(कई दिनों से यह महसूस करता रहा हूँ कि हिन्दी कविता में एक नए तरह का रीतिकाल है. इस रीतिकाल को हमारे समय के महत्त्वपूर्ण युवा कवि शायक आलोक ने बहुत बेबाक अंदाज में साझा किया है. यह बहुत चुटीली और धारदार है. आप इसे दोनों ही तरह से देख-समझ सकते हैं.)
शायक आलोक |
कई युवा फेसबुक मित्रों के मैसेज आये
इन दिनों कि शायक हमें भी लिखना बताइये
.. हम भी लिखना चाहते हैं आपकी तरह .. तो इस पोस्ट से एक साझा संवाद दे
देता हूँ ..
[१] सबसे पहले समझिये कि आजकल की कविता
क्या है .. आज की कविता है वाक्य विन्यास की
कलात्मकता .. उसके अन्दर विचार को पिरोना
.. और बिम्ब .. अब एक उदाहरण लीजिये .. जैसे मैंने यह पंक्ति चुनी - '' एक
लड़की कोने वाले घर की खिड़की पर खड़ी '' .. अब
इसे वाक्य विन्यास की कलात्मकता से आप सजायें तो अलग अलग पंक्तियाँ बनेंगी .. जैसे [अ] एक कोने
वाला घर / एक लड़की खिड़की पर खड़ी [ब] खिड़की पर खडी लड़की और वह कोने वाला घर
[स] लड़की खड़ी खिड़की पर कोने में खड़ा घर
[द] खड़ी खिड़की लड़की खड़ी कोने में खड़ा घर .. कुछ भी .. जितना बेतरतीब कर सकेंगे आप उतना चमत्कृत कर सकेंगे ..
[२]
विचार को पिरोना... कैसी
लड़की.. कैसी खिड़की.. कैसा
घर.. अपनी कल्पना लाइए.. एक लड़की जो फिर नहीं सोई.. या एक लड़की जो तारे देखती
रहती है.. एक लड़की जो इन्तजार में है..
[ प्रेमपरक कविता ].. लड़की जो भाग जाना चाहती है.. लड़की जो कूद जाना चाहती है [स्त्री विमर्श ]..
खिड़की जो कभी बंद नहीं होती.. खिड़की जो आज
पहली बार खुली.. खिड़की जो दरवाजा है उस लड़की के मन का.. कुछ भी... ऐसे ही घर.. घर जिसमें दीवारें नहीं है..
घर जो गली में कोने पर है.. कैसे
भी उसके होने को जस्टिफाय कीजिये बस ..
[३] बिम्ब..
यह सबसे पिटा हुआ फार्मूला है जो युग बदले
पर जिसका उपयोग नहीं बदला.. बादल जो
प्रेमदूत है.. लड़की जो नीर भरी दुःख की बदली है.. 'तुम्हारे
माथे को चूमना
तुम्हारी आत्मा को चूमना है'.. 'फफूंद
हैं चुपचाप के पेड़'.. 'मैंने मेरी हथेली में लगा दी छलांग’.. कुछ भी कल्पना कीजिये.. लड़की खड़ी है खिड़की पर कोने वाले घर में जैसे गुलदाउदी का फूल कोई अभी सूरज की
ओर मुड़ा है..
[४] नकल
करना कविता सीखने का खूब अच्छा तरीका है.. नरेश सक्सेना की नक़ल करना आसान है.. कुंवर
नारायण की भी.. कुंवर नारायण लिखते हैं
-'ट्यूनीसिया
का कुआं'.. आप उसे बना दीजिये 'साईकिल
का पहिया'.. 'ट्यूनीसिया
में एक कुआं है/ कहते हैं उसका पानी / धरती के अन्दर ही अन्दर / उस पवित्र कुएं से जुड़ा है / जो मक्का
में है'... आप लिखिए- ' मेरे
घर एक साईकिल का पुराना पहिया है / कहते
हैं मेरे दादा के पिता के पास थी साईकिल
/ साईकिल घुमती पहुँच गई / बनिया साहूकार के घर / सूद मूल चुकाकर / पहिया शेष रह गया'.. समीक्षक
का बाप नहीं पकड़ेगा आपको और हाथ चूमेगा आपके ..
[५] पढ़ना
बहुत जरुरी है.. बढ़िया लोगों को पढ़िए.. मैं एक साल पहले कुछ और लिखता था .. अब कुछ और
लिखता हूँ.. क्यों.. क्योंकि मैं अपने
हमउम्रों को भी पढता हूँ.. कई बार उनकी बेहतरीन कविता में जो जादू दस फीसद होता है उसी जादू की मात्रा पचास
फीसद कर मैं मेरी कविता क्रियेट करता
हूँ और आप कह पड़ते हैं वाह !
[६] एक
बात हमेशा याद रखिये कि लिखे
जाने तक हर कविता झूठ होती है .. रोते हुए कभी नहीं लिखता कोई कवि अपनी कविता .. अभिप्राय यह कि अपने
लिखे जाने की प्रक्रिया में कविता संवेदना
विचार आदि की मांग नहीं रखती .. कवि शब्दबाजी करता है बस लिखते समय .. तो
फिर यह संवेदना विचार आते कहाँ से हैं .. ? ये
आते हैं रोजमर्रा की जिंदगी
में साक्षी बने रहने से .. महसूसना जगाये रखने से .. दामिनी मरती है तो मैं अभी उद्वेलित होऊंगा कविता नहीं
लिख सकूँगा .. दामिनी के प्रति मेरी
संवेदना मेरे दिमाग की नसों में जम जायेगी .. और जब बाद में कभी लिख रहा होऊंगा मैं तो नसों में जमी
संवेदना खुद पिघल पिघल आएगी उस रचना में .. मुझे प्रयास नहीं करना होगा ..
[७] कविता-कहानी में अगर पात्रों के नाम
विदेशी, जैसे इटैलियन और चाइनीज हों तो कविता और भी
समकालीन हो जाएगी.. कविता में विदेशी पात्रों को ले आईये कविता में या कविता ही समर्पित कर दीजिये किसी
बड़ी कवयित्री को.. 'शिम्बोर्स्का के लिए एक कविता'.. ''शिम्बोर्स्का आई थी मेरे सपने में..
किये कुछ स्त्री सवाल..
फिर मुंह छुपाया बुरके में और चली गई.. वहीँ दिखी मुझे मलाला.. मलाला खेल रही थी पिट्टो.. फिर मुंह
ढंका किताब में और चली गई.. फिर मुझे दिखी मेरी प्रेयसी.. मुंह ढंकने ही वाली थी कि मैंने रोक लिया.. कहा.. रुको स्त्री मुझे मिल गए हैं जवाब''.... और बस.. ओह शायक.. तुम स्त्री मन को कैसे पढ़ लेते हो.. ओह अनामिका..
तुम तो हमारी साँस लिख रही हो.. ओ पवन
करण.. तुम्हारे भीतर तो सच में स्त्री रहती है..
[८] अब
.. कैसे लिखें एक आधुनिक कविता
इसे सीधे रचना प्रक्रिया से समझा देता हूँ आपको .. कविता के किसी एक किरदार की कल्पना कीजिये .. जैसे आजकल
चींटी और ईश्वर बहुत हिट हैं .. कविता
में कविता खुद भी एक किरदार या एक परिदृश्य के रूप में खूब छाई है आजकल बाजार में.. कैक्टस एक बढ़िया
किरदार है.. प्रेयसी.. चिड़िया.. फफूंद..
ये सब भी.. तो मैं ले आता हूँ एक किरदार.. उम्म्म.. लीजिये मैंने चुना अमीबा को.. अब अमीबा के कुछ
बेसिक फीचर लाइए जेहन में.. टेढ़ी-मेढ़ी
परिधि उसकी.. अमीबा को उसके न्यूक्लियस के साथ काट दो तो दो अमीबा.. दोनों जिंदा.. तो अब कविता लिखते हैं..
''जब
तुम कर रही होती हो प्रेम की बातें
तब
मैं एक अमीबा के बारे में सोच रहा होता हूँ
मैंने
बचपन में अमीबा बनाना पहले सीखा
प्रेम
किया बाद में
और
जब किया प्रेम
पिछले
पृष्ठों पर बनाए हर अमीबा के केंद्र में
प्रेयसी
के नाम का पहला अक्षर लिख दिया
मेरे
अतीत अनुभवों का अमीबापन
ब्लाह
ब्लाह ब्लाह.. ''
[९] उस
युवा महाकवि महासमीक्षक की तरह लिखना हो तो फिर ऊपर के सब पॉइंट्स भूल जाइए और सीधे निबंध लिख दीजिये.. ''मैं
एक मोटा आदमी हूँ.. मैं धंस कर
बैठा हूँ मेरे सोफे में.. मेरे हाथ में पित्ज़ा है और देख रहा हूँ टीवी.. एक
हेलिकोप्टर अभी उड़ कर गया है आकाश में.. अभी आया था एलिट नवोदित कवयित्री का फोन.. उसकी कविता को साबित
करना है सत्ता प्रतिरोध की कविता.. ओह
मुझे कितना काम है.. चलो फ़ोन उस लकड़सूंघे कवि को.. उसे होना है खड़ा बेचने को किताब'' ..
अंट
शंट कुछ भी.. उसे कविता साबित करने की जिम्मेवारी मुझपर छोड़ दीजिये..
आज
बस इतना ही.. बाकी का बाकी !
-शायक आलोक (Shayak Alok)
https://www.facebook.com/shayak.alok/about
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