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सोमवार, 8 अप्रैल 2024

ग़ज़ल : राजीव राय क्यों इतरा रहे हैं!

बेल का शर्बत तो पिला रहे हैं,

कहंतरी में क्या हिला रहे हैं!


भुने हुए काजू रक्खे हैं प्लेट में

जुबान क्यों अपनी चला रहे हैं!


पूरा समाजवाद उतरा है फाटक में

राजीव राय क्यों इतरा रहे हैं!


जिसने उजाड़ दी मासूमों की दुनिया

कब्र पर पुष्प क्यों बिखरा रहे हैं!


मेन बात ये है कि कहता है गुड्डू

ये अशराफ सारे कहां जा रहे हैं!




सद्य: आलोकित!

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