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रविवार, 18 अगस्त 2024

परीक्षा पद्धतियों के सरलीकरण से बढ़ती समस्याएँ

 

प्रेमचंद की चर्चित कहानी है- परीक्षा। इस कहानी में रियासत देवगढ़ के दीवान पद पर नियुक्ति के लिए परीक्षा का आयोजन होता है। चूँकि परीक्षार्थी दूर दूर से आये हुए, अपरिचित और उच्च शिक्षा प्राप्त युवा हैं, इसलिए उनकी परीक्षा के लिए सैद्धान्तिक और व्यावहारिक स्तर पर प्रकट और गुप्त परीक्षाएं चलती रहती हैं। एक दयालु और निःस्वार्थ चरित्र के व्यक्ति को इसके निमित्त चुन लिया जाता है। परिणाम की घोषणा करते हुए कहा जाता है- “जो व्यक्ति घायल होने पर भी एक गरीब किसान की गाड़ी को कीचड़ से बाहर निकालने में मदद करता है, वह दयालु और दृढ़ इच्छाशक्ति वाला होना चाहिए। ऐसा व्यक्ति कभी गरीबों पर अत्याचार नहीं करेगा। उसका दृढ़ संकल्प उसके हृदय को स्थिर रखेगा” यह कहानी साहित्य जगत में अपने आदर्श और चयन की प्रणाली के कारण बहुत प्रशंसित होती है।

चुनाव कैसे और कैसा हो? इस सम्बन्ध में बहुत माथापच्ची होती है। सुपात्र चुने जाएँ और चुनने की यह प्रणाली पारदर्शी हो तो तन्त्र में विश्वास बढ़ता है और योग्य व्यक्ति को उसकी अभिरुचि के अनुकूल काम मिलता है। इससे कार्यस्थल पर सुचारू व्यवस्था रहती है और लक्ष्य प्राप्ति सरल हो जाती है। देश में जब तक राजतन्त्र था, चुनाव और नियुक्तियां सर्वोच्च शक्तियों का विशेषाधिकार होती थीं यद्यपि उसपर धर्म का अदृश्य प्रभाव रहता था। इससे राजा के निरंकुश होने की संभावना कम होती थी और राजकाज सुचारू रूप से चलता था। जन की भागीदारी राज्य/शासन की सेवा भावना होती थी और यही उसका कर्त्तव्य था। परन्तु लोकतन्त्र की स्थापना ने चुनाव को जनतान्त्रिक बनाया और कहा कि योग्य व्यक्तियों को उचित अवसर दिया जाएगा कि वह भी तन्त्र में अपनी सहभागिता कर सके।

चुनाव की प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जो सबको समान अवसर उपलब्ध कराए, समावेशी हो और भेदभाव से रहित भी। तभी निष्पक्षता के लक्ष्य को पाया जा सकता है। स्वस्थ स्पर्धा से ही यह संभव है। अच्छा और उपयुक्त, सुपात्र का चुनाव तभी हो सकेगा।

विगत दिनों में परीक्षाओं की प्रणाली जिस तेजी से बदलती गयी हैं, उसे देखते हुए बहुत चिन्ता होती है कि क्या इस स्पर्धा से वही प्राप्तियां हो रही हैं, जो अपेक्षित हैं? हम पहले कुछ ऐसे पाठ्यक्रमों में प्रवेश की परीक्षाओं की चर्चा करें, जिनको लेकर देश भर में भारी व्यग्रता रहती है। इसमें से एक परीक्षा है चिकित्सा के क्षेत्र में प्रवेश से जुडी हुई। इसे नीट कहा जा रहा है- नेशनल एलिजिबिलिटी कम इंट्रेंस टेस्ट। यह भारत में मेडिकल और डेंटल पाठ्यक्रम में प्रवेश से सम्बन्धित है। इस बार यह परीक्षा पेपर लीक और शुचिता में संदेह के कारण चर्चा में है। पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मांग की है कि इस परीक्षा का ढांचा पूर्ववत कर लिया जाए जिसमें राज्य और स्वायत्त संस्थान पृथक और स्वतंत्र परीक्षाएं कराते थे। पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम ने भी इसी तरह की मांग की है। हमें ज्ञात है कि सन २०१३ में देश भर में एक परीक्षा की व्यवस्था हुई जिसने AIPMT का स्थान लिया। इससे एकरूपता आई। परीक्षार्थियों को एक समान अवसर मिला। इस और इस तरह की प्रवेश परीक्षाओं की एक विशेष बात यह होती है कि इनमें परीक्षार्थी एक पाठ्यक्रम विशेष में प्रवेश लेता है जहाँ पाठ्यक्रम के साथ साथ व्यक्तित्व का भी प्रशिक्षण चलता रहता है। इसलिए मेडिकल की पढ़ाई कर रहा अभ्यर्थी शीघ्र ही अभ्यस्त हो जाता है और अपने कार्य व्यापार के प्रति निष्ठावान बनता है। इसलिए हम इस तरह की परीक्षा को प्रवेश परीक्षा मान कर उसकी प्रणाली के प्रति किंचित उदासीनता भी रख लेते हैं। किन्तु जिन परीक्षाओं के आधार पर शासन सत्ता में दायित्व मिलता है, उनके विषय में हमें किंचित ठहर कर विचार करना चाहिए।

प्रथम इम्पैक्ट पाक्षिक के सितम्बर, 24 अंक में प्रकाशित



हमारे देश में शासन-प्रशासन में पद की महत्ता देखकर परीक्षाएं सम्पन्न कराई जाती हैं और इन्हें आयोजित करने कराने वाली संवैधानिक संस्थान हैं। संघ लोक सेवा आयोग और राज्य लोक सेवा आयोग इस क्रम में प्रमुख निकाय हैं। इसके अतिरिक्त बहुत से ऐसे विभाग हैं जो अपने और किसी संस्था-विशेष के लिए चुनाव की विविध प्रक्रिया अपनाते हैं।

प्रायः यह देखा जाता है कि जितना महत्त्व का पद है, उसमें चयन का मापदण्ड उसी के अनुरूप है। संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं की एक विशेष गरिमा है और माना जाता है कि इस प्रणाली से योग्य व्यक्ति ही चुने जाते हैं। हालाँकि नौकरशाही में जैसी ‘राजा वाली व्यवस्था बन गयी है, वहां भी यह छटपटाहट है कि यह प्रणाली अक्षम है।

आज सामान्यतया चुनाव के लिए परीक्षाओं का चलन है। इन परीक्षाओं में मूल्यांकन एक बड़ी समस्या है क्योंकि प्रत्यक्ष चुनाव में कई कारक प्रभावित करने वाले निकल आते हैं। परीक्षा के क्रम में निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता प्रभावित हो जाती है। निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता के लिए परीक्षाओं में बहुविकल्पीय प्रश्न पूछने की व्यवस्था आई है। इसमें एक प्रश्न के चार संभावित उत्तर रहते हैं। सही उत्तर को चुनकर विकल्प के गोले को रंगना रहता है।

वस्तुनिष्ठ परीक्षा प्रणाली में उत्तर जांचना बहुत आसान रहता है और अब तो इसे तकनीकी सहायता से जांच लेते हैं जिससे गड़बड़ी की आशंका बहुत कम रहती है। किन्तु वस्तुनिष्ठ परीक्षा प्रणाली की बहुत सी न्यूनताएं हैं। इस प्रणाली से अभिव्यक्ति की क्षमता, बौद्धिक स्तर, बोध का स्तर और सही/गलत की पहचान का कोई आकलन नहीं हो पाता। लिखित परीक्षाओं में प्रश्नों का उत्तर निर्धारित शब्द सीमा में देना रहता है जिससे हम वाक्य विन्यास, शब्दों की वर्तनी आदि से जो मूल्यांकन कर लेते हैं, वह भी वस्तुनिष्ठ प्रणाली से सिरे से अनुपस्थित है। किसी भी व्यक्ति का सुलेख उसके व्यक्तित्व का एक परिचायक होता है। लिखित परीक्षाओं में उसके माध्यम से भी कई अनुमान लगा लिए जाते हैं। लेकिन चूँकि यह प्रणाली परीक्षकों के स्तर से प्रभावित होने लगी, परीक्षक सही मूल्यांकन करने के स्थान पर भेदभाव करने लगे, मूल्यांकन प्रक्रिया जटिल है, वस्तुनिष्ठ नहीं है अपितु परीक्षक के बोध से भी प्रभावित होती है, समय और संसाधन (अधिक मूल्यांकनकर्ता) की अपेक्षा रखती है तो सरलीकरण करते हुए इसे हटा ही दिया गया। लिखित परीक्षाओं में सांस्थानिक गड़बड़ी हो सकती है- अभी उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की पी सी एस जे की परीक्षा में यह देखने में भी आया है- तो इसका समाधान निकाला गया है- वस्तुनिष्ठ परीक्षा प्रणाली।

वस्तुतः वस्तुनिष्ठ परीक्षा प्रणाली सरलीकरण का चरम है। इसमें कुछ निश्चित प्रश्न रहते हैं, जिनका सही उत्तर देकर सफलता पा ली जाती है। इसमें वैकल्पिक व्यवस्था रहती है तो हल करना भी बहुत आसान रहता है। इसलिए इस परीक्षा को अन्य बाह्य कारकों से प्रभावित कर लेते हैं। कोई सॉल्वर यदि परिस्थितियां अनुकूल हुईं तो इसका सही उत्तर पहुंचा देता है। इसमें तंत्र को धता बताते हुए या उसे भी सम्मिलित करते हुए जो नई दुर्व्यवस्था प्रविष्ट हुई है, वह है पेपर लीक। इसका अभी तक कोई समाधान नहीं निकला है, इसलिए इसे करने वालों पर कड़ाई की बातें हो रही हैं। कड़ाई की इन चर्चाओं में यह महत्त्वपूर्ण तथ्य ओझल हो जा रही है कि सरलीकरण करते हुए हम “परीक्षा” ठीक से नहीं कर पा रहे हैं और जब परीक्षण ही सही नहीं हो पा रहा है तो सेवा की भावना वाले कार्मिक/सेवा प्रदाता कहाँ से मिलेंगे?

 

-           डॉ रमाकान्त राय

असिस्टेंट प्रोफ़ेसर,

पंचायत राज राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, इटावा

९८३८९५२४२६

royramakantrk@gmailcom

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