षट बिकार : मानस शब्द संस्कृति लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
षट बिकार : मानस शब्द संस्कृति लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 2 मार्च 2024

षट बिकार : मानस शब्द संस्कृति

 

षट बिकार : मानस शब्द संस्कृति 

षट बिकार जित अनघ अकामा।
अचल अकिंचन सुचि सुखधामा।।

तुलसीदास ने भगवान श्रीराम के मुख से संतों के जो लक्षण बताए हैं, उसमें उन्हें छ: प्रकार के विकार को जीता हुआ कहा है। यह #षट_विकार हैं- काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर (द्वेष भावना)। विकार वह हैं जो हमें भ्रष्ट करते हैं, मोह माया में लपेटते हैं।

संत व्यक्ति पापरहित, कामनारहित, निश्चल और अकिंचन होता है। उन्होंने विस्तार से संतों की प्रकृति के बारे में बताया है।

इससे पहले लक्ष्मण को वह बताते हैं -

लोभ के इच्छा दंभ बल, काम कें केवल नारि।
क्रोध के परुष बचन बल, मुनिबर कहहिं बिचारि।।

अर्थात लोभ के पास दंभ और इच्छा का बल है, काम के पास नारी का, क्रोध की क्षमता कठोर वचन हैं; ऐसा मुनियों ने विचार करने के बाद बताया है।

#मानस_शब्द #संस्कृति

सद्य: आलोकित!

श्री हनुमान चालीसा: छठीं चौपाई

 संकर सुवन केसरी नंदन। तेज प्रताप महा जग वंदन।। छठी चौपाई श्री हनुमान चालीसा में छठी चौपाई में हनुमान जी को भगवान शिव का स्वरूप (सुवन) कहा ग...

आपने जब देखा, तब की संख्या.