अर्चना भैंसारे को उनके कविता संग्रह' कुछ बूढ़ी उदास औरतें' ( मेधा बुक्स
से प्रकाशित) पर साहित्य अकादेमी का युवा पुरस्कार मिला है। बधाई हो ।
कविता प्रेमियों के संग साझा है उनकी एक कविता :
कहीं कुछ तो है
इस वक़्त जबकि आधी रात
गुज़र गई है
घड़ी के काँटे
दौड़ रहे हैं एक-दूसरे के पीछे
तुम सो रहे हो... !
इस वक़्त –
कोई पागल बुदबुदा रहा होगा कई शब्द
कोई मेहनतकश सोच रहा होगा
बची मजूरी के बारे में
कोई बच्चा खेल रहा होगा नींद में ही
मैदान पर
कोई औरत सजधज कर बैठी होगी
दरवाज़े पर
इस वक़्त –
जब तुम बदलते हो करवट
बदल रही होंगी सरकारी नीतियाँ
बदल रही होंगी
हमारे नेता के भाषण की लाइनें
बदल रहे होंगे चीज़ों के दाम
बदल रहे होंगे पुरानी किताबों के कवर
इस वक़्त –
जब तुम डूब रहे हो स्याह अँधेरे में
नींद के बीच
कही कुछ तो है
जिसने हराम कर रखी है नींद... !
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( 'सृजनगाथा' से साभार साझा)
कहीं कुछ तो है
इस वक़्त जबकि आधी रात
गुज़र गई है
घड़ी के काँटे
दौड़ रहे हैं एक-दूसरे के पीछे
तुम सो रहे हो... !
इस वक़्त –
कोई पागल बुदबुदा रहा होगा कई शब्द
कोई मेहनतकश सोच रहा होगा
बची मजूरी के बारे में
कोई बच्चा खेल रहा होगा नींद में ही
मैदान पर
कोई औरत सजधज कर बैठी होगी
दरवाज़े पर
इस वक़्त –
जब तुम बदलते हो करवट
बदल रही होंगी सरकारी नीतियाँ
बदल रही होंगी
हमारे नेता के भाषण की लाइनें
बदल रहे होंगे चीज़ों के दाम
बदल रहे होंगे पुरानी किताबों के कवर
इस वक़्त –
जब तुम डूब रहे हो स्याह अँधेरे में
नींद के बीच
कही कुछ तो है
जिसने हराम कर रखी है नींद... !
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( 'सृजनगाथा' से साभार साझा)