-भूपेन्द्र भारतीय
आम का मौसम शिखर पर है। कोई सुबह उठते ही #चार_आम दबा
रहा है तो कोई दो आम चूसकर दो-चार हो रहा है। कुछ नौसिखियें शाम का समापन आम के
जूस से कर रहे हैं। वहीं कुछ बुद्धिजीवी आम को चूस-चूसकर स्वाद लेने का आनंद ले
रहे हैं। इधर देखने में आया है कि डूड पीढ़ी आम को काटकर खाने में ही अपनी शान समझ
रही हैं ! इस बीच इसी मौसम में कटहल भी कोई कम तेवर नहीं दिखा रही हैं। उसका तेल
अलग ही चढ़ा हुआ है। उसके नाम से मेंगो डेमोक्रेसी में एक नया वाद ही चल निकला है,
“जिसे कई आरामपसंद बुद्धिजीवी कटहल-वाद कहने लगे हैं।”
एक तरफ आम आदमी आम मचकाने में मगन है। कटहल प्रेमी
कटहल-वाद चलाने में पूरा जोर लगा रहे हैं। वहीं मेंगो डेमोक्रेसी में कुछ कट रहा
है तो बहुत कुछ मेंगोमय हो रहा है।
हम सब जानते है कि लोकतंत्र में आम आदमी मेंगो की
तरह होता हैं। जिसे डेमोक्रेसी के सैनिक कभी भी चुस कर फेंक सकते हैं। जिस तरह से
कटहल को काटने के लिए चाकू पर हल्का-सा तेल लगाया जाता है, डेमोक्रेसी के सैनिक भी इसी तरह
से आम आदमी के वोट आम व खास चुनाव में काटते हैं। आम आदमी अपने को आम लोकतंत्र का
सिपाही समझता है लेकिन वह हर आम व सामान्य चुनाव में शिकार हो जाता है। मेंगो
डेमोक्रेसी में माननीयों का लोकतांत्रिक मिक्सर आये दिन ‛मेंगो
मेन’ नाम का
जूस बनाते रहते है। कभी पांच सितारा होटलों में कटकर, तो कभी
अंतरात्मा की आवाज़ के कारण डाक बंगलों व सर्किट हाउस में मेंगो मेन का “सर्वे भवन्तु सुखिनः” करके...!
इधर विद्वानों के मत अनुसार जब से मेंगो
डेमोक्रेसी में कटहल-वाद आया है बाकि सारे वाद इस वाद के सामने बेबुनियाद होते जा
रहे हैं। कटहल-वाद में राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं का ऐसा तगड़ा बघार लगाया जा रहा
है कि उसके सामने बाकि सारें वादों की सांसें फूल रही हैं। एक राज्य में जबतक
मेंगो मेन सरकार बनाता है, “तबतक
दूसरे राज्य में मेंगो डेमोक्रेसी करवट बदल लेती है। वहीं तीसरे राज्य से खबर आती
है कि कोई कच्ची-पक्की डेमोक्रेसी को ही तोड़ कर किसी रिसॉर्ट में ले गया
है।" बेचारी मेंगो डेमोक्रेसी के पांच साल होटल-होटल व एक राज्य से दूसरे राज्य
में कटहल-वाद से छुपने में ही निकल जाते हैं।
इधर आमों का मौसम चलता रहता है और आम आदमी आम
चूसते-चूसते टीवी पर यह मेंगो डेमोक्रेसी का मेगा ड्रामा देखने का आनंद भी उठाता
रहता है। कटहल-वाद के जनक लगे हैं डेमोक्रेसी को काटने-पीटने-जलाने में ! कुछ
पत्थर-वीर पत्थर फेंककर मेंगो डेमोक्रेसी पकने ही नहीं देना चाहते हैं। कोई अपनी
मेंगो मांगों के लिए रेलगाड़ियों को जला रहा है, तो कोई आम आदमी बने मेंगो ट्वीट कर रहा है। मौसम
विभाग हर बार की तरह इस बार भी आम से कुछ खास बारिश के संकेत बता रहा है। इधर
बाजार में अब सभी तरह के आम आसानी से खरीदें जा सकते हैं। बस आपकी जेब में कुछ खास
लोगों का फोटो लगा कागज पर्याप्त मात्रा में होना चाहिए। फिर आप बाजार से निकलते
हुए कुछ भी व कैसे भी आमोखास को खरीद सकते हो !
इन सब झंझटों से दूरी बनाकर भी कुछ भलें आम आदमी
चारों पहर तरह-तरह के आम दबा रहे हैं। कोई किसी फाईल को आगे बढ़ाने के नाम, तो कोई कम्प्यूटर के डाउन होते
सर्वर को गति देने के लिए आम (मेंगो डेमोक्रेसी) का सहारा ले रहा है। शाकाहारी आम
आदमी कटहल पकाकर ही अपने वादे पूरा कर रहा हैं। इन दिनों मेंगो डेमोक्रेसी में
चारों दिशाओं से हवा चल रही है। कहीं गर्मी कम हो रही है तो कहीं उमस बढ़ने लगी
है। लगता है बरखा-रानी अपनी फुहारों की यात्रा पर निकल चुकी है। देखते हैं आम आदमी
आमरस का आनंद कबतक ले पाता है, वहीं कटहल-वाद के झंडाबरदार
कहाँ तक अपनी साग पका पाते हैं व साख बचा पाते हैं....!
(कथावार्ता
आम प्रेमियों के लिए एक विशेष कोना रखता है। देश में आम का मौसम आते ही हर तरफ
वैष्णव भाव ज़ोर मारने लगता है, इससे प्रेरित हो #कथावार्ता ने आम प्रेमियों के सम्मान में एक कॉलम शुरू किया है। बीते दिन
ट्विटर परआम ट्विटर की बात चली थी, भूपेंद्र भारतीय का व्यंग्य इस कड़ी में पहला लेख --![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgRvWOtYsJySAPquGt0nO8RpJBPDP0yeEK6UGhE2hasX7_2L-VRS1XKWuJMSeWKQUUsxnKmVAxUuvk8-Q668xODxmqZuxRbQhK6-jnZoDNom5L-kAaiUrs3rcPXby-asT1ILQfRxU1Bf9lJIQtJIZTsLjLss2sKMq6mIvBnlrs2-ZngBa2d5vjnmkdp/s320/bhupendra.jpg) |
भूपेंद्र भारतीय |
भूपेंद्र भारतीय मध्यप्रदेश के एक महाविद्यालय में
वकील बनाते हैं। वह जाने माने व्यंग्यकार और स्तंभकार हैं। देश के प्रतिष्ठित
समाचार पत्र- पत्रिकाओं में आपके आलेख और व्यंग्य प्रकाशित होते रहते हैं। वह
घुमक्कड़ी के शौकीन हैं। व्यंग्य आधारित उनकी पुस्तक प्रकाशकों की मेज पर रखी हुई
है। - संपादक)
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