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बुधवार, 9 अप्रैल 2014

ज्यादा चालाक लोग तीन जगह चपोरते हैं

यह कहानी ज्यादा चालाक लोगों के लिए है.
शीर्षक है- ज्यादा चालाक लोग तीन जगह चपोरते हैं.
तीन दोस्त थे. एक सामान्य समझ का था, एक थोड़ा चालाक और एक ज्यादा चालाक. राह चलते तीनों का पैर आग पर पड़ गया. मैं जब आग कह रहा हूँ तो उम्मीद करता हूँ कि आप इसके दूसरे अर्थ को जरूर जानते होंगे. आग पर पैर पड़ने के बाद तीनों विचलित हो गए. मन घिना गया.
सामान्य समझ वाले ने वहीँ घास देखी और पैर पोंछ कर आगे बढ़ चला.
थोड़ा चालाक जो था, उसने सोचा कि देखें आखिर क्या है जो पैरों तले आया है. उसने पैर में लगी ...गन्दगी को हाथ में लेकर देखा. फिर पोंछ कर आगे बढ़ लिया.
जो ज्यादा चालाक था, उसने भी यह जानने के लिए कि क्या था, हाथ में लिया और ठीक से जानने के लिए जीभ पर रखा. चखा और तब जाना कि ओह! यह तो मैला है.
तीन जगह चपोरने वाली बात यहीं ख़तम हुई.
कल देश के आम चुनाव का पहला बड़ा और महत्त्वपूर्ण चरण शुरू हो रहा है. हम सब आगामी पाँच साल के लिए एक सरकार चुनने जा रहे हैं. एक निर्णायक मोड़ पर खड़े हैं. ऐसे में निर्णय लेने की घड़ी आ गयी है.
चुनाव आयोग ने ईवीएम में नोटा का एक बटन रखा है. यह बटन इनमें से किसी भी नहीं के लिए है. यह बटन महज हमारी असहमति के लिए है. इससे चुनाव परिणाम पर कोई असर नहीं पड़ेगा चाहे अस्सी फ़ीसदी लोग क्यों न नोटा बटन चुनें.
ढेर सारे उत्साही लोग इस बटन का प्रयोग करना चाहेंगे. इसलिए कि बता सकें कि उन्हें देश की संसदीय प्रणाली पर भरोसा नहीं है. ऐसे लोगों को आप किस कोटि में रखेंगे, आप स्वयं तय कर लें.
बाकी, कहानी का यह है कि कहानी वन में जाने के बाद भी आपके मन में बनी रहती है. सोचिये. सोचिये. सोचिये.
फिर निर्णय कीजिये.
शुक्रिया.

सद्य: आलोकित!

सच्ची कला

 आचार्य कुबेरनाथ राय का निबंध "सच्ची कला"। यह निबंध उनके संग्रह पत्र मणिपुतुल के नाम से लिया गया है। सुनिए।

आपने जब देखा, तब की संख्या.