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बुधवार, 9 अक्तूबर 2013

कथावार्ता : यूपीए सरकार की कुछ तुगलकी नीतियां



यूपीए सरकार की आर्थिक विभ्रमता को हाल-फिलहाल के कुछ तुगलकी फैसलों से पहचाना जा सकता है. अभी महीना भर भी नहीं बीता कि हम आर्थिक मंदी की आहट महसूस कर रहे थे. केंद्र के कुछ मंत्री सोना गिरवी रखने की बात कर रहे थे. वित्त मंत्री लोगों से अपील कर रहे थे कि वे सोना न खरीदें. हम स्वयं आर्थिक आपातकाल के आसन्न संकट को देख रहे थे. सरकार ने भी इस खतरे को देखते हुए कई उपाय करने की घोषणा की थी. इन उपायों में सरकारी नौकरियों में एक साल तक भर्ती में रोक लगाने का फरमान भी था. कुछ ऐसे फैसले थे, मसलन मंत्रियों की ऐय्याशियों में कुछ कटौती, पञ्च सितारा होटलों में से ऑफिस आदि हटाना, बैठक न करना, इकोनामी क्लास में यात्रा करना, परिजनों से सुविधा छीन लिया जाना आदि जो अमूमन दो-तीन साल में एक बार सादगी दिखाने के गरज से भी लिया जाता है.
अब इस आर्थिक आपातकाल के मनहूस समय में, जब रुपया ऐतिहासिक गिरावट दर्ज रहा है (यद्यपि इन दिनों इसमें सुधार है), महँगाई अपने चरम पर है, डीजल, पेट्रोल की कीमतें आसमान छू रही हैं, शेयर बाजार में भारी उथल-पुथल का दौर है और कोई उपाय नहीं सूझ रहा है, सरकार ने आनन-फानन में सातवें वेतन आयोग के गठन को मंजूरी दे दी है. ध्यान रहे कि अभी कुछ दिन पहले तक सरकार की कार्ययोजना में यह शामिल नहीं था. यद्यपि यह समय की मांग होती है तब भी इसे बिना किसी कार्ययोजना के लागू किया जाना समझ में नहीं आता! कहा जा रहा है कि सरकार के इस फैसले से अस्सी लाख कर्मचारियों को लाभ मिलेगा. एक मंत्री ने तो यहाँ तक कहा कि इससे सरकारी नौकरियों के प्रति लोगों का रुझान बढ़ेगा. सच है. ये मंत्रीगण आम लोगों को ध्यान में रखकर फैसले करते/ नीतियां बनाते तो उन्हें पता चलता कि मध्यवर्ग और निम्न वर्ग में सरकारी नौकरियों के प्रति कितना आकर्षण है. यहाँ विवेच्य यह है कि सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें जब लागू होंगी तो उनसे कुछ मुट्ठी भर लोगों को ही फायदा होगा. तब निजी क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारियों के यहाँ किस तरह का ग़दर मचेगा, आसानी से समझा जा सकता है. सातवें वेतन आयोग के गठन की सिफारिशें ऐसे समय में की गई हैं, जब अभी छठे वेतन आयोग की विसंगतियों को ठीक से दूर भी नहीं किया जा सका है. उसके दुष्परिणामों का ठीक से आकलन भी नहीं किया जा सका है. यह आने वाली सरकार पर एक तरह से भीषण दबाव उत्पन्न करेगा.
खाद्य सुरक्षा की गारंटी देने वाला विधेयक भी इसी समय में आया है. यह विधेयक अपने उद्देश्य में जितना भी अच्छा क्यों न हो, यह हमपर एक अतिरिक्त बोझ की तरह पड़ने वाला है. इसमें सबसे तुगलकी बात यह है कि इसे लागू करने में एक बड़ी धनराशि खर्च होगी. यह योजना को लागू करने पर व्यय होगी.
सरकार ने रिजर्व बैंक के हवाले से एक सूची जारी की है जिसमें विकसित, अल्पविकसित और अविकसित राज्यों के नाम हैं. दुर्भाग्य से अपना उत्तम प्रदेश भी इसमें शामिल है. बिहार तो मान लीजिये कि उसका हकदार ही है. गुजरात को अल्प विकसित राज्यों की सूची में रखा गया है. जहाँ के विकास की धूम मची है. उत्तराखंड को विकसित कहा गया है. इस सूची में अनेकों विसंगतियां हैं. यह शुद्ध रूप से राजनीतिक गुणा-गणित को ध्यान में रखकर बनाई गई है. इस सूची के जारी होने का मतलब है, अविकसित राज्यों को खजाने से धन मुहैया कराना. बिहार के लोग तो इसे विशेष राज्य के दर्जा की तरह परिभाषित कर रहे हैं. सरकार की नजर वैसे भी बिहार पर पहले से है. उत्तर प्रदेश में भी जिस तरह से मुलायम सिंह पर सीबीआई जांच हटाकर सरकार मेहरबान हुई है, वह आसानी से समझा जा सकता है. गुजरात को अल्पविकसित राज्यों में गिनने का भी राजनीतिक मकसद है. यह बताने की कोशिश कि जिस गुजरात के मुख्यमंत्री विकास का ढिंढोरा पीट रहे हैं, उस गुजरात को रिजर्व बैंक अविकसित की श्रेणी में रखता है. यह गुजरात के गुब्बारे की हवा निकालने की तरह है.
क्या कोई बता सकता है कि चुनावी शिगूफों के अलावा इन घोषणाओं का लक्ष्य क्या है? इनका महत्व क्या है? रणनीतिकार कहते हैं कि यह चुनावी साल में यूपीए सरकार का तोहफा है. क्या वाकई इसे तोहफा माना जाना चाहिए? ऐसे समय में जब पूँजी बाजार पर बाहरी ताकतों का कब्ज़ा बढ़ता जा रहा है. सरकार कई निर्णय लेने में हिचक रही है और लिए जा रहे तमाम निर्णय हमें और ज्यादा बड़े दुश्चक्र में उलझा रहे हैं, इस तरह के निर्णय एक दूसरे तरह के दुश्चक्र में फंसा रहे हैं. आप देखें कि सरकार के तमाम निर्णयों में की जा रही देरी और इस तरह के लोक-लुभावन घोषणाएं एक तरह का अनिश्चितता भरा माहौल बना रही हैं. ऐसे अनिश्चितता भरे माहौल में हमें अंतिम विकल्प दिया जायेगा कि हम अपने तमाम क्षेत्रों को विदेशी पूँजी निवेश के आसान शर्तों पर खोल दें. अभी यह बीमा, उड्डयन, संचार, और इसी तरह के अन्यान्य क्षेत्रों के लिए खोला भी जा रहा है और उसकी पृष्ठभूमि भी बनाई जा रही है.
कोई रास्ता बचता है क्या?


--डॉ. रमाकान्त राय.

३६५ ए/१, कंधईपुर, प्रीतमनगर,
धूमनगंज, इलाहाबाद. २११०११
      ९८३८९५२४२६  



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