रविवार, 15 दिसंबर 2024

राजकपूर - 100 साल : एक धागा

राजकपूर - 100 साल : एक धागा

मैंने सिनेमा हॉल में #राजकपूर की बनाई पहली फिल्म "राम तेरी गंगा मैली" देखी। प्रयागराज के एक सिनेमा हॉल में लगी थी और मौसी के बेटे आए थे किसी काम से। तब मैं बी ए प्रथम वर्ष का छात्र था। मैंने राजकपूर की ख्याति सुनी थी। मंदाकिनी से परिचित था। फिल्म का गीत सबको प्रिय लगा था क्योंकि रवींद्र जैन को पारंपरिक धुनों पर शब्द सजाना आता था।

राम तेरी गंगा मैली में जब मंदाकिनी स्नान करती हैं तो वहां राजकपूर का उद्देश्य उनकी निर्मलता और पवित्रता का संज्ञान कराना था। इसलिए मंदाकिनी एकवसना होकर स्नान कर रही थीं - तू जिसकी खोज में आया है! बाद में फिल्म में गंगा अपने तरीके से बहती हैं और काशी, कोलकाता सब आता है। मुझे काशी को इस तरह ले आना रुचा नहीं लेकिन राजकपूर यह करते थे।

मंदाकिनी
Mandakini : Ram Teri Ganga Maili












    




हम लोगों ने दत्त चित्त होकर फिल्म देखी। बाहर निकलकर दोनों ही बुखार में थे।
राजकपूर यह बुखार ले आने वाले फिल्मकार थे।

राम तेरी गंगा मैली देखने से पहले मैं बॉबी देख चुका था। डिंपल कपाड़िया उस फिल्म में बहुत आकर्षक लगी थीं। वह उनकी पहली ही फिल्म थी और झूठ बोले कौवा काटे से वह छा गईं। जब बॉबी का गीत बजा, हम तुम एक कमरे में बंद हों तो वह भी खयालों में ले जाने वाले वाला गीत बन गया था।


बॉबी में वर्गीय संघर्ष था और इस वर्ग भेद को नए प्रेमी ही समाप्त कर सकते हैं। राजकपूर इस फिल्म के साथ बहुत सी कहानियां लेकर आए थे। उन्हें सनसनी बनाना आता था। चित्रहार, अखबारों के पन्ने और फिल्मी कलियां से होते हुए यह सब छनकर पहुंचता था।
फिल्म से वर्ग संघर्ष और चेतना तो क्या ही बनी, राज कपूर की छाप अवश्य बनी थी।
#राजकपूर100

इसी क्रम में कभी सत्यम शिवम सुंदरम का उल्लेख हुआ और वहां जीनत अमान थीं। स्त्री विमर्श करती हुई। रूपा। राज कपूर पात्र चुनकर ले आते थे। उनका उद्देश्य समाजवादी, साम्यवादी राज्य की स्थापना था। वह लाल टोपी रूसी धारण करने वाले फिल्मकार थे तो उन्हें समर्थन भी खूब मिलता था।







भारतीय समाज किंचित रूढ़िवादी हो चला समाज था जहां यह सब परम गोपनीय था तो राज कपूर वर्ग और जाति को तोड़ते हुए एक बंधे बंधाए सूत्र पर काम कर रहे थे। सत्यम शिवम सुंदरम ने इस सूत्र को सफल सिद्ध किया।

राजकपूर शो मैन बन चुके थे। उनका परिवार प्रतिष्ठित परिवार था और फिल्मी दुनिया में वही एक घराना था जो हिंदू था, वरना फिल्मों में ऐसे ऐसे लोग भर गए थे जो मुगले आजम, यहूदी और रज़िया सुल्तान बनाने और इतिहास की निर्मिति में जुटे हुए थे। इसका लाभ #राजकपूर को मिला।

राज कपूर को यह सूत्र कहां से मिला था, यह तो शोधकर्ता बताएंगे लेकिन मैंने यह देखा कि जागते रहो से लेकर संगम, मेरा नाम जोकर तक आते आते राज कपूर ने इसे सफलता की गारंटी के कसौटी पर अच्छी तरह कस लिया था। मेरा नाम जोकर में तो वह बहुविध यह ले आए। अलग अलग रूपाओं को लेकर उतरे।

जो राजकपूर श्री 420, आवारा आदि में साम्यवादी दिखाई देते हैं, वह एक झीना परदा था। असल चीज कुछ और ही थी।


तो राजकपूर ने जो दृश्य होना चाहिए था, उसे परिदृश्य बना दिया और परिदृश्य को मुख्य दृश्य।

उन्होंने दुनिया को एक सर्कस मान लिया और स्वयं एक जोकर बन गए।

#Rajkapoor


राज कपूर ने कुछ लोगों को लेकर एक दल बनाया और उन्हें अपने दल में सम्मिलित किया। लता मंगेशकर, मुकेश, शंकर जयकिशन, शैलेन्द्र, रवींद्र जैन आदि को लेकर उनके अपने आग्रह थे। उनकी टीम बनती थी।

जहां तक अभिनय का प्रश्न है, राज कपूर ने जहां स्वयं की छूट ली और खुद को निर्देशित किया वहां वह शुद्ध रूप से चार्ली चैपलिन के अनुकर्ता भर हैं। मेरा नाम जोकर में यह चरित्र सबसे अधिक मुखर होता है। अन्यत्र भी वह उसी मशीनीकृत अंदाज में जाने का प्रयास करते दिखते हैं, हाव भाव करते हुए।

जब वह तीसरी कसम में हीरामन की भूमिका में आए थे तो उनको एक गुणी अभिनेता के रूप में देखा जा सकता है। उनमें अभिनय की अपार संभावना थी लेकिन वह एक टैबू बनकर रह गए।




आने वाले समय में राज कपूर एक महान अभिनेता के रूप में समादृत होते रहेंगे। उन्होंने सिनेमा में सफल होना सिखाया। शो ऑफ करना सिखाया। अपने लोगों के साथ खड़ा रहकर एक मिसाल दी। वह एक ध्रुव थे। जो काम पृथ्वीराज कपूर ने कर दिया था, राजकपूर ने उसे आगे बढ़ाया।

वह सजग फिल्मकार थे। अपनी रुचि और दृष्टि में प्रखर। वह अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए लोगों को मनाना जानते थे। उन्होंने वह सब प्राप्त किया जो वह अपेक्षा करते थे।

आज उनके जीवन का 100वाँ वर्ष पूर्ण हुआ। राज कपूर को देश अपने तरीके से याद कर रहा है।

श्रद्धा के दो फूल मेरी तरफ से भी।


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