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गुरुवार, 19 नवंबर 2020

कथावार्ता : पंडितराज जगन्नाथ और मनोरमा कुच मर्दन

-डॉ रमाकान्त राय

      संस्कृत के प्रसिद्ध कवि और शास्त्री पण्डितराज जगन्नाथ खूब चर्चित रहे हैं। वह दक्षिण भारत में जन्मेमुगल शासक शाहजहाँ के दरबार में रहेदाराशिकोह की मित्रता पाई और शाहजहाँ की एक बेटी लवंगी से विवाह किया। उन्होंने शस्त्र और शास्त्र दोनों में महारत पाई। ऐसी मान्यता है कि दरबार में रहते हुए ही शाहजहाँ के राजकीय मल्ल को पटखनी दी थी। शाहजहाँ ने उन्हें 'सार्वभौम श्री शाहजहाँ प्रसादाधिगतपण्डितराज पदवीविराजितेनकी उपाधि दी। उन्होंने काव्य की परिभाषा करते हुए लिखा था- रमणीयार्थ  प्रतिपादक: शब्द: काव्यम्। यह परिभाषा साहित्यिक दुनिया में बहुत समादृत हुई।

      पण्डितराज जगन्नाथ की रचनाओं में काव्यात्मक उत्कर्ष और भावगत प्रौढ़ता के दर्शन होते हैं। उनकी कविता प्रसादगुण से युक्त है।पण्डितराज ने अपनी रचना रसगंगाधर में काव्य के स्वरूपकारणभेद-प्रभेदवाणियों के भेदरसभावगुणलक्षणउपमा और अलंकारों का विवेचन किया है। यह पूरा ग्रंथ आज उपलब्ध नहीं है। इस अधूरे ग्रंथ के सहारे भी कहा जा सकता है कि सूत्रवृत्ति शैली में रचित इस ग्रंथ में विषय का बहुत ही सूक्ष्मगम्भीर और पांडित्यपूर्ण विवेचन किया गया है। रसगंगाधर संस्कृत साहित्य की आलोचना का प्रौढ़तम उदाहरण है। इसमें इनकी साहित्यिक प्रतिभा का चरम उत्कर्ष दिखलाई पड़ता है।

     उनकी लिखी पुस्तकों में रस गंगाधरभामिनि विलासपीयूष लहरीयमुना वर्णनरतिमन्मथ और मनोरमा कुच मर्दन प्रसिद्ध हैं। उनकी लिखी पुस्तकों की सूची निम्न है-

 

पण्डितराज जगन्नाथ विरचित ग्रंथ

    जगन्नाथ लवंगी से प्रेम करते थे। लवंगी शाहजहाँ की बेटी थी। मुगलों में शासकों की बेटियाँ विवाह नहीं कर पाती थीं। उनकी 'हैसियतका दूल्हा नहीं मिल पाता था। रक्त की शुद्धता के प्रति मुगल अतिशय आग्रही थे। ऐसे में यह प्रेमसम्बन्ध  मुगल काल के दौरान चर्चा में था। त्रिलोकनाथ पांडेय के उपन्यास 'प्रेमलहरीमें इस प्रकरण सहित उनके जीवन और रचना पर सरस चर्चा है। प्रेमलहरी वस्तुतः पण्डितराज के जीवन पर ही केन्द्रित ऐतिहासिक चरित गल्प है। इस उपन्यास के बारे में यहाँ पढ़ सकते हैं - ऐतिहासिक चरित गल्प : प्रेमलहरी

      एकदा पण्डितराज जगन्नाथ को मुसलमान युवती से प्रेम रखने पर काव्याचार्य भट्टोजी दीक्षित ने भरी सभा में प्रकारान्तर से "म्लेच्छ" कह दिया। पण्डितराज ने इसका बुरा माना। वह चाहते तो धोबी पछाड़ दाँव से वहीं दीक्षित जी को चित्त कर देते और मामला फरिया दिया होता। लेकिन उन्होंने इसका रचनात्मक प्रतिशोध लेना तय किया।

      पण्डितराज ने भट्टोजी दीक्षित की 'सिद्धान्त कौमुदीकी टीका 'प्रौढ़ मनोरमाकी न्यूनताओं का उद्घाटन "मनोरमा कुच मर्दन" में किया। मनोरमा कुच मर्दन में जगन्नाथ ने भट्टोजी दीक्षित की स्थापनाओं को छिन्न-भिन्न कर दिया है! 

नागेश भट्टजिन्होंने रसगंगाधर की टीका की हैने इस प्रकरण को छंदोबद्ध किया है-

मनोरमाकुचमर्दन का स्पष्टीकरण  

पण्डितराज जगन्नाथ ने भट्टोजी दीक्षित को जो रचनात्मक लताड़ पिलाईउसका उल्लेख राहुल सान्कृत्यायन ने घुमक्कड़ शास्त्र में इस तरह किया है- "भट्टोजी दीक्षित की भूल दिखलाने के लिए उन्‍होंने बहुत निम्‍नतल पर उतरकर मनोरमा के विरुद्ध 'मनोरमा-कुचमर्दनलिखा।" जगन्नाथ अप्पय दीक्षित से भी खिन्न थे या नहींयह तो ठीक ठीक नहीं कहा जा सकता तथापि जिस तरह उन्होंने चित्रमीमांसाखण्डन में उनकी स्थापनाओं का खण्डन किया हैप्रतीत होता है कि वह उनके प्रति भी खासे अनुदार थे।

        राहुल सान्कृत्यायन न जाने क्यों कुछ खिन्न से हैं वह जगन्नाथ को पण्डितराज और संस्कृत का अंतिम महान कवि तो मानते हैं किन्तु उनका लहजा कुछ उखड़ा हुआ है- "शाहजहाँ के दरबारी पंडितपण्डितराज जगन्‍नाथ विचारों में कितने उदार थेयह इसी से मालूम होगा कि उन्‍होंने स्वधर्म पर आरूढ़ रहते एक मुसलमान स्‍त्री से ब्‍याह किया। उनकी सारे शास्त्रों में गति थी और वह वस्‍तुत: पण्डितराज ही नहीं बल्कि संस्कृत के अंतिम महान कवि थे।" अस्तु!

       आचार्य मधुसूदन शास्त्री ने पण्डितराज जगन्नाथ के इस ग्रंथ का परिचय देते हुए लिखा है- "मनोरमा कुच मर्दन भट्टोजी दीक्षित के सिद्धान्त कौमुदी की व्याख्या प्रौढ़ मनोरमा के कुचस्वरूप पंचसंधिप्रकरण का मर्दनात्मक खण्डन ग्रंथ है।"

      पण्डितजी ने शाहजहाँ की बेटी लवंगी से विवाह कियाराज्य त्याग दिया और छद्म रूप में बंगाल तथा काशीवास किया। कहते हैं कि उन्हें सपत्नीक जलसमाधि लेनी पड़ी। पण्डितराज जगन्नाथ ने प्रेम की भारी कीमत चुकाई।

      आज मनोरमा कुच मर्दन के बारे में फिर से पढ़ने को मिला तो यह सब लिखने का विचार उपजा।

 

असिस्टेण्ट प्रोफेसरहिन्दी

राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय,

इटावाउत्तर प्रदेश

+91 9838952426, royramakantrk@gmail.com

सद्य: आलोकित!

सच्ची कला

 आचार्य कुबेरनाथ राय का निबंध "सच्ची कला"। यह निबंध उनके संग्रह पत्र मणिपुतुल के नाम से लिया गया है। सुनिए।

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