जब नादिया मुराद को शांति का नोबेल पुरस्कार दिए जाने की घोषणा हुई तो मुझे तापसी मलिक की याद आई। नादिया कुर्द समुदाय से ताल्लुक रखती हैं और आईएसआईएस ने उनका अपहरण कर लिया था। उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और कई बार बेचा गया। किसी तरह भागकर उन्होंने अपनी जान बचाई और बलात्कार के खिलाफ मुहिम शुरू की। नादिया मुराद की कहानी दिलचस्प है। बीबीसी ने नादिया मुराद की आपबीती प्रस्तुत की है। हमें भी पढ़ना चाहिए।
नादिया मुराद की आपबीती-
"कथित इस्लामिक स्टेट के चरमपंथियों के आने से पहले मैं अपनी मां और भाई बहनों के साथ उत्तरी इराक़ के शिंजा के पास कोचू गांव में रहती थी. हमारे गांव में अधिकतर लोग खेती पर निर्भर हैं. मैं तब छठी कक्षा में पढ़ती थी. हमारे गांव में कोई 1700 लोग रहते थे और सभी लोग शांतिपूर्वक रहते थे. हमें किसी तरह की कोई चेतावनी नहीं मिली थी कि आईएस शिंजा या हमारे गांव पर हमला करने जा रहा है।
03 अगस्त, 2014 की बात है, जब आईएस ने यज़ीदी लोगों पर हमला किया. कुछ लोग माउंट शिंजा पर भाग गए, लेकिन हमारा गाँव बहुत दूर था. हम भागकर कहीं नहीं जा सकते थे. हमें 3 से 15 अगस्त तक बंधक बनाए रखा गया. खबरें आने लगी थीं कि उन्होंने तीन हज़ार से ज़्यादा लोगों का क़त्ल कर दिया है और लगभग 5,000 महिलाओं और बच्चों को अपने क़ब्ज़े में ले लिया है. तब तक हमें हक़ीक़त का अहसास हो चुका था.
इस दौरान चरमपंथी आए और हमारे हथियार क़ब्ज़े में ले लिए. हम कुछ नहीं कर सकते थे. हम पूरी तरह घिर चुके थे. हमें चेतावनी दी गई कि हम दो दिन के अंदर अपना धर्म बदल लें. 15 अगस्त को मैं अपने परिवार के साथ थी. हम बहुत डरे हुए थे क्योंकि हमारे सामने जो घटा था, उसे लेकर हम भयभीत थे. उस दिन आईएस के लगभग 1000 लड़ाके गांव में घुसे. वे हमें स्कूल में ले गए. स्कूल दो मंज़िला था. पहली मंज़िल पर उन्होंने पुरुषों को रखा और दूसरी मंज़िल पर महिलाओं और बच्चों को. उन्होंने हमारा सब कुछ छीन लिया. मोबाइल, पर्स, पैसा, ज़ेवर सब कुछ. मर्दों के साथ भी उन्होंने ऐसा ही किया. इसके बाद उनका नेता ज़ोर से चिल्लाया, जो भी इस्लाम धर्म क़बूल करना चाहते हैं, कमरा छोड़कर चले जाएं.
हम जानते थे कि जो कमरा छोड़कर जाएंगे वो भी मारे जाएंगे. क्योंकि वो नहीं मानते कि यज़ीदी से इस्लाम क़बूलने वाले असली मुसलमान हैं. वो मानते हैं कि यज़ीदी को इस्लाम क़बूल करना चाहिए और फिर मर जाना चाहिए. महिला होने के नाते हमें यक़ीन था कि वे हमें नहीं मारेंगे और हमें ज़िंदा रखेंगे और हमारा इस्तेमाल कुछ और चीज़ों के लिए करेंगे. जब वो मर्दों को स्कूल से बाहर ले जा रहे थे तो सही-सही तो पता नहीं कि किसके साथ क्या हो रहा था, लेकिन हमें गोलियां चलने की आवाज़ें आ रही थी. हमें नहीं पता कि कौन मारा जा रहा था. मेरे भाई और दूसरे लोग मारे जा रहे थे. सभी मर्दों को गोली मार दी। वे नहीं देख रहे थे कि कौन बच्चा है कौन जवान और कौन बूढ़ा। कुछ दूरी से हम देख सकते थे कि वो लोगों को गांव से बाहर ले जा रहे थे. लड़ाकों ने एक व्यक्ति से एक लड़का छीन लिया, उसे बचाने के लिए नहीं. बाद में उन्होंने उसे स्कूल में छोड़ दिया. उसने हमें बताया कि लड़ाकों ने किसी को नहीं छोड़ा और सभी को मार दिया.
जब उन्होंने लोगों को मार दिया तो वे हमें एक दूसरे गांव में ले गए. तब तक रात हो गई थी और उन्होंने हमें वहाँ स्कूल में रखा. उन्होंने हमें तीन ग्रुपों में बांट दिया था. पहले ग्रुप में युवा महिलाएं थी, दूसरे में बच्चे, तीसरे ग्रुप में बाक़ी महिलाएं. हर ग्रुप के लिए उनके पास अलग योजना थी. बच्चों को वो प्रशिक्षण शिविर में ले गए. जिन महिलाओं को उन्होंने शादी के लायक़ नहीं माना उन्हें क़त्ल कर दिया, इनमें मेरी मां भी शामिल थी. हमें लड़ाकों में बांट दिया गया। रात में वो हमें मोसुल ले गए. हमें दूसरे शहर में ले जाने वाले ये वही लोग थे जिन्होंने मेरे भाइयों और मेरी मां को क़त्ल किया था. वो हमारा उत्पीड़न और बलात्कार कर रहे थे. मैं कुछ भी सोचने समझने की स्थिति में नहीं थी. वे हमें मोसुल में इस्लामिक कोर्ट में ले गए. जहाँ उन्होंने हर महिला की तस्वीर ली. मैं वहां महिलाओं की हज़ारों तस्वीरें देख सकती थी. हर तस्वीर के साथ एक फ़ोन नंबर होता था. ये फ़ोन नंबर उस लड़ाके का होता था जो उसके लिए जिम्मेदार होता था. तमाम जगह से आईएस लड़ाके इस्लामिक कोर्ट आते और तस्वीरों को देखकर अपने लिए लड़कियां चुनते. फिर पसंद करने वाला लड़ाका उस लड़ाके से मोलभाव करता जो उस लड़की को लेकर आया था. फिर वह चाहे उसे ख़रीदे, किराए पर दे या अपनी किसी जान-पहचान वाले को तोहफ़े में दे दे.
पहली रात जब उन्होंने हमें लड़ाकों के पास भेजा. बहुत मोटा लड़ाका था जो मुझे चाहता था, मैं उसे बिल्कुल नहीं चाहती थी. जब हम सेंटर पर गए तो मैं फ़र्श पर थी, मैंने उस व्यक्ति के पैर देखे. मैं उसके सामने गिड़गिड़ाने लगी कि मैं उसके साथ नहीं जाना चाहती. मैं गिड़गिड़ाती रही, लेकिन मेरी एक नहीं सुनी गई. एक मुस्लिम परिवार ने मुझे पनाह दी। एक हफ़्ते बाद मैंने भागने की कोशिश की. वे मुझे कोर्ट मे ले गए और सज़ा के तौर पर छह सुरक्षा गार्डों ने मेरे साथ बलात्कार किया. तीन महीने तक मेरा यौन उत्पीड़न होता रहा.
इस इलाक़े में चारों तरफ़ आईएस के लड़ाके ही फैले हैं. तो इन महीनों में मुझे भागने का मौक़ा ही नहीं मिला. एक बार मैं एक पुरुष के साथ थी. वो मेरे लिए कुछ कपड़े ख़रीदना चाहता था, क्योंकि उसका इरादा मुझे बेच देने का था. जब वो दुकान पर गया. मैं घर पर अकेली थी और मैं वहाँ से भाग निकली. मैं मोसुल की गलियों में भाग रही थी. मैंने एक मुस्लिम परिवार का दरवाज़ा खटखटाया और उन्हें अपनी आपबीती सुनाई. उन्होंने मेरी मदद की और कुर्दिस्तान की सीमा तक पहुँचाने में मेरी मदद की।शरणार्थी शिविर में किसी ने मेरी आपबीती नहीं पूछी. मैं दुनिया को बताना चाहती थी कि मेरे साथ क्या हुआ और वहाँ महिलाओं के साथ क्या हो रहा है. मेरे पास पासपोर्ट नहीं था, किसी देश की नागरिकता नहीं थी. मैं कई महीनों तक अपने दस्तावेज़ पाने के लिए इराक़ में रुकी रही.
उसी वक़्त जर्मन सरकार ने वहाँ के 1000 लोगों की मदद करने का फ़ैसला किया. मैं उन लोगों में से एक थी. फिर अपना इलाज कराने के दौरान एक संगठन ने मुझसे कहा कि मैं संयुक्त राष्ट्र में जाकर आपबीती सुनाऊं. मैं इन कहानियों को सुनाने के लिए दुनिया के किसी भी देश में जाने को तैयार हूँ।"
नादिया मुराद की तरह ही संघर्ष करने वाली तापसी मलिक सिंगूर की थी। पश्चिम बंगाल के सिंगूर की। जब नंदीग्राम और सिंगूर में जमीन अधिग्रहण का मसला शुरू हुआ तो तापसी प्रतिरोधक दल में आगे रहती थीं। उनके साथ सीपीएम के कार्यकर्ताओं ने पहले बलात्कार किया और फिर जलाकर मार डाला। वह सिंगूर में कृषक प्रतिरोध के अगुआ दस्ते की सबसे बहादुर सिपाही थी। सब जानते हैं कि ग्यारह महीने तक सिंगूर और नंदीग्राम में सीपीएम के लोगों ने कितना अत्याचार और नंगानाच किया था। पुष्पराज ने नंदीग्राम डायरी में बहुत मर्मान्तक वर्णन किया है। जैसे नादिया ने बलत्कृत होने के बाद खुद को नष्ट नहीं होने दिया और संघर्षरत रहीं, नंदीग्राम की महिलाओं ने तापसी मलिक को छोड़ा नहीं। हमारे समाज में बलात्कार इसलिए ज्यादा दुखद होता है कि इससे लड़की की सामाजिक प्रतिष्ठा भी नष्ट कर दी जाती है। वह आंतरिक और वाह्य कष्ट एकसाथ झेलती है। सिंगूर और नंदीग्राम की महिलाओं ने खुद को तापसी मलिक माना और उनकी तस्वीरों को प्रेरणादायक की तरह लिया। वह संघर्ष और शहादत का प्रतीक बन गई थी।
नादिया के साथ साथ तापसी मलिक को सलाम।