शीला राय शर्मा की कहानियों का संकलन #खिड़की की पहली ही कहानी है- खिड़की। यह प्रतिनिधि कहानी भी है। कल उनकी एक कहानी #नेलपॉलिश की चर्चा करते हुए हमने इस कहानी को याद किया था।
यह कहानी अन्तरसाम्प्रदायिक सम्बन्धों पर आधारित है। इसमें कथावाचक अमरीका से भारत लौटती है। उसी के विवरणों से पता चलता है कि कॉलेज के अंतिम वर्ष में उसने ‘साहिल’ से शादी करने का निर्णय लिया था। इस निर्णय से घर भर का वातावरण बदल गया था। जब उसके पिता को पता चला तो –“न तो उन्होंने मुझे बुलाकर कुछ पूछा, न डांटा, न चिल्लाये, न ही मेरा कॉलेज जाना बंद किया, बस मुझे अपनी जिन्दगी से निकाल फेंका।” यद्यपि इस विवाह में दोनों का सम्प्रदाय यथावत रहना था पर यह सम्बन्ध घर के लोगों के लिए असहज बना तो बना रहा।
कथावाचक शादी करके अमरीका चली जाती है और वहां से सत्रह वर्ष बाद घर लौटने का निर्णय लेती है। उसका एक बेटा है। उसका नाम रॉनी है।
इन सत्रह सालों में उसकी बात कभी कभार भाई से हो जाती थी। इसी से पता चलता कि पिता नहीं रहे। भाई का विवाह हो गया। दो भतीजे हैं। इस विवरण में यह संकेत है कि वह घर की सूचनाओं से भिज्ञ है किंतु उसे मांगलिक और शोक के मौकों पर भी नहीं बुलाया जाता।
यह कहानी, यह बात बहुत जोर देकर स्थापित करती है कि उसके साथ घरवालों ने संबंध विच्छेद कर लिया है। और यह विच्छेदन घर की ओर से है। सामूहिक रूप से।
इसे जानते हुए भी कथावाचक घर लौटती है। वहां मां अकेले रह रही हैं। उसका स्वागत होता है। लेकिन इस स्वागत में एक बहिष्कार है। अस्पृश्यता है। मां उसके हाथ का बनाया हुआ कोई खाद्य/पेय नहीं लेती। अघोषित और अनकहा सविनय बहिष्कार जारी है। संभवतः म्लेच्छ हो जाने के कारण। यद्यपि यह म्लेच्छ वाला संकेत कहीं है नहीं लेकिन है यही। यह कथाकार की शक्ति समझना चाहिए। बिना उल्लेख के ही, सबकुछ जैसे कहा जा रहा है।
कथावाचक का "अपना कमरा" था। अपना कमरा कहते ही वर्जीनिया वुल्फ की इसी शीर्षक से विमर्श की पुस्तक की याद हो आती है। साहिल के साथ जाने के बाद वह कक्ष बंद कर दिया गया है। उसकी खिड़कियां टूट गई हैं। आरामकुर्सी निष्प्रयोज्य हो गई है। वह इसे पुनः सहेजती है। सब ठीक करने के लिए उपक्रम करती है।
फिर एक दिन पता चलता है कि यह सब निरर्थक है। वह घर में है पर नहीं है। उसे जीवन से निकाल फेंका गया है। उससे अस्पृश्यता का बर्ताव हो रहा है।
वह वापस लौटने का निर्णय करती है। उसने सब कुछ सहेज दिया है लेकिन जानती है कि यह सब फिर से उसी तरह हो जाएगा। उपेक्षित।
जब वह घर से जाने लगती है तो व्यवस्था करती है। अपने कमरे को देखती है। रिक्शा पर बैठने के बाद वह पलट कर देखती है। उसे अनुमान है कि पूरबवाली खिड़की बंद होगी।
"इस घर के दरवाजे तो कब से मेरे लिए बंद हो चुके थे, अब वह खिड़की भी बंद हो गई, जिससे होकर मैं जब नहीं तब चुपके से आ जाया करती थी।"
यहां यह कहानी मुक्त हो जाती है।
#खिड़की कहानी में जो बात सबसे अधिक प्रभावित करती है, वह है घर का निर्णय। घर की एकता। पिता ने निर्णय लिया तो सबने उसपर अमल किया। सामान्यतया कहानियों में कोई एक व्यक्ति पिघल जाता है और दिशा बदल जाती है। स्वीकार्यता मिलने लगती है और सरलीकरण हो जाता है, जबकि यहां एक दृढ़ता है। यह दृढ़ता मुझे श्रीमद्भागवतगीता के उस श्लोक का ध्यान कराता है जिसमें व्यक्ति, परिवार, ग्राम आदि को क्रमशः बड़े उद्देश्य के लिए त्याग देने का उपदेश है।
त्याग दिया तो त्याग दिया! बहुत निर्लिप्त तरीके से। सम्मान करते हुए। यह दृढ़ता इस कहानी का सबसे शक्तिमान पक्ष है।।कथावाचक के घर लौटने के बाद के क्रियाकलाप में किंचित अतिरंजना और अस्वाभाविकता हो सकती है लेकिन इसे मैं उपेक्षित करना चाहता हूं। उद्देश्य स्पष्ट है।
मैंने ऐसी कहानी अब तक नहीं पढ़ी। मुझे शिवप्रसाद सिंह की एक कहानी का स्मरण आता है। लेकिन उस कहानी में भी दीदी बाद में अपनी भावना प्रकट करती हैं। वहां एक सदय चित्त है लेकिन यहां समस्त तरलता होते हुए भी चित्त में शुष्कता है। यही शुष्क तत्त्व इस कहानी को विशिष्ट बनाता है।
मैं शीला राय शर्मा को बधाई देना चाहता हूं। उनके पास कहन तो अद्भुत है ही, दृष्टि भी बहुत सुविचारित, प्रखर और स्पष्ट है। कोई गिजिगिजाहट नहीं। कोई किंतु परंतु और एजेंडा नहीं। कहीं से कोई निर्देश नहीं है। व्यक्तित्व के निर्माण में अपनी जड़ और भारतीयता है। अपना संस्कार है। कहानियां पढ़कर ऐसा कहीं भी नहीं लगता कि यह लेखक का पहला संकलन है।
विद्या भवन, नई दिल्ली से प्रकाशित इस संकलन की यह सर्वश्रेष्ठ कहानी है। हाल के वर्षों में मेरे द्वारा पढ़ी हुई कहानियों में सबसे अधिक उत्तेजक और उत्कृष्ट!