, महाप्रतापी कहकर समस्त संसार के लिए वंदनीय भी कहा है।


हनुमान जी एकादश रुद्र हैं। यह भगवान शिव का एक स्वरूप है। इस चौपाई के "सुवन" शब्द का अर्थ कोई कोई पुष्प और कोई "स्वयं" भगवान शिव लेता है। लेकिन यह बात समझना चाहिए कि हनुमान जी स्वयं महादेव ही हैं। तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस में सभी अध्यायों (काण्ड) के आरंभ में भगवान शिव की स्तुति की है किंतु सुंदरकांड में हनुमान जी की ही वंदना है क्योंकि वह स्वयं ही भगवान शिव हैं।

हनुमान जी के पिता महाबलशाली कपि केशरी हैं। इसलिए उन्हें केशरीनंदन कहा गया है।

हनुमान जी के व्यक्तित्व का तेज और प्रताप ऐसा है कि वह समस्त संसार में पूजनीय हैं, वंदनीय हैं।


आइए #हनुमान_चालीसा का पाठ करते हुए हम सभी हनुमान जी की वंदना करें और उनके गुणों का बखान करें।

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आठवां भाग

बुधवार, 6 नवंबर 2024

श्री हनुमान चालीसा: आठवीं चौपाई

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।

राम लखन सीता मन बसिया।।

भाग - दस


श्री हनुमान चालीसा की आठवीं चौपाई में हनुमान जी को रसज्ञ कहा गया है जो भगवान श्रीराम के चरित्र के गुणगान से आनंदित होता है। वह प्रभु श्रीराम के चरित्र का बखान सुनने के सदा आकांक्षी हैं। यह उनकी सर्वाधिक अभिरुचि का क्षेत्र है। रसिया वह है जो तत्त्व ज्ञान रखता है और उसमें आनंद का अनुभव करता है। जब पिछली चौपाई में कहा गया कि हनुमान जी विद्यावान हैं तो उनकी विद्या की चर्चा में तत्त्वज्ञान आया है। इस जीवन का सबसे मूल्यवान तत्त्व रामकथा में है।
हनुमान जी राम कथा सुनने के रसिया हैं और उनके मन मस्तिष्क में हमेशा श्रीराम, उनके अनुज शेषावतार लक्ष्मण और साक्षात् जगदम्बा सीता हैं। यहां यह बताने का प्रयास है कि हनुमान जी भगवान श्रीराम के अनन्य उपासक हैं। यह उपासना श्रीराम, लक्ष्मण और श्री जानकी जी के सानिध्य में है।
तुलसीदास जी ने अपने श्रेष्ठ कवित्व का परिचय यहां दिया है। वह हनुमान जी की अनन्य भक्ति का परिचय देने के लिए ऐसे पद प्रयोग करते हैं।
श्रीहनुमान चालीसा में हनुमान जी के मन में जो हैं, वह अपने संपूर्ण रूप में हम सबके मन में भी बिराजें! इसी कामना के साथ लिखिए, जय श्री हनुमान जी!

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दसवां भाग, हनुमान चालीसा शृंखला

सातवीं चौपाई : श्री हनुमान चालीसा

विद्यावान गुनी अति चातुर।

राम काज करिबे को आतुर।।


सातवीं चौपाई


श्रीहनुमान चालीसा की सातवीं चौपाई में हनुमान जी को विद्यावान, गुणी और अत्यन्त चतुर बताया गया है। हनुमान जी विद्यावान हैं। वह विद्या के जानकार तो हैं ही, नियामक भी हैं। भारतीय सनातन परंपरा में विद्या और अविद्या बहुत गूढ़ विषय हैं। विद्या का मूल अर्थ है, सत्य का ज्ञान, परमार्थ तत्व का ज्ञान या आत्मज्ञान। इसके दो रूप हैं - परा और अपरा विद्या।

हनुमान जी गुणी कहे जाते हैं। और अत्यन्त चतुर भी। विद्या और गुण की उपस्थिति से यह चातुर्य आ ही जाता है। ऐसे अनेक अवसर रामायण में आए हैं जब हनुमान जी ने अपनी चतुराई से सफलता प्राप्त की है।

हनुमान जी के लिए एक अर्द्धाली में यह कहकर मान दिया गया है कि वह भगवान श्रीराम का काम करने के लिए आतुर हैं। आतुर में त्वरा है, शीघ्रता है और इससे काम शीघ्र ही संपन्न हो जाता है। इस प्रकार हनुमान जी की उपस्थिति से ही काम पूरा होने की संभावना शत प्रतिशत हो जाती है।

विद्यावान गुणी और अत्यन्त चतुर हनुमान जी को हम बारम्बार प्रणाम करते हैं और उनके चरणों में अपना शीश नवाते हैं!🙏


भाग - नौ


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नवां भाग, हनुमान चालीसा शृंखला

श्री हनुमान चालीसा: पांचवीं चौपाई

हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे।

कांधे   मूंज   जनेऊ   साजे।।


पांचवीं चौपाई



श्री हनुमान चालीसा की पांचवीं चौपाई में हनुमान जी के स्वरूप को बनाने वाले उपकरणों का उल्लेख है। इसमें कहा गया है कि हनुमान जी के हाथ में वज्र रहता है। यह वज्र गदा रूप में है। जो विशिष्टता वज्र की है अर्थात जो शत्रुओं का नाश करने वाला कठोर धातु से निर्मित है, वह सदैव हनुमान जी के हाथ में रहता है। इसका आशय है कि वह सदैव युद्ध के लिए सन्नद्ध रहते हैं। उनके दूसरे हाथ में ध्वजा है। यह ध्वजा विजय का चिह्न है। यह परिचायक है कि हनुमान जी विजय का प्रतीक हैं। वह जहां हैं, वहीं विजय है।

हनुमान जी यज्ञोपवीत धारण करने वाले द्विज हैं। उन्होंने मूंज का जनेऊ अपने कंधे पर रखा हुआ है। यह जनेऊ उनके पवित्र स्वरूप का परिचायक है।

तुलसीदास जी ने पांचवीं चौपाई में हनुमान जी की वीरता और पवित्रता को उनके द्वारा धारण किए जाने वाले उपादानों से स्पष्ट कर दिया है। गदा, ध्वज और जनेऊ! यह उनके बल, पराक्रम और पवित्रता के सूचक हैं।

ध्वजा उनकी विजयी उपस्थिति का सूचक है, वज्र शक्ति का और जनेऊ धर्म का।


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पांचवीं चौपाई!

शनिवार, 19 अक्टूबर 2024

हनुमान चालीसा: चौथी चौपाई

 कंचन बरन बिराज सुबेसा।

कानन कुंडल कुंचित केसा।।



चौथी चौपाई


श्री हनुमान चालीसा की चौथी चौपाई में हनुमान जी के रूप का वर्णन है। उन्हें कंचन अर्थात सोने के समान रंग वाला बताया गया है। यह पीताभ होता है। कई स्थान पर हनुमान जी की देह लाल रंग की बताई गई है - लाल देह लाली लसे। यहां चालीसा में हनुमान जी को कंचन वर्ण का और सुंदर वेश में रहने वाला कहा गया है। हनुमान जी अपने को सदैव सुव्यवस्थित रखने वाले (फॉर्मल ड्रेस में) हैं, इसलिए उन्हें सुवेश अर्थात सुंदर वेश वाला कहा गया है। उनके कानों में कुण्डल है और उनके बाल घुंघराले हैं।

कुण्डल कान में धारण करने वाला एक आभूषण है जिसे कान में छिद्र बनाकर पहनते हैं। यह कान में लटका रहता है।

कुंचित केश हनुमान जी की एक और पहचान है। घुंघराले बाल अतिरिक्त शोभाकारी होते हैं।

चालीसा की चौथी चौपाई में हनुमान जी के रूप वर्णन के साथ साथ उनके सुरुचिपूर्ण स्वभाव का भी परिचय दिया गया है। अपने व्यक्तित्व के अनुरूप वस्त्र और आभूषण धारण करना व्यक्ति के आंतरिक और बाह्य सौंदर्य में वृद्धि करता है।

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छठा भाग

हनुमान चालीसा: तीसरी चौपाई

 महावीर    विक्रम   बजरंगी ।

कुमति निवार सुमति के संगी।।


तीसरी चौपाई



श्री हनुमान चालीसा की तीसरी चौपाई में हनुमान जी के तीन और विशेषण आए हैं। यह विशेषण उनके पर्याय ही हो गए हैं। दूसरी अर्द्धाली में उनके चरित्र की एक विशेषता बताई गई है। 

हनुमान जी को महावीर कहा गया है। महा का अर्थ विशाल/बड़ा है। वह बहुत बड़े वीर हैं। वीरता के समस्त लक्षण हनुमान जी में मिलते हैं। धैर्य, शील, शौर्य और शक्ति और विनम्रता; हनुमान जी का चरित्र इस सबसे परिपूर्ण है।

वह विक्रम हैं। विक्रम का अर्थ शक्ति है, विशेष क्रम वाला है। वह स्वयं शक्ति स्वरूप हैं। उनका एक अन्य नाम बजरंगी है। वज्र के समान अंग वाले हनुमान जी को बजरंगी कहा गया है। सबको पता है कि वज्र देवराज इन्द्र का शस्त्र है, जो अपनी कठोरता के लिए जाना जाता है। इसी वज्र की सहायता से वृत्रासुर का वध हुआ था और यह वज्र महर्षि दधीचि की अस्थियों से बना था।

हनुमान जी को कुमति अर्थात दुर्बुद्धि का निवारण करने वाला तथा सुमति यानि अच्छी बुद्धि, सद्बुद्धि का साथी बताया गया है। तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस में एक स्थान पर लिखा है कि जहां सुबुद्धि है, वहां सम्पन्नता है और जहां दुर्बुद्धि है वहां विविध तरीके की विपत्तियां। - जहां सुमति तहां संपति नाना।

जहां कुमति तहां विपत्ति निधाना।।


इस प्रकार #हनुमानजी संपति और संपन्नता के स्वामी हैं तथा विपत्ति के निवारण कर्ता।


#HanumanChalisa की यह तीसरी चौपाई हनुमान जी के चरित्र की विशिष्टताओं को बताने वाली महत्वपूर्ण पंक्ति है।

आइए इसका ध्यान करें और हनुमान जी महाराज को सादर प्रणाम करें!🙏 


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गुरुवार, 17 अक्टूबर 2024

हनुमान चालीसा: दूसरी चौपाई

 रामदूत अतुलित बल धामा।

अंजनी पुत्र पवन सुत नामा।।



दूसरी चौपाई

#श्रीहनुमानचालीसा की दूसरी चौपाई में हनुमान जी को रामदूत कहा गया है और अतुलनीय बल का पवित्र स्थान (धाम) बताया गया है। उन्हें उनकी मां अंजनी के साथ जोड़कर संबोधित किया गया है और फिर उनके पिता पवन से भी।


हनुमान जी की उपाधि "रामदूत" है। श्री जानकी जी का पता लगाने के लिए भगवान श्रीराम ने उन्हें अधिकृत किया। जब वह लंका पहुंचे तो सीता जी को उन्होंने अपना परिचय रामदूत कहकर ही दिया। इस विरुद को वह अपने नाम से अभिन्न रूप से जोड़ते हैं। श्री जानकी जी का स्नेह इसके बाद उन्हें प्राप्त हुआ और यह आशीर्वाद भी कि वह अष्ट सिद्धि नौ निधि के प्रदाता भी होंगे।

हनुमान जी अतुलित बल वाले हैं। हनुमान चालीसा की यह अर्द्धाली सुंदरकांड की वंदना की पुष्टि करती है - अतुलित बल धामं, हेम शैलाभ देहं! यहां भी उन्हें अतुलनीय बल का पवित्र स्थान कहा गया है अर्थात जहां से हम बल प्राप्त भी कर सकते हैं।

हनुमान जी को उनकी माता अंजनी का पुत्र कहा गया है। यह सूचक है कि सनातन संस्कृति में पुत्र की एक पहचान उसकी मां से है। यह मातृ शक्ति के समाज में महत्वपूर्ण स्थान का द्योतक है। बालक की पहचान उसके पिता से ही नहीं है, अपितु उसकी मां से भी है।

हनुमान जी पवनपुत्र हैं। जिस तरह वायु की व्याप्ति सर्वत्र है, हनुमान जी भी उसी गति और प्रभाव से विद्यमान हैं। असंभव कार्य करने, क्षण मात्र में, संकल्प करते ही कर लेने का जो गुण और कौशल हनुमान जी में है, वह अपने पिता के ही प्रभाव से।

हनुमान चालीसा की यह दूसरी चौपाई हनुमान जी का परिचय कराती है और इस परिचय में उनका उज्ज्वल चरित्र सन्निहित है।


आज शरद पूर्णिमा है। महर्षि वाल्मीकि की जयंती। आइए, रामदूत, अंजनी पुत्र और पवनसुत हनुमान जी को प्रणाम करें और उनके चरित्र को चित्त में धारण करें।


दूसरी चौपाई।

चौथा भाग।


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बुधवार, 16 अक्टूबर 2024

हनुमान चालीसा: पहली चौपाई

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।

जय कपीस तिहूं लोक उजागर।।

पहली चौपाई


हनुमान चालीसा में जो चालीस की संख्या है, वह चौपाई छंद के लिए है। हनुमान जी के स्वरूप और माहात्म्य का वर्णन चालीस चौपाइयों में किया गया है। पहली चौपाई में हनुमान जी की जय कहते हुए उन्हें ज्ञान और गुण का समुद्र कहा गया है। अर्थात् हनुमान जी का व्यक्तित्व ज्ञान और गुण का ही रूप है। हनुमान जी को ज्ञानियों में अग्रगण्य कहा गया है। श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड में तुलसीदास जी ने "ज्ञानिनाम्अग्रगण्यम" कहकर उनकी वंदना की है। चौपाई के दूसरे चरण में उन्हें कपीश अर्थात कपियों का इष्ट कहा गया है और तीनों लोक को उजागर करने वाला। तीन लोक अर्थात भूलोक, पाताललोक और स्वर्गलोक। यह तीनों लोक, तीन प्रकार के प्राणियों का स्थान माना गया है। भूलोक मानव का, पाताल लोक नाग तथा दैत्यों का और स्वर्गलोक देवताओं का निवास स्थान है। हनुमान जी की महिमा इन सबमें व्याप्त है और वह इन सबको प्रकाशित करने वाले हैं।


इस पहली चौपाई में हनुमान जी की वंदना करते हुए उनकी जय की गई है। यहां यह बताना आवश्यक होगा कि #दोहा की तरह #चौपाई भी एक मात्रिक छंद है। लेकिन यह सम छंद है जिसके प्रत्येक चरण में 16 मात्रा होती है। हनुमान जी की वंदना इसी छंद में चलती है।


#एकधागा #तीसरादिन 

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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024

श्री हनुमान चालीसा : दूसरा दोहा

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।

बल बुधि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।।


श्रीहनुमानचालीसा के दूसरे दोहे में तुलसीदास जी ने अपने विनय का परिचय देते हुए स्वयं को बुद्धिहीन माना है और पवन कुमार अर्थात हनुमान जी का स्मरण किया है। वह याचना करते हैं कि हनुमान जी उन्हें बल, बुद्धि और विद्या का दान करें। साथ ही क्लेश और विकार का हरण कर लें।


वह कहते हैं कि स्वयं को बुद्धिहीन समझकर मैं पवनकुमार हनुमान जी का स्मरण कर रहा हूं। वह मुझे बल, बुद्धि और विद्या प्रदान करें तथा मुझमें निहित क्लेश और विकार का हरण कर लें। यहां स्वयं को बुद्धिहीन कहना विनयशीलता का परिचायक है। वह हनुमान जी से बल बुद्धि और विद्या तीनों की मांग करते हैं। इसमें अंतर्निहित है कि बुद्धि ही बल और विद्या को अर्जित करने वाली है। चूंकि वह बुद्धि में हीन अर्थात नीचे हैं, इसलिए बल और बुद्धि भी कम है। इसके साथ ही इसका दुरुपयोग करने वाली क्लेश वृत्ति अर्थात झगड़ालू स्वभाव तथा दुर्गुण भरने वाले विकार को दूर करना भी आवश्यक है। चूंकि यह सब कहीं अन्तस्थ होते हैं इसलिए इन्हें बलात् ले लेने की प्रार्थना की गई है।


#हनुमानचालीसा के पहले दोहे में श्री गुरु जी की वंदना के बाद रघुवीर श्रीराम को प्रणाम किया था। दूसरे दोहे में हनुमान जी को पवन कुमार कहकर स्मरण करने की बात की गई है। सुमिरों शब्द में बार बार नाम लेने की भावना निहित है।

इन दो दोहों के बाद श्री हनुमान चालीसा में चौपाई छंद चलता है।


आइए, इस शृंखला में हम भी बजरंग बली हनुमान जी का स्मरण कर उनसे प्रार्थना करें कि वह हमें बल बुद्धि और विद्या प्रदान करें।

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#दूसराभाग। #दोहा

सद्य: आलोकित!

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : पहला दोहा

श्री गुरु चरण सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि। बरनउं रघुबर बिमल जस, जो दायक फल चारि।।  श्री हनुमान चालीसा शृंखला परिचय- #श्रीहनुमानचालीसा में ...

आपने जब देखा, तब की संख्या.