श्री हनुमान चालीसा शृंखला नवीं चौपाई |
श्री हनुमान चालीसा में आता है कि हनुमान जी के सहयोग से वानरराज सुग्रीव किष्किंधा के राजा बने तो उनका मंत्र पाकर विभीषण लंकेश बन गए। जब हनुमान जी श्री जानकी जी का पता लगाने लंका गए तो वहां उन्होंने नगर में घूम घूम कर सब कुछ अपने पर्यवेक्षण में ले लिया। इसी क्रम में वह विभीषण से मिल आए। लंका में विभीषण इस तरह थे जैसे दांतों के मध्य जिह्वा। हनुमान जी ने उनसे चर्चा की। इस चर्चा में ही यह सूत्र था कि क्या करना है।
विभीषण उन चरित्रों में हैं, जिन्हें अमरत्व प्राप्त है। हनुमान जी ने एक कुशल रणनीतिकार के रूप में विभीषण को समझाकर अपने पक्ष में कर लेने में सफलता पाई थी। विभीषण के श्रीराम के पक्ष में आ जाने से बहुत सी कठिनाइयां दूर हो गई थीं। "इसकी नाभि में बाण मारिए प्रभु" बताने वाले विभीषण न होते तो लंका के बहुत से भेद न खुलते और युद्ध लम्बा खिंच जाता।
हनुमान जी के इस महान कार्य को तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा में सम्मिलित किया है। उन्हें एक सफल मंत्रणाकार बताया है जिनकी सलाह से सुग्रीव राजा बने और विभीषण को लंका का अधिपति बनाया गया। इससे हनुमान जी के तीक्ष्ण बुद्धि, दूरदृष्टा स्वभाव और कौशल का पता चलता है।
श्री हनुमान चालीसा में हनुमान जी के बचपन के एक प्रसंग को अभिव्यक्त किया गया है। इसमें कहा गया है कि हनुमान जी ने बचपन में पृथ्वी से एक युग अर्थात 12 सहस्र योजन दूर स्थित सूर्य को मीठा फल समझकर निगल लिया था। हनुमान जी के बाल्यावस्था की यह कथा अतिप्रचलित है। इसी के बाद इंद्र ने राहु के कहने पर मारुति पर वज्र से प्रहार किया, जिससे उनकी ठुड्ढी, हनु टूट गई। वह मूर्छित हो गए। पवनदेव को जब यह पता चला तो उन्होंने अपना प्रवाह रोक दिया। संपूर्ण सृष्टि में त्राहि त्राहि मच गई। तब सभी देवताओं के प्रयत्न से हनुमान जी को जाग्रत किया गया और उन्हें विशिष्ट शक्तियों से युक्त कर दिया गया। उनका नाम भी हनुमान तभी पड़ा।
इस चौपाई में तुलसीदास जी ने पृथ्वी से सूर्य की जो दूरी बताई है, वह विज्ञान की गणना के बहुत निकट है। तुलसीदास जी ने सूर्य को निगल लेने का वर्णन अन्यत्र भी किया है - बाल समय रवि भक्ष लियो तब तीनहू लोक भयो अंधियारो!
सूर्य को निगल लेने वाले प्रसंग पर अव्यावहारिकता का प्रसंग उठाया जाता है किंतु यह सहज हो जाता है जब यह जान लिया जाए कि सूर्य और हनुमान दोनों ही रुद्र के अंश हैं। वाल्मीकि रामायण में जांबवान द्वारा कहलाया गया है कि हनुमान जी ने बचपन में सूर्य को निगलने के लिए चार सौ योजन की एक छलांग लगा दी थी। यह समुद्र लांघने के लिए उनके बल का स्मरण था।
तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा की इस चौपाई में हनुमान जी के बाल्यकाल का जो प्रसंग उठाया है वह बहुत गूढ़ है। किंचित लाक्षणिक भी। बचपन में ही खेल खेल में मारुति ने जो कर दिखाया, उसने उन्हें और भी बलवान तथा समृद्ध बनाया। श्री हनुमान चालीसा में उसका सुघड़ और काव्यात्मक उल्लेख है।
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