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शनिवार, 14 सितंबर 2013

रामदास- कीर्तन में हत्या की कथा

        आज मेरे प्रिय कवि रघुवीर सहाय की यह बहुत प्रसिद्ध कविता। कविता क्या हैआम आदमी की पीड़ा का बयान है। छंद मेंखासकर चौपाई जैसे छंद में बंधकर यह और भी मार्मिक हो गयी है। तुलसीदास के बाद चौपाई का जैसा प्रयोग यहाँ हैवह रामदास जैसे लोगों की हत्या के प्रसंग को कीर्तन की शक्ल दे देता है। कीर्तन की शक्ल में आकर यह उत्सव में बदल जाता है और अंततः एक विभीषक आख्यान में। आप भी पढ़िए इसे।  संग्रह, जिसमें यह कविता संकलित है, का नाम भी खासा मौजूं है- हँसो हँसो जल्दी हँसो..

 

रामदास

          चौड़ी सड़क गली पतली थी
          दिन का समय घनी बदली थी
          रामदास उस दिन उदास था
          अंत समय आ गया पास था
उसे बता यह दिया गया था उसकी हत्या होगी।

          धीरे धीरे  चला  अकेले
          सोचा साथ किसी को ले ले
          फिर रह गयासड़क पर सब थे
          सभी मौन थे सभी निहत्थे
सभी जानते थे यह उस दिन उसकी हत्या होगी।

          खड़ा हुआ वह बीच सड़क पर
          दोनों हाथ पेट पर रख कर
          सधे क़दम रख कर के आए
          लोग सिमट कर आँख गड़ाए
लगे देखने उसको जिसकी तय था हत्या होगी।

          निकल गली से तब हत्यारा
          आया उसने नाम पुकारा
          हाथ तौल कर चाकू मारा
          छूटा लोहू  का फव्वारा
कहा नहीं था उसने आख़िर उसकी हत्या होगी।

          भीड़ ठेल कर लौट गया वह
          मरा पड़ा है रामदास यह
          देखो-देखो बार बार कह
          लोग निडर उस जगह खड़े रह
लगे बुलाने उन्हें जिन्हें संशय था हत्या होगी!

                                                                  

                                                                   --- रघुवीर सहाय

 

सद्य: आलोकित!

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