सायुज्य मुक्ति : मानस शब्द संस्कृति |
जे रामेश्वर दरसनु करिहहिं।
ते तनु तजि मम लोक सिधरिहहिं।।
जो गंगाजलु आनि चढ़ाइहि।
सो सायुज्य मुक्ति नर पाइहि।।
वैष्णव #संस्कृति में भक्त, आराध्य के लोक में पांच तरह से रहता है।जब वह इष्ट के विग्रह का अंग बन जाता है तब #सायुज्य_मुक्ति कही जाती है। भगवान के लोक में कुछ भी बनकर रहना सालोक्य मुक्ति है। सार्ष्टि में भगवान के समान ऐश्वर्य मिलता है। सारूप्य में समान रूप और सामीप्य मुक्ति में वस्त्राभूषण आदि बनने का अवसर मिलता है।
भारतीय परंपरा में कहा गया है कि विद्या वह है जो मुक्त करती है। सा विद्या या विमुक्तये।
श्रीरामचंद्र जी ने रामेश्वरम में लिंग स्थापना के बाद यह कहा है कि जो इसका दर्शन करेगा, वह वैष्णव लोक में जाएगा।
#मानस_शब्द