गरुड़ कौन थे?
कश्यप
ऋषि की दूसरी पत्नी विनता ने वर माँगा था कि उनकी दो संतानें हों जो उनकी बहन और
सौत कद्रू के एक सहस्र संतानों से अधिक प्रभावशाली और महिमामयी हों। कश्यप ने
उन्हें दो तो नहीं, अलबत्ता डेढ़ संतान का वर दिया।
विनता की आधी संतान अरुण हैं जो उनकी जल्दबाजी के कारण परिपक्व अवस्था से पूर्व ही
आ गए इसलिए 'दिव्यांग' रह गए। वह सूर्य
के सारथि हैं।
विनता
ने दूसरी संतान के लिए अप्रतिम धैर्य का परिचय दिया और अंडे से जो निकला, वह गरुड़ थे। कथा आती है कि एक बार कश्यप ऋषि को बलि देना था। उन्होंने
इंद्र और अन्य देवताओं से से कहा कि वह यज्ञ के लिए लकड़ियाँ ले आयें। इन्द्र ने
लकड़ियों का बड़ा गट्ठर बनाया था और बहुत मस्ती से कंधे पर लादकर ऋषि के आश्रम की
ओर जा रहे थे। उन्होंने देखा कि राह में एक गड्ढा है। उस गड्ढे में कुछ हरकत हो
रही थी। इंद्र कौतूहलवश रुके। उन्होंने देखा- बहुतेरे सूक्ष्म आकार के ‘बालखिल्य’
उस गड्ढे में गतिमान हैं। बालखिल्य घास का एक तिनका ढो रहे थे और गड्ढा पार करने
के लिए प्रयासरत थे। इन्द्र ने अपने कंधे पर रखे गट्ठर को देखा और फिर बालखिल्यों
को। उन्होंने अपने पैर के अगले भाग से गड्ढा के किनारे तक पहुँच रहे बालखिल्य समूह
को बीच में धकेल दिया। बालखिल्य क्रोध और अपमान में भर कर कश्यप के पास आये और
उनसे सारी घटना सुना दी। उन्होंने सत्ता के मद में चूर और अभिमानी इन्द्र का
विकल्प बनाने की प्रार्थना की। कश्यप ने जब बताया कि इन्द्र को स्वयं ब्रह्मा ने
पदस्थापित किया है और उसे हटाया नहीं जा सकता तो बालखिल्यों ने कहा कि हमारे ताप
और आपके तप से जो संतान हो वह इन्द्र की सत्ता को चुनौती देने वाली हो। वह देवराज
न हो तो पक्षिराज हो। कश्यप मान गए और इस तरह विनता की गर्भ से गरुड़ आये।
गरुड़
को अपनी माँ को दासता से भी मुक्त करना था। उन्हें कद्रू पुत्रों के लिए ‘सोम’ ले
आना था जो देवताओं की निगरानी से रखा रहता था। गरुड़ ने यह सब कैसे किया? उनका आहार किस प्रकार उनके भाई ही बने? उन्होंने वेद
आदि का अध्ययन कैसे किया? वह विष्णु की सवारी कैसे बने?
गरुड़
तो कथाओं के प्रस्थान बिंदु हैं।