शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

Kathavarta : प्रभाती : रघुवीर सहाय की कविता


आया प्रभात
चंदा जग से कर चुका बात
गिन गिन जिनको थी कटी किसी की दीर्घ रात
अनगिन किरणों की भीड़ भाड़ से भूल गये
पथऔर खो गये वे तारे।

अब स्वप्नलोक
के वे अविकल शीतल अशोक
पल जो अब तक वे फैल फैल कर रहे रोक
गतिवान समय की तेज़ चाल
अपने जीवन की क्षणभंगुरता से हारे।

जागे जनजन
ज्योतिर्मय हो दिन का क्षण क्षण
ओ स्वप्नप्रियेउन्मीलित कर दे आलिंगन।
इस गरम सुबहतपती दुपहर
में निकल पड़े।
श्रमजीवीधरती के प्यारे।

 रघुवीर सहाय

श्रमजीवी


सद्य: आलोकित!

मोचीराम / धूमिल

राँपी से उठी हुई आँखों ने मुझे क्षण-भर टटोला और फिर जैसे पतियाये हुये स्वर में वह हँसते हुये बोला- बाबूजी सच कहूँ-मेरी निगाह में न कोई छोटा ...

आपने जब देखा, तब की संख्या.