सपनें बानर लंका जारी।
जातुधान सेना सब मारी।।
जातुधान : मानस शब्द संस्कृति |
वह लोग जो यज्ञादि कार्यों में विघ्न डालते, अनाचार और दुराचार करते, दुष्ट वृत्ति के थे #यातुधान कहे जाते हैं। सामान्यतः राक्षस, प्रेत, असुर आदि इस कोटि में परिगणित होते हैं। त्रिजटा ने स्वप्न देखा कि कोई बंदर आएगा और लंका जला डालेगा, जातुधानों का संहार करेगा।
कवितावली में तुलसीदास जी ने अपनी कविता में जातुधान शब्द का बहुत प्रयोग किया है।
बालधी बिसाल बिकराल ज्वाल-जाल मानौं,
लंक लीलिबे को काल रसना पसारी है ।
कैधौं ब्योमबीथिका भरे हैं भूरि धूमकेतु,
बीररस बीर तरवारि सी उघारी है ।।
तुलसी सुरेस चाप, कैधौं दामिनी कलाप,
कैंधौं चली मेरु तें कृसानु-सरि भारी है ।
देखे जातुधान जातुधानी अकुलानी कहैं,
“कानन उजायौ अब नगर प्रजारी है ।।
हाट, बाट, कोट, ओट, अट्टनि, अगार पौरि,
खोरि खोरि दौरि दौरि दीन्ही अति आगि है।
आरत पुकारत , संभारत न कोऊ काहू,
ब्याकुल जहाँ सो तहाँ लोग चले भागि हैं ।।
बालधी फिरावै बार बार झहरावै, झरैं
बूंदिया सी लंक पघिलाई पाग पागि है।
तुलसी बिलोकि अकुलानी जातुधानी कहैं
"चित्रहू के कपि सों निसाचर न लागिहैं"।।
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