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बुधवार, 20 जुलाई 2022

महामारी और हिन्दी साहित्य

-डॉ रमाकान्त राय

वर्तमान समय में समूचा विश्व एक विशेष किस्म की महामारी से जूझ रहा है। इसका नाम कोविड_19 रखा गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड_19 को वैश्विक महामारी घोषित किया है। कोविड_19 तीन शब्दों का एक संक्षिप्त नाम है- को का आशय है- कोरोना, वि का अर्थ वायरस और डी से अभिप्राय डिजिज़ है। इस प्रकार यह कोरोना वाइरस डिजिज़ है। इसका पता 2019 के दिसंबर में लगा इसलिए इसमें 19 भी जुड़ा है। सबसे पहले वैज्ञानिकों ने यही परिलक्षित किया कि यह फ्लू का ही एक प्रकार है। फ्लू का अन्य रूप स्वाइन फ्लू, बर्ड फ्लू, इन्फ़्लुएंजा आदि भी है। खांसी जुकाम भी एक किस्म का फ्लू ही है। कोविड_19 की एक विशेष बात यह है कि यह एक संक्रामक व्याधि है। संक्रामक व्याधि उसे कहते हैं जो संक्रमण करते हुए एक दूसरे को चपेट में लेता है। हैजा, चेचक, फ्लू , मलेरिया आदि संक्रामक व्याधियाँ हैं। यह व्याधियाँ किसी प्रोटोजोआ, कवक, जीवाणु अथवा विषाणु के माध्यम से फैलती हैं। अपने संक्रामक चरित्र के कारण यह व्याधियाँ महामारी का रूप धारण कर लेती हैं।

          फ्रांसीसी साहित्यकार अल्बेर कामू का बहुत प्रसिद्ध उपन्यास प्लेग है। यह प्लेग महामारी पर आधारित है। इसी प्रकार रूसी उपन्यासकर अलेक्षान्द्र कुप्रिन ने गाड़ी वालों का कटरा नाम से उपन्यास लिखा है जिसमें यौन संक्रामक बीमारी की विभीषिका वर्णित है। हिन्दी साहित्य में महामारी का उल्लेख कई प्रसिद्ध रचनाओं मे हुआ है। हिन्दी की पहली आत्मकथा मानी जाने वाली बनारसी दास जैन की  “अर्धकथानक” में लेखक के महामारी से ग्रस्त होने का प्रसंग आया है। हिन्दी की प्रारम्भिक कहानियों मे परिगणित की जाने वाली मास्टर भगवान दास की कहानी प्लेग की चुड़ैल तो प्लेग की महामारी पर ही आधारित है। यह कहानी सन 1902 में सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। इस कहानी में गाँव में प्लेग का प्रकोप फैलने और लोगों के भय, आशंका, डर और अमानवीयता का बहुत सुंदर चित्रण हुआ है। यह कहानी हालांकि घटना प्रधान है और चमत्कार के प्रभाव से आगे बढ़ती है लेकिन प्लेग महामारी से लोगों में उपज रहे डर और उसकी विभीषिका को यह बहुत अच्छी तरह से व्यक्त करती है।

          महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा सत्य के प्रयोग में दो छोटे-छोटे अध्याय महामारी को केन्द्रित कर लिखे हैं। जब वह दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में थे तब फेफड़ों की बीमारी प्लेग का प्रकोप हुआ था। गांधी जी ने इस व्याधि से ग्रस्त लोगों की सेवा शुश्रूषा शुरू की। उनके देखभाल की परिधि में कुल तेईस लोग थे। इनमें 21 काल कवलित हुए थे। गांधी जी ने अङ्ग्रेज़ी सरकार द्वारा महामारी से बचाव के लिए पैसा पानी की तरह बहाये जाने का उल्लेख किया है और महामारी के समाप्त हो जाने पर उस लोकेशन की होली करने की बात लिखी है, जहां यह महामारी थी। इस क्रम में म्यूनिसपैलिटी को इस होली में लगभग दस हजार पौंड का नुकसान हुआ।

          1918-19 में इन्फ़्लुएञ्जा नामक महामारी का प्रकोप भारत में हुआ। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने 1939 में प्रकाशित अपने आत्मकथात्मक उपन्यास कुल्ली भाट में इस महामारी के प्रकोप का कारुणिक वर्णन किया है। परिवार के लोगों के एक-एक कर मरने, गंगा नदी में बहती लाशों का विवरण रोंगटे खड़ा कर देता है। इसी महामारी में उनकी पत्नी का भी देहांत हुआ। उनके उपन्यास “अलका” का आरंभ भी एक महामारी के वर्णन से होता है। “महासमर का अंत हो गया है, भारत में महाव्याधि फैली हुई है। एकाएक महासमर की जहरीली गैस ने भारत को घर के धुएँ की तरह घेर लिया है, चारो ओर त्राहि त्राहि, हाय हाय – विदेशों से, भिन्न प्रान्तों से जितने यात्री रेल से रवाना हो रहे हैं, सब अपने घरवालों की अचानक बीमारी का हाल पाकर। युक्त प्रांत में इसका और भी प्रकोप, गंगा, यमुना, सरयू, बेतवा, बड़ी-बड़ी नदियों में लाशों के मारे जल का प्रवाह रुक गया है। .... गंगा के दोनों ओर दो-दो तीन-तीन कोस दूर तक जो मरघट हैं, उनमें एक-एक दिन में दो-दो हजार तक लाशें पहुँचती हैं। जलमय दोनों किनारे शवों से ठसे हुए, बीच में प्रवाह की बहुत ही क्षीण रेखा, घोर दुर्गंध, दोनों ओर एक-एक मील तक रहा नहीं जाता। जल-जन्तु, कुत्ते, गीध, सियार लाश छूते तक नहीं”। महामारी का यह वर्णन रोंगटे खड़े कर देता है। इस रचना में बड़ी संख्या में हुई मौतों का कारुणिक वर्णन है।

          फणीश्वर नाथ रेणु के उपन्यास “मैला आँचल” में मलेरिया का मार्मिक वर्णन है। मेरीगंज का नाम जिस मार्टिन की पत्नी मेरी के नाम पर पड़ा है, उसकी मृत्यु मलेरिया ग्रस्त होने से हुई। मार्टिन इस आघात के बाद मेरीगंज में डिस्पेन्सरी खुलवाने के लिए बहुत प्रयास करता है। समूचे उपन्यास में मलेरिया और कालाआजार नामक बीमारियों का अनेकश: उल्लेख है और डॉ प्रशांत उससे मुक्ति के लिए शोधरत है। वह इसमें कुछ हद तक सफल भी होता है हालांकि यह अलग बात है कि वह अपने अनुसंधान में एक अन्य ही व्याधि की तरफ संकेत करता है- “गरीबी और जहालत- इस रोग के दो कीटाणु हैं। एनोफिलीज़ से भी ज्यादा खतरनाक, सैंडफ़्लाइ (कालाआजार का मच्छर) से ज्यादा जहरीले हैं यहाँ के...”। महामारी को केन्द्रीकृत करके फणीश्वर नाथ रेणु ने “पहलवान की ढोलक” शीर्षक से एक कहानी लिखी है। यह कहानी दिसंबर 1944 में साप्ताहिक विश्वामित्र में प्रकाशित हुई थी। इस कहानी में समूचे गाँव में पहले अनावृष्टि, फिर अन्न की कमी, तब मलेरिया और हैजे के प्रकोप का वर्णन किया गया है। इस वज्रपात के कारण समूचे गाँव में लोग काल कवलित होने लगे थे। जब पहलवान के दोनों बेटे भी एक दिन हैजे की भेंट चढ़ जाते हैं तो भी पहलवान गाँव वालों को ढाढ़स बंधाने के लिए रात-रात भर ढोलक बजाता रहता है लेकिन एक सुबह पहलवान की चित लाश मिलती है। उसके ढोलक को सियारों ने फाड़ डाला था और पहलवान की जांघ भी काट खाया था। यह कहानी महामारी की विभीषिका में पहलवान की जीवटता का बेहतरीन आख्यान है।

          हिन्दी में कमलाकांत त्रिपाठी ने अपने तीन उपन्यासों- पाहीघर, सरयू से गंगा और तरंग में महामारी को कथानक का अंग बनाया है। पाहीघर और सरयू से गंगा में हैजे से गाँव के गाँव नष्ट हो जाने की बात कथानक का अंश बनकर आई है तो तरंग में सन 1896 में फैले प्लेग को एक फ्लैश बैक के रूप मे याद किया गया है। पाहीघर उपन्यास में गुरुदत्त बैशाख के एक दिन भीलमपुर से हैजा लेकर लौटते हैं और अपने डेरे पर आकर दम तोड़ देते हैं। हैजा इस कदर संयुक्त प्रान्त में जानलेवा हो गया था कि उससे हुई मृत्यु पर रोना वर्जित था। ग्रामवासियों में दस्तूर था कि हैजे की लाश जलायी नहीं जाएगी।

राष्ट्रीय सहारा के सामयिक में प्रकाशित

   राही मासूम रज़ा ने अपने प्रसिद्ध उपन्यास “आधा गाँव” में गंगौली में फैली चेचक का जिक्र किया है। शहर से लौटा मासूम जब मुमताज़ को देखने जाता है तो उसे बताया जाता है कि मुमताज़ को माता निकल आई हैं। यह माता चेचक का ग्रामीण संस्करण है। चेचक भी एक महामारी की तरह ही आई और देश में रही। मुमताज़ को चेचक निकल आई हैं तो घर भर में उससे बचाव के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। मरीज से किसी को मिलने नहीं दिया जा रहा, फुन्नन मियां नीम की टहनी से हवा कर रहे हैं और घर की रसोई बहुत सादा भोजन वाली हो गयी है क्योंकि रुकय्ये की शिकायत है कि “चार दिन से तरकारी खाते खाते नाक में दम आ गवा है”।

          इन साहित्यिक कृतियों में एक बात ध्यान देने योग्य है कि सबमें यह महामारी किसी न किसी रूप में बाहर से आई होती है। जान-माल की बेतरह क्षति के बाद यह महामारी अपना प्रकोप तभी समेटती है जब मौसम बदल जाता है। इन व्याधियों के आगमन से गाँव के गाँव नष्ट हो जाते हैं। महामारी के फैलने पर समाज में इससे लड़ने का कोई कारगर उपाय नहीं है। लोग देसी उपचार करते हैं और कई बार सफल भी हो जाते हैं। महात्मा गांधी की आत्मकथा से पता चलता है कि संक्रामक बीमारी के प्रकोप से बचाने के क्रम में बहुत खर्चीला उपाय किया जाता था। महात्मा गांधी ने देसी उपाय कर ही दो बीमारों को प्लेग के प्रकोप से बचा लिया जबकि आधुनिक चिकित्सा पद्धति का उपयोग करके सभी बीस मरीज बचाए नहीं जा सके। उनकी सेवा शुश्रूषा में रत नर्स भी इस संक्रमण और ब्राण्डी का सेवन करने के बावजूद बचाई नहीं जा सकी। एक अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य की तरफ ध्यान आकृष्ट करते हुए अपनी बात समाप्त करूंगा। जिन भी रचनाओं का उल्लेख इस आलेख में किया गया है उसमें अधिकांश औपन्यासिक रचनाओं के आरंभ में ही महामारी के प्रकोप का वर्णन है- यह इसलिए कि महामारी एक जीवन के अन्त की घोषणा और दूसरे जीवन के आगमन की उम्मीद का नाम है। कोविड_19 का यह नवीनतम संस्करण भी इसी तरह के एक नए जीवन की उम्मीद का अध्याय बनेगा।

-असिस्टेंट प्रोफेसर, हिन्दी

पंचायत राज राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय,

 इटावा, उ०प्र०
  9838952426, royramakantrk@gmail.com

गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

कथावार्ता : #covid_19 : प्रिय विद्यार्थियों से एक अपील


प्यारे बच्चों!
आजकल वैश्विक महामारी #covid_19 ने जीवन को अस्त व्यस्त कर रखा है। देश ही नहीं दुनिया के सभी देशों में लगभग लॉक डाउन चल रहा है। आप जान रहे हैं कि हम सबसे सोशल डिस्टेंस मेंटेन करने की अपील हुई है। इसका अर्थ है कि हम एक दूसरे के संपर्क में कम से कम रहें क्योंकि यह बीमारी जिस विषाणु से फैलता है, वह विषाणु एक व्यक्ति के दूसरे व्यक्ति के साथ संपर्क में आने से फैलता है। अतः हम एक दूसरे से पर्याप्त दूरी बना कर रखें। सरकार द्वारा बताए जा रहे उपायों का पालन करें।
आप जानते हैं कि इस बीमारी को covid-19 क्यों कहा जा रहा है? इसका पूरा नाम इस प्रकार है।
CO-     CORONA
VI-      VIRUS
D-       DISEASE
19 –    2019        =  COVID_19

हालांकि इस विषाणु को चीनी वुहान विषाणु भी कहा जा रहा है क्योंकि इसका उदय चीन के वुहान शहर से हुआ है। इस विषाणु से ग्रस्त मरीज का सबसे पहला मामला चीन के इसी शहर से आया था। जबकि भारत में इस बीमारी का पहला मरीज केरल में मिला, जो चीन के इसी शहर वुहान से ही आया था। लेकिन मुझे यहां इस बात पर विचार नहीं करना है।
प्यारे बच्चों! आज इस विषाणु से जनित व्याधि से पूरे विश्व में लगभग 10 लाख लोग ग्रस्त हो चुके हैं और रोजाना लगभग 5000 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डबल्यूएचओ) ने इसे वैश्विक महामारी घोषित कर रखा है। वर्तमान में इटली, स्पेन, फ्रांस, अमेरिका, चीन, ब्रिटेन, हॉलैंड, ईरान आदि देश इस व्याधि से सर्वाधिक पीड़ित हैं। हमारा देश भारत इस व्याधि से लड़ने के लिए कटिबद्ध है। उसने हम भारतीय नागरिकों के जीवन रक्षा और इस विपदा से बचाव के लिए अभूतपूर्व उपाय किए हैं। तथापि यहां कतिपय कारणों से संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। #covid_19 से निजात पाने के लिए, इससे जुड़ी जानकारी के लिए भारत सरकार ने एक वेब पोर्टल जारी किया है। यहाँ आप प्रति मिनट इस बीमारी से हो रही हलचलों को देख सकते हैं।  भारत में covid_19 की हलचल के लिए यहाँ क्लिक करें। दुनिया भर में इस बीमारी के बारे में जानने और उससे जुड़ी जानकारियों के लिए कई पोर्टल बने हैं। दुनिया भर में हो रही हलचल के बारे में जानने के लिए यहाँ क्लिक करें।
          ऐसे कठिन समय में मैं आपसे अपील करता हूं कि आप अपने स्तर से भी इस व्याधि से लड़ने में सक्रिय भागीदारी कर सकते हैं। आप अपने आस-पास के लोगों को इस बीमारी और उसकी गंभीरता से अवगत कराएं। उन्हें बताएं कि निरन्तर स्वच्छता बरतते रहने, हाथ धोते रहने और ऐतिहात बरतने से आप इससे बच सकते हैं। और दूसरे लोगों को भी संक्रमण से बचा सकते हैं। अगर आप इस व्याधि से जुड़े किसी संक्रमित व्यक्ति को जानते हैं तो उसकी जानकारी हेल्पलाइन नंबर 112 या 100 नम्बर पर पुलिस को दें। आप अफवाह फैलाने वाले लोगों को भी चिन्हित कर सकते हैं और उचित माध्यम से जानकारी साझा कर सकते हैं।
          इस बीमारी की गंभीरता का अनुमान इससे लगा सकते हैं कि भारतीय रेल जो युद्ध के समय में भी बंद नहीं हुई, वह पिछले दो सप्ताह से ठप्प है। हवाई जहाज नहीं उड़ रहे। बस और सार्वजनिक परिवहन रोक दिए गए हैं। आवश्यक सेवाओं को छोडकर सभी प्रतिष्ठान बंद कर दिये गए हैं।
          प्यारे बच्चों!
         इस व्याधि से बचाव ही इसका इलाज है। अतः बचाव के उपाय करें। बाहर न निकलें। अपने घर की चारदीवारी में ही रहें। नियमित योगासन और व्यायाम करें। अध्ययन जारी रखें। चित्रकारी करें। नृत्य - संगीत का अभ्यास करें। अच्छी और प्रेरणादायी फिल्में देखें। रचनात्मक रहें। हम इस व्याधि से इसी तरह निजात पा सकते हैं।
इस कठिन समय मे जब हर तरफ लॉकडाउन चल रहा है, हमारी सरकार को हमारी सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए अतिरिक्त प्रयास करना पड़ रहा है। ऐसे समय में हम सरकार की सहायता भी कर सकते हैं। प्रधानमंत्री राहत कोष अथवा PMCARES Fund अथवा मुख्यमंत्री राहत कोष, उत्तर प्रदेश में योगदान कर सकते हैं।
         
अंत में, मैं - प्रख्यात कवि वीरेन डंगवाल की इन काव्य पंक्तियों के साथ अपनी बात समाप्त करता हूं –
"मैं नहीं तसल्ली झूठ-मूठ की देता हूँ
हर सपने के पीछे सच्चाई होती है
हर दौर कभी तो ख़त्म हुआ ही करता है
हर कठिनाई कुछ राह दिखा ही देती है
आए हैं जब चलकर इतने लाख बरस
इसके आगे भी चलते ही जाएँगे
आएँगे उजले दिन ज़रूर आएँगे !"

डॉ रमाकान्त राय
असिस्टेंट प्रोफेसर, हिन्दी;
राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, इटावा, उत्तर प्रदेश


सद्य: आलोकित!

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