मंगलवार, 20 अप्रैल 2021

मुल्ला नसीरुद्दीन की दो कहानियाँ

१.

 

मुल्ला भीख मांगने गया। एक सम्पन्न घर देखकर उसने गुहार लगाई। घर में बहू थी। उसने मुल्ला को भीख देने से इन्कार कर दिया और भगा दिया। मुल्ला निराश होकर अपना मुँह और झोला लटकाए चल पड़ाकुछ दूर जाकर ही उस घर की मालकिन, सास आते हुए दिखी। उसने पूछा- क्या हुआ मुल्ला? 

मुल्ला बोला- तुम्हारी बहू ने भीख भी नहीं दी। 

सास ने कहा- अच्छा! उसकी यह मजाल। घर चलो। 

मुल्ला लौटा। घर आकर सास ने कुर्सी निकाली। कुछ पल बैठी रही। फिर दरवाजे पर जाकर मुल्ला से कहा- जाओ, भीख नहीं मिलेगी? मेरे रहते बहू कौन होती है मना करने वाली।

 

२.

 

मुल्ला एकबार अपने दोस्त के घर गया। दोस्त ने उसे शराब परोसी। मुल्ला ने कहा कि मैं शराब नहीं पीऊँगा। 

एक तो मैं मुसलमान हूँ और हमलोगों में शराब हराम है।

दूसरी बात, मैंने अपनी मरती बीवी को वादा किया था कि कभी शराब को हाथ भी नहीं लगाऊंगा।

और तीसरी बात यह कि मैं घर से पीकर आया हूँ

 

-कथावार्ता की प्रस्तुति!


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शुक्रवार, 9 अप्रैल 2021

घुमक्कड़ी के शीर्ष पुरुष : राहुल सांकृत्यायन

-डॉ रमाकान्त राय

मेरे स्कूल के दिनों में ही यह धारणा बनी थी और खूब आतंकित करती थी कि राहुल सांकृत्यायन संस्कृत, अङ्ग्रेज़ी, तिब्बती, ल्हासा, चीनी आदि 84 भाषाओं के जानकार थे। उनकी किताब "तुम्हारी क्षय" में उन्हें 26 भाषाओं का ज्ञाता कहा गया है। उनका यात्रावृत्त "अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा" पाठ के रूप में था। उसमें एक शेर था-

          सैर कर दुनिया की गाफिल, ज़िंदगानी फिर कहाँ।

           ज़िंदगानी फिर मिली तो, नौजवानी फिर कहाँ॥

और यह शेर जैसे मंत्र की तरह याद हो गया था। कतई रोमांटिक था यह। कालांतर में राहुल सांकृत्यायन की कई कृतियों से परिचित होने का मौका मिला। इसमें "वोल्गा से गंगा" की अनेकश: चर्चा सुनता था। "वोल्गा से गंगा" नाम ऐसा था कि यात्रावृत्त की छवि बनती थी

यह जानना आवश्यक है कि "वोल्गा से गंगा" यात्रावृत्त नहीं है। यह काल्पनिक कहानियों का संग्रह है, जिसमें आर्यों के विषय में कई मनगढ़ंत बातें, उलजलूल स्थापनाएं हैं। राहुल सांकृत्यायन का असली नाम केदारनाथ पाण्डेय था। मुझे कुछ वर्ष पूर्व उनके गांव जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। यह आजमगढ़, उत्तर प्रदेश में अवस्थित है।  उत्तर प्रदेश सरकार उनके सम्मान में उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम की एक बस का परिचालन उनके गांव से दिल्ली के लिए करती है। यह बस प्रतिदिन प्रातःकाल इसी गांव से खुलती है और दिल्ली जाती है। एक बस दिल्ली से चलकर देर शाम इस गांव में पहुंचती है।

राहुल सांकृत्यायन ने विपुल साहित्य सृजन किया है। बौद्ध धर्मग्रंथों के खोज और उनका हिन्दी रूपान्तरण कर उन्होंने साहित्य की खूब सेवा की है। तिब्बत और नेपाल आदि से अनेकों बौद्ध ग्रन्थों को प्रकाश दिया। उन्होंने हिन्दी साहित्य में आदिकाल को सिद्ध सामंत काल कहा है और यह एक मजबूत स्थापना है। उन्होंने त्रिपिटक का हिन्दी अनुवाद किया। शास्त्रज्ञ होने के साथ-साथ निःसंदेह वह घुमक्कड़ी के बहुत बड़े आइकन हैं। उन्होंने खूब विदेश यात्रा भी की। श्रीलंका, तिब्बत और रूस की कई बार। आखिरी दिनों में रूस गए। लौटे। उनका निधन दार्जिलिंग में हुआ। उन्होंने अपने घुमक्कड़ी को खूब प्रचारित किया। बौद्ध बन गए और मार्क्सवादी कम्यून के लिए समर्पित हुए।

राहुल सांकृत्यायन का समूचा लेखन पश्चिमी सभ्यता के रंग से अनुप्राणित है। इसलिए उसपर मिशनरीज की छाप है। उनका विपुल लेखन और कम्यून उन्हें खूब चर्चित करता है।

अपने एक लेख में राहुल सांकृत्यायन ने स्वामी सहजानंद सरस्वती को बहुत सम्मान से याद किया है। भारत में किसान आंदोलन को उठाने और आगे बढ़ाने में स्वामी सहजानन्द सरस्वती के योगदान को उन्होंने बहुत उदारमन से स्वीकार किया है।

घुमक्कड़ी के लिए हिंदी में जब कुछेक रचनाकारों का उल्लेख किया जाता है तो राहुल सांकृत्यायन अग्रगणित किए जाते हैं। मेरी तिब्बत यात्रा, यूरोप यात्रा और एशिया के दुर्गम भूखंडों में उनकी ठीक ठाक कृतियां हैं।

आज जन्मदिन पर आजमगढ़ के इस केदारनाथ पाण्डेय का भावपूर्ण  स्मरण!

 

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असिस्टेंट प्रोफेसर, हिन्दी

राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय,

इटावा, उत्तर प्रदेश

पिन 206001

मोबाइल नंबर 983895242- royramakantrk@gmail.com

रविवार, 4 अप्रैल 2021

नए कालिदास का उदय

-डॉ रमाकान्त राय

जब विद्योत्तमा ने सभी पंडितों को हरा दिया तो अपमानित पंडितों ने निश्चित किया कि इस विदुषी का अहंकार टूटना चाहिए। विद्वान को पराजित करने के लिए सभी विद्वानों ने मंत्रणा की। परिणामस्वरूप उचित व्यक्ति की तलाश शुरू हुई। विद्वान को मूर्ख ही हरा सकता है - यह निश्चित है।

उन्हें सहज ही उचित व्यक्ति मिल गया। वह आलू से सोना बना सकने की तकनीक जानता था और जिस डाल पर बैठा था, उसे ही कुल्हाड़ी से काट रहा था। डाल कटती तो वह भी निश्चित ही धराशायी होता। इससे उपयुक्त व्यक्ति कौन होगा? पंडितों ने निश्चित किया। बताया कि यह अज्ञात राजपरिवार का स्वाभाविक कुमार है।  यह कालिदास थे।

नई दुनिया, दैनिक समाचार पत्र (04 अप्रैल 2021) का संपादकीय पृष्ठ, स्तम्भ- अधबीच  

समझा बुझाकर सबने कालिदास को विद्योत्तमा के सम्मुख शास्त्रार्थ हेतु प्रस्तुत किया। "मौन भी अभिव्यंजना है!" यह उक्ति तो परवर्ती है। विद्वानों ने मौन की, संकेत की अभिव्यक्ति अपने तरीके से करने का निश्चय किया। कालिदास को रटा रटाया उत्तर संकेतों में ही देने के लिए मना लिया।

विद्योत्तमा ने मौन के, संकेत आधारित शास्त्रार्थ को स्वीकार कर लिया और पहली शास्त्रोक्ति की- "ईश्वर एक है!" इसके लिए उन्होंने एक ऊंगली उठाई। कहते हैं कि कालिदास को समझ में आया कि यह लड़की मेरी एक आंख फोड़ना चाहती है। प्रत्युत्तर में हिंसक होते हुए कालिदास ने दो ऊंगली उठाई- "मैं तुम्हारी दोनों आंखें फोड़ दूंगा।" सभा में हड़कंप मच गया।

विद्वानों ने व्याख्या की- "ईश्वर आत्मा और परमात्मा का द्वैत है। बिना इस द्वैत को जाने तत्त्व की मीमांसा कैसे हो सकती है!" फिर आउटरेज शुरू हो गया। ट्वीट-रिट्वीट हुए। विद्योत्तमा सहित सभी वामी-कामी, विद्वत समाज ने इस व्याख्या को स्वीकार किया। उस शोरगुल में और सभी विषय इतर हो गए। सभा डीरेल हो गई। विषय से इतर कूदने-फांदने में मान्यता प्राप्त विद्वानों को कौन हरा सकता है।

नतीजा यह हुआ कि Abs, समुद्री स्नान, आलू ही आलू, मेड इन मदुरै, उत्तर-दक्षिण, तीन कानून, आसमानी किताब, हम दो हमारे दो आदि की चहुंओर अनुगूंज होने लगी। एक ने तो कहा कि राजा को पदच्युत कर कालिदास का अभिषेक होना चाहिए। अविलम्ब। ईवीएम पर भरोसा कौन करता है। लोकतंत्र नष्ट नहीं करना है, न ही होने देना है। विद्वानों, पंडितों, क्रोनी-गठजोड़, हावर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर, कौवा-तीतर, काली पहाड़ी सबने कालिदास के लिए बहुत माहौल बनाया।

मसल है कि वीरता की नकल नहीं हो सकती। इतिहास को दुहराया नहीं जा सकता। लेकिन देश-दुनिया में प्रयास जारी हैं। दूसरे कालिदास का कभी भी उदय हो सकता है! यद्यपि कई प्रयास विफल हो गए हैं, तथापि लोगों ने आशा का त्याग नहीं किया है।

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असिस्टेंट प्रोफेसर, हिन्दी

राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालयइटावा, उत्तर प्रदेश

 9838952426, royramakantrk@gmail.com

गुरुवार, 1 अप्रैल 2021

Kathavarta : कथावार्ता में बोधकथा

ब्याज दरों में कटौती प्रस्ताव के "ओवरसाइट" पर एक कहानी याद आ गई।

एक व्यक्ति अपना मुंह और झोला लटकाए जा रहा था। उसकी कमर झुककर दोहरी हो गई थी। उसे देखकर ही अनुमान होता था कि उसपर कई अदृश्य बोझ हैं। रास्ते में उसका हमराही हुआ मुल्ला नसरुद्दीन और उसका शागिर्द।

राह चलते मित्रता बढ़ी तो मुल्ला ने पूछा- भाई, झोला जैसा मुंह क्यों लटकाए हो?’ उस व्यक्ति ने व्यथा कथा सुनाई। उसका घर परिवार उजड़ चुका था। बचत आदि लूट ली गई थी। फसल आवारा सांड बरबाद कर चुके थे। रोजगार चौपट हो गया था। वह बहुत दुखी था। उसका दुख उसके मुंह और झोले से छलक रहा था।

          उस व्यक्ति ने कहा कि उसके जीवन में खुशी का एक क्षण भी नहीं है। यह सुनकर मुल्ला नसरुद्दीन बहुत दुखी हुआ। उसने सांत्वना दी। सब्जबाग दिखाए। किन्तु उस व्यक्ति का मुंह लटका रहा। तब मुल्ला ने कहा कि वह उसका दुख दूर कर सकता है, बशर्ते वह अपना झोला उसे दे दे।

          व्यक्ति ने कहा कि झोले में उसकी शेष जमापूंजी है। वह ऐसा कैसे कर सकता है। संकेत पाकर, एक लापरवाही भरे क्षण में मुल्ला के शागिर्द ने एक झटके में उससे झोला झटक लिया और यह गया वह गया, हो गया। व्यक्ति ने पीछा किया। मुल्ला भी पकड़ने भागा। व्यक्ति  बहुत चीखा, चिल्लाया। अंततः थककर बैठ गया। सांझ ढल रही थी। 'जीवन में और न जाने कितने कष्ट देखने को हैं', - वह सोचने लगा। अचानक उसने देखा कि उसका झोला उसके सामने वाले वृक्ष पर लटका है। वह सोत्साह आगे बढ़ा। अरे! यह तो उसी का झोला है। वह खिल गया। आगे बढ़कर झोला उतारा। देखा, सभी वस्तुएं सही सलामत थीं। उसके हर्ष का पारावार न रहा।

          तब उसके समक्ष मुल्ला नसरुद्दीन प्रकट हुआ। आदमी ने अपना झोला छिपा लिया।

          मुल्ला ने कहा – “तुम तो बहुत खुश दिख रहे हो!

          उसने कहा - "हां। आज मैं बहुत प्रसन्न हूं।"

          मुल्ला बोला - "किंतु अभी कुछ देर पहले तो तुम कह रहे थे कि तुम्हारे जीवन में खुशी का एक क्षण भी नहीं है!"

          मुझे नहीं लगता कि कहानी में और कुछ कहने को शेष रह जाता है!

          कहनी गई वन में, सोचो अपने मन में।

          कहने वाला झूठा, सुनने वाला सच्चा।।

 

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-डॉ रमाकान्त राय

https://twitter.com/RamaKantRoy_

सद्य: आलोकित!

आर्तिहर : मानस शब्द संस्कृति

करहिं आरती आरतिहर कें। रघुकुल कमल बिपिन दिनकर कें।। आर्तिहर : मानस शब्द संस्कृति  जब भगवान श्रीराम अयोध्या जी लौटे तो सबसे प्रेमपूर्वक मिल...

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