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रविवार, 3 मार्च 2024

निराई : मानस शब्द संस्कृति

#मानस शब्द संस्कृति 

निराई : मानस शब्द संस्कृति 

कृषी निरावहिं चतुर किसाना।
जिमी बुध तजहिं मोह मद माना।।

बरसात होने पर कृषक खेतों से खर पतवार आदि उखाड़कर फेंकता है। फसल से इस अनावश्यक घास आदि को निकालना #निराई कही जाती है। इससे फसल को उचित पोषण मिलता है। #श्रीरामचरितमानस में इस कृषिकर्म की तुलना विद्वानों से की गई है जो मोह, मद, मान आदि त्याग देते हैं।

तुलसीदासजी ने किष्किंधाकांड में वर्षा ऋतु पर कवित्व दृष्टि रखी है। यहां उनकी उपमा और रूपक की छटा देखी जा सकती है।

              निराई : मानस शब्द संस्कृति 


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सद्य: आलोकित!

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