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गुरुवार, 17 अक्तूबर 2024

हनुमान चालीसा: दूसरी चौपाई

 रामदूत अतुलित बल धामा।

अंजनी पुत्र पवन सुत नामा।।



दूसरी चौपाई

#श्रीहनुमानचालीसा की दूसरी चौपाई में हनुमान जी को रामदूत कहा गया है और अतुलनीय बल का पवित्र स्थान (धाम) बताया गया है। उन्हें उनकी मां अंजनी के साथ जोड़कर संबोधित किया गया है और फिर उनके पिता पवन से भी।


हनुमान जी की उपाधि "रामदूत" है। श्री जानकी जी का पता लगाने के लिए भगवान श्रीराम ने उन्हें अधिकृत किया। जब वह लंका पहुंचे तो सीता जी को उन्होंने अपना परिचय रामदूत कहकर ही दिया। इस विरुद को वह अपने नाम से अभिन्न रूप से जोड़ते हैं। श्री जानकी जी का स्नेह इसके बाद उन्हें प्राप्त हुआ और यह आशीर्वाद भी कि वह अष्ट सिद्धि नौ निधि के प्रदाता भी होंगे।

हनुमान जी अतुलित बल वाले हैं। हनुमान चालीसा की यह अर्द्धाली सुंदरकांड की वंदना की पुष्टि करती है - अतुलित बल धामं, हेम शैलाभ देहं! यहां भी उन्हें अतुलनीय बल का पवित्र स्थान कहा गया है अर्थात जहां से हम बल प्राप्त भी कर सकते हैं।

हनुमान जी को उनकी माता अंजनी का पुत्र कहा गया है। यह सूचक है कि सनातन संस्कृति में पुत्र की एक पहचान उसकी मां से है। यह मातृ शक्ति के समाज में महत्वपूर्ण स्थान का द्योतक है। बालक की पहचान उसके पिता से ही नहीं है, अपितु उसकी मां से भी है।

हनुमान जी पवनपुत्र हैं। जिस तरह वायु की व्याप्ति सर्वत्र है, हनुमान जी भी उसी गति और प्रभाव से विद्यमान हैं। असंभव कार्य करने, क्षण मात्र में, संकल्प करते ही कर लेने का जो गुण और कौशल हनुमान जी में है, वह अपने पिता के ही प्रभाव से।

हनुमान चालीसा की यह दूसरी चौपाई हनुमान जी का परिचय कराती है और इस परिचय में उनका उज्ज्वल चरित्र सन्निहित है।


आज शरद पूर्णिमा है। महर्षि वाल्मीकि की जयंती। आइए, रामदूत, अंजनी पुत्र और पवनसुत हनुमान जी को प्रणाम करें और उनके चरित्र को चित्त में धारण करें।


दूसरी चौपाई।

चौथा भाग।


#हनुमानचालीसा_व्याख्या_सहित #HanuMan #Chalisa #हनुमान_चालीसा

बुधवार, 16 अक्तूबर 2024

हनुमान चालीसा: पहली चौपाई

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।

जय कपीस तिहूं लोक उजागर।।

पहली चौपाई


हनुमान चालीसा में जो चालीस की संख्या है, वह चौपाई छंद के लिए है। हनुमान जी के स्वरूप और माहात्म्य का वर्णन चालीस चौपाइयों में किया गया है। पहली चौपाई में हनुमान जी की जय कहते हुए उन्हें ज्ञान और गुण का समुद्र कहा गया है। अर्थात् हनुमान जी का व्यक्तित्व ज्ञान और गुण का ही रूप है। हनुमान जी को ज्ञानियों में अग्रगण्य कहा गया है। श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड में तुलसीदास जी ने "ज्ञानिनाम्अग्रगण्यम" कहकर उनकी वंदना की है। चौपाई के दूसरे चरण में उन्हें कपीश अर्थात कपियों का इष्ट कहा गया है और तीनों लोक को उजागर करने वाला। तीन लोक अर्थात भूलोक, पाताललोक और स्वर्गलोक। यह तीनों लोक, तीन प्रकार के प्राणियों का स्थान माना गया है। भूलोक मानव का, पाताल लोक नाग तथा दैत्यों का और स्वर्गलोक देवताओं का निवास स्थान है। हनुमान जी की महिमा इन सबमें व्याप्त है और वह इन सबको प्रकाशित करने वाले हैं।


इस पहली चौपाई में हनुमान जी की वंदना करते हुए उनकी जय की गई है। यहां यह बताना आवश्यक होगा कि #दोहा की तरह #चौपाई भी एक मात्रिक छंद है। लेकिन यह सम छंद है जिसके प्रत्येक चरण में 16 मात्रा होती है। हनुमान जी की वंदना इसी छंद में चलती है।


#एकधागा #तीसरादिन 

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मंगलवार, 15 अक्तूबर 2024

श्री हनुमान चालीसा : दूसरा दोहा

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।

बल बुधि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।।


श्रीहनुमानचालीसा के दूसरे दोहे में तुलसीदास जी ने अपने विनय का परिचय देते हुए स्वयं को बुद्धिहीन माना है और पवन कुमार अर्थात हनुमान जी का स्मरण किया है। वह याचना करते हैं कि हनुमान जी उन्हें बल, बुद्धि और विद्या का दान करें। साथ ही क्लेश और विकार का हरण कर लें।


वह कहते हैं कि स्वयं को बुद्धिहीन समझकर मैं पवनकुमार हनुमान जी का स्मरण कर रहा हूं। वह मुझे बल, बुद्धि और विद्या प्रदान करें तथा मुझमें निहित क्लेश और विकार का हरण कर लें। यहां स्वयं को बुद्धिहीन कहना विनयशीलता का परिचायक है। वह हनुमान जी से बल बुद्धि और विद्या तीनों की मांग करते हैं। इसमें अंतर्निहित है कि बुद्धि ही बल और विद्या को अर्जित करने वाली है। चूंकि वह बुद्धि में हीन अर्थात नीचे हैं, इसलिए बल और बुद्धि भी कम है। इसके साथ ही इसका दुरुपयोग करने वाली क्लेश वृत्ति अर्थात झगड़ालू स्वभाव तथा दुर्गुण भरने वाले विकार को दूर करना भी आवश्यक है। चूंकि यह सब कहीं अन्तस्थ होते हैं इसलिए इन्हें बलात् ले लेने की प्रार्थना की गई है।


#हनुमानचालीसा के पहले दोहे में श्री गुरु जी की वंदना के बाद रघुवीर श्रीराम को प्रणाम किया था। दूसरे दोहे में हनुमान जी को पवन कुमार कहकर स्मरण करने की बात की गई है। सुमिरों शब्द में बार बार नाम लेने की भावना निहित है।

इन दो दोहों के बाद श्री हनुमान चालीसा में चौपाई छंद चलता है।


आइए, इस शृंखला में हम भी बजरंग बली हनुमान जी का स्मरण कर उनसे प्रार्थना करें कि वह हमें बल बुद्धि और विद्या प्रदान करें।

#हनुमानचालीसा_व्याख्या_सहित 

#Hanumanchalisa

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#दूसराभाग। #दोहा

सोमवार, 14 अक्तूबर 2024

श्री हनुमान चालीसा: प्रथम दोहा

श्री गुरु चरण सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि।

बरनउं रघुबर बिमल जस, जो दायक फल चारि।।


#श्रीहनुमानचालीसा में कुल तीन दोहे और चालीस चौपाइयां हैं। यह पहला दोहा श्रीगुरू की वंदना करता है। यह दोहा #श्रीरामचरितमानस के अयोध्या काण्ड में भी है।

इस दोहे में तुलसीदास जी "परम श्रद्धेय श्री गुरुजी के चरणों में अपना शीश नवाते हैं। वह कहते हैं कि श्री गुरुजी के कमल रूपी चरण के रज अर्थात धूलि से अपने मन रूपी दर्पण को साफ कर भगवान श्रीराम के निर्मल यश का वर्णन करता हूं। वह श्रीराम जी, जिनके यश का वर्णन भी चारो प्रकार के फल का प्रदाता है।

चार प्रकार के फल का आशय है पुरुषार्थ चतुष्टय। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को चार फल कहा गया है जिसे प्राप्त करना मानव जीवन का चरम लक्ष्य है।


दोहे में "रघुबर" शब्द रघुकुल के परम प्रतापी राजा भगवान श्रीराम के लिए प्रयुक्त हुआ है। उनका चरित्र और व्यवहार ऐसा है जिससे उनके संबंध में की गई चर्चा विमल यश कही गई है। विमल अर्थात् किसी भी प्रकार के दोष दूषण से मुक्त। भगवान श्रीराम का चरित्र ऐसा ही है।

श्रीगुरू के चरण कमल के धूल से मन रूपी दर्पण को साफ करना!  ऐसा कलाप तुलसीदास जी ने बताया है। धूल से दर्पण साफ करना एक विशेष प्रविधि है। जब तैल आदि के धब्बे दर्पण पर पड़ जाते हैं तो उन्हें हटाने के लिए धूल की सहायता ली जाती है। धूल, सामान्यतया गंदा करती है किंतु दर्पण के मामले में वही स्वच्छ करने वाला उपादान है। श्रीगुरू के चरणों की धूल भी ऐसी उपयोगी है जो मन पर पड़े हुए मैल को हटा देती है।

तुलसीदास जी महान कवि हैं। #श्रीहनुमानचालीसा के इस प्रथम वंदना वाले दोहे में उन्होंने विशिष्ट वर्णन पद्धति का आश्रय लिया है।


इस चालीसा का आरंभ दोहा छंद से हुआ है। #दोहा एक अर्द्धसम मात्रिक छंद है। इसके पहले और तीसरे चरण बराबर होते हैं और मात्राएं 13-13 होती हैं। दूसरे और चौथे चरण भी समान मात्रा वाले होते हैं। यहां 11-11 मात्रा होती है। अर्द्धसम कहने का आशय है आधा समान। मात्रिक का अर्थ है, जिसमें मात्राओं की गणना का ध्यान रखा जाता है।

भाग - १

#एकधागा 

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सद्य: आलोकित!

हनुमान चालीसा: दूसरी चौपाई

 रामदूत अतुलित बल धामा। अंजनी पुत्र पवन सुत नामा।। दूसरी चौपाई #श्रीहनुमानचालीसा की दूसरी चौपाई में हनुमान जी को रामदूत कहा गया है और अतुलनी...

आपने जब देखा, तब की संख्या.