बुधवार, 25 दिसंबर 2024

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : तीसरी चौपाई

हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे।
कांधे   मूंज   जनेऊ   साजे।।
संकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जग वंदन।।

तीसरी चौपाई
श्री हनुमान चालीसा शृंखला
भाग - 5


श्री हनुमान चालीसा की तीसरी चौपाई में हनुमान जी के स्वरूप का वर्णन है। इसमें कहा गया है कि हनुमान जी के हाथ में वज्र रहता है। यह वज्र गदा रूप में है। जो विशिष्टता वज्र की है अर्थात जो शत्रुओं का नाश करने वाला कठोर धातु से निर्मित है, वह सदैव हनुमान जी के हाथ में रहता है। इसका आशय है कि वह सदैव युद्ध के लिए सन्नद्ध रहते हैं। उनके दूसरे हाथ में ध्वजा है। यह ध्वजा विजय का चिह्न है। यह परिचायक है कि हनुमान जी विजय का प्रतीक हैं। वह जहां हैं, वहीं विजय है।

हनुमान जी यज्ञोपवीत धारण करने वाले द्विज हैं। उन्होंने मूंज का जनेऊ अपने कंधे पर रखा हुआ है। यह जनेऊ उनके पवित्र स्वरूप का परिचायक है। गदा, ध्वज और जनेऊ! यह उनके बल, पराक्रम और पवित्रता के सूचक हैं।
ध्वजा उनकी विजयी उपस्थिति का सूचक है, वज्र शक्ति का और जनेऊ धर्म का।

श्री हनुमान चालीसा में इस चौपाई के दूसरी अर्द्धाली में हनुमान जी को भगवान शिव का स्वरूप (सुवन) कहा गया है। हनुमान जी के पिता महाबलशाली कपि केसरी हैं। इसलिए उन्हें केसरीनंदन कहा गया है। केसरी देवताओं के गुरु बृहस्पति के पुत्र थे। उनके छह पुत्र हुए - हनुमान, मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान, धृतिमान।
इनमें हनुमान जी सबसे बड़े थे जिनको महान तेजस्वी, महाप्रतापी कहकर समस्त संसार के लिए वंदनीय बताया गया है।

हनुमान जी एकादश रुद्र हैं। यह भगवान शिव का एक स्वरूप है। इस चौपाई के "सुवन" शब्द का अर्थ कोई कोई पुष्प और कोई "स्वयं" भगवान शिव लेता है। लेकिन यह बात समझना चाहिए कि हनुमान जी स्वयं महादेव ही हैं। तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस में सभी अध्यायों (काण्ड) के आरंभ में भगवान शिव की स्तुति की है किंतु सुंदरकांड में हनुमान जी की ही वंदना है क्योंकि वह स्वयं ही भगवान शिव हैं।

हनुमान जी के व्यक्तित्व का तेज और प्रताप ऐसा है कि वह समस्त संसार में पूजनीय हैं, वंदनीय हैं।

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सद्य: आलोकित!

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : तीसरी चौपाई

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