अष्ट सिद्धियां वे सिद्धियाँ हैं, जिन्हें प्राप्त कर व्यक्ति किसी भी रूप और देह में वास करने में सक्षम हो सकता है। वह सूक्ष्मता की सीमा पार कर सूक्ष्म से सूक्ष्म तथा जितना चाहे विशालकाय हो सकता है।
१. अणिमा : अष्ट सिद्धियों में सबसे पहली सिद्धि अणिमा हैं, जिसका अर्थ देह को एक अणु के समान सूक्ष्म करने की शक्ति से है। जिस प्रकार हम अपने नग्न आंखों एक अणु को नहीं देख सकते, उसी तरह अणिमा सिद्धि प्राप्त करने के पश्चात दुसरा कोई व्यक्ति सिद्धि प्राप्त करने वाले को नहीं देख सकता हैं। साधक जब चाहे एक अणु के बराबर का सूक्ष्म देह धारण करने में सक्षम होता हैं।
२. महिमा : अणिमा के ठीक विपरीत प्रकार की सिद्धि हैं महिमा, साधक जब चाहे अपने शरीर को असीमित विशालता करने में सक्षम होता हैं, वह अपने शरीर को किसी भी सीमा तक फैला सकता हैं।
३. गरिमा : इस सिद्धि को प्राप्त करने के पश्चात साधक अपने शरीर के भार को असीमित तरीके से बढ़ा सकता हैं। साधक का आकार तो सीमित ही रहता हैं, परन्तु उसके शरीर का भार इतना बढ़ जाता हैं कि उसे कोई शक्ति हिला नहीं सकती हैं।
४. लघिमा : साधक का शरीर इतना हल्का हो सकता है कि वह पवन से भी तेज गति से उड़ सकता हैं। उसके शरीर का भार ना के बराबर हो जाता हैं।
५. प्राप्ति : साधक बिना किसी रोक-टोक के किसी भी स्थान पर, कहीं भी जा सकता हैं। अपनी इच्छानुसार अन्य मनुष्यों के सनमुख अदृश्य होकर, साधक जहाँ जाना चाहें वही जा सकता हैं तथा उसे कोई देख नहीं सकता हैं।
६. पराक्रम्य : साधक किसी के मन की बात को बहुत सरलता से समझ सकता हैं, फिर सामने वाला व्यक्ति अपने मन की बात की अभिव्यक्ति करें या नहीं।
७. इसित्व : यह भगवान की उपाधि हैं, यह सिद्धि प्राप्त करने से पश्चात साधक स्वयं ईश्वर स्वरूप हो जाता हैं, वह दुनिया पर अपना आधिपत्य स्थापित कर सकता हैं।
८. वसित्व : वसित्व प्राप्त करने के पश्चात साधक किसी भी व्यक्ति को अपना दास बनाकर रख सकता हैं। वह जिसे चाहें अपने वश में कर सकता हैं या किसी की भी पराजय का कारण बन सकता हैं।
नौ निधियां हमारे ग्रंथो में नव निधियों के बारे काफी कुछ कहा गया है। पुरातन काल से यह माना जाता हैं की धन के बिना जीवन के किसी भी आयाम को सार्थक रूप देना सम्भव नही है। इसलिए धन यानि लक्ष्मी को धर्म के बाद दूसरा स्थान दिया गया है। हर व्यक्ति के थोड़ा सा निष्ठापूर्ण परिश्रम करने से, साधना करने से कुछ न कुछ निधियां उसे प्राप्त हो जाती हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति को "श्री" संपन्न होना ही चाहिए जिसके लिए हर व्यक्ति प्रयत्नशील भी रहता है। तो क्या हैं ये नव निधियां। नव निधियां- पद्म निधि, महापद्म निधि, नील निधि, मुकुंद निधि, नन्द निधि, मकर निधि, कच्छप निधि, शंख निधि, खर्व निधि। नौ निधियों में केवल खर्व निधि को छोड़कर शेष आठ निधियां पद्मिनी नामक विद्या के सिद्ध होने पर प्राप्त हो जाती हैं परन्तु इन्हे प्राप्त करना भी काफी दुष्कर है। पद्म निधि-यह सात्विक प्रकार की होती है। जिसका उपयोग साधक के परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती है।
पद्म निधि
यह सात्विक प्रकार की होती है। जिसका उपयोग साधक के परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती है।
महापद्म निधि
महापद्म निधि-यह भी सात्विक प्रकार की निधि है। इसका प्रभाव सात पीढ़ियों के बाद नहीं रहता।
नील निधि
नील निधि-यह सत्व व राज गुण दोनों से मिश्रित होती है। जो व्यक्ति को केवल व्यापार हेतु ही प्राप्त होती है।
मुकुंद निधि
मुकुंद निधि-राजसी स्वभाव वाली निधि जिससे साधक का मन भोग इत्यादि में ही लगा रहता है। एक पीढ़ी बाद नष्ट हो जाती है।
नन्द निधि
नन्द निधि-यह रजो व तमो गुण वाली निधि होती है जो साधक को लम्बी आयु व निरंतर तरक्की प्रदान करती है।
मकर निधिं
मकर निधिं-यह तामसी निधि है जो साधक को अस्त्र-शास्त्र से सम्पन्नता प्रदान करती है परन्तु उसकी मौत भी इसी कारण होती है। कच्छप निधि
कच्छप निधि-इसका साधक अपनी सम्पति को छुपा के रखता है ना तो स्वयं उसका उपयोग करता है ना करने देता है।
शंख निधि
शंख निधि-इस निधि को प्राप्त व्यक्ति स्वयं तो धन कमाता हैं परन्तु उसके परिवार वाले गरीबी में जीते हैं वह स्वयं पर ही अपनी सम्पति का उपयोग करता है।
खर्व निधि
खर्व निधि-इस निधि को प्राप्त व्यक्ति विकलांग व घमंडी होता हैं जो समय आने पर लूट के चल देता है।
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