-डॉ रमाकान्त राय
संस्कृत
के प्रसिद्ध कवि और शास्त्री पण्डितराज जगन्नाथ खूब चर्चित रहे हैं। वह दक्षिण
भारत में जन्मे, मुगल शासक शाहजहाँ के दरबार में रहे, दाराशिकोह की मित्रता पाई और शाहजहाँ की एक बेटी लवंगी से विवाह किया।
उन्होंने शस्त्र और शास्त्र दोनों में महारत पाई। ऐसी मान्यता है कि दरबार में
रहते हुए ही शाहजहाँ के राजकीय मल्ल को पटखनी दी थी। शाहजहाँ ने उन्हें 'सार्वभौम श्री शाहजहाँ प्रसादाधिगतपण्डितराज पदवीविराजितेन' की
उपाधि दी। उन्होंने काव्य की परिभाषा करते हुए लिखा था- रमणीयार्थ प्रतिपादक: शब्द: काव्यम्। यह परिभाषा साहित्यिक दुनिया में बहुत समादृत
हुई।
पण्डितराज जगन्नाथ की रचनाओं में काव्यात्मक
उत्कर्ष और भावगत प्रौढ़ता के दर्शन होते हैं। उनकी कविता प्रसादगुण से युक्त है।पण्डितराज
ने अपनी रचना रसगंगाधर में काव्य के स्वरूप, कारण, भेद-प्रभेद, वाणियों के भेद, रस, भाव, गुण, लक्षण, उपमा और अलंकारों का विवेचन किया है। यह
पूरा ग्रंथ आज उपलब्ध नहीं है। इस अधूरे ग्रंथ के सहारे भी कहा जा सकता है कि
सूत्रवृत्ति शैली में रचित इस ग्रंथ में विषय का बहुत ही सूक्ष्म, गम्भीर और पांडित्यपूर्ण विवेचन किया गया है। रसगंगाधर संस्कृत साहित्य की
आलोचना का प्रौढ़तम उदाहरण है। इसमें इनकी साहित्यिक प्रतिभा का चरम उत्कर्ष दिखलाई
पड़ता है।
उनकी लिखी पुस्तकों में रस गंगाधर, भामिनि विलास, पीयूष लहरी, यमुना वर्णन, रतिमन्मथ और मनोरमा कुच मर्दन
प्रसिद्ध हैं। उनकी लिखी पुस्तकों की सूची निम्न है-
पण्डितराज
जगन्नाथ विरचित ग्रंथ |
जगन्नाथ लवंगी से प्रेम करते थे। लवंगी शाहजहाँ की बेटी थी। मुगलों में शासकों की बेटियाँ विवाह नहीं कर पाती थीं। उनकी 'हैसियत' का दूल्हा नहीं मिल पाता था। रक्त की शुद्धता के प्रति मुगल अतिशय आग्रही थे। ऐसे में यह प्रेमसम्बन्ध मुगल काल के दौरान चर्चा में था। त्रिलोकनाथ पांडेय के उपन्यास 'प्रेमलहरी' में इस प्रकरण सहित उनके जीवन और रचना पर सरस चर्चा है। प्रेमलहरी वस्तुतः पण्डितराज के जीवन पर ही केन्द्रित ऐतिहासिक चरित गल्प है। इस उपन्यास के बारे में यहाँ पढ़ सकते हैं - ऐतिहासिक चरित गल्प : प्रेमलहरी
एकदा पण्डितराज जगन्नाथ को मुसलमान युवती से
प्रेम रखने पर काव्याचार्य भट्टोजी दीक्षित ने भरी सभा में प्रकारान्तर से
"म्लेच्छ" कह दिया। पण्डितराज ने इसका बुरा माना। वह चाहते तो धोबी
पछाड़ दाँव से वहीं दीक्षित जी को चित्त कर देते और मामला फरिया दिया होता। लेकिन
उन्होंने इसका रचनात्मक प्रतिशोध लेना तय किया।
पण्डितराज ने भट्टोजी दीक्षित की 'सिद्धान्त कौमुदी' की टीका 'प्रौढ़ मनोरमा' की न्यूनताओं का उद्घाटन
"मनोरमा कुच मर्दन" में किया। मनोरमा कुच मर्दन में जगन्नाथ ने भट्टोजी
दीक्षित की स्थापनाओं को छिन्न-भिन्न कर दिया है!
नागेश भट्ट, जिन्होंने रसगंगाधर की टीका की है, ने इस
प्रकरण को छंदोबद्ध किया है-