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शनिवार, 21 दिसंबर 2024

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : पहला दोहा


श्री गुरु चरण सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि।

बरनउं रघुबर बिमल जस, जो दायक फल चारि।। 


श्री हनुमान चालीसा शृंखला



परिचय-

#श्रीहनुमानचालीसा में कुल तीन दोहे और बीस चौपाइयां हैं। बीस चौपैयाँ चालीस पंक्तियों में हैं, इसलिए यह चालीसा है। साहित्य में छंदों की संख्या के आधार पर कई ग्रंथों का चलन मिलता है। श्री हनुमान चालीसा की रचना गोस्वामी तुलसीदास ने की। यह एक स्वतंत्र पुस्तक है। यह सबसे छोटा ग्रन्थ है। दोहा और चौपाइयों में निबद्ध यह रचना हनुमान जी के चरित्र का वर्णन करने वाली है। 


व्याख्या- 

इस चालीसा का पहला दोहा श्रीगुरूजी की वंदना करता है। यह दोहा #श्रीरामचरितमानस के अयोध्या काण्ड में भी है। इस दोहे में तुलसीदास जी "परम श्रद्धेय श्री गुरुजी के चरणों में अपना शीश नवाते हैं। वह कहते हैं कि श्री गुरुजी के कमल रूपी चरण के रज अर्थात धूलि से अपने मन रूपी दर्पण को साफ कर भगवान श्रीराम के निर्मल यश का वर्णन करता हूं। वह श्रीराम जी, जिनके यश का वर्णन भी चारो प्रकार के फल का प्रदाता है। 

चार प्रकार के फल का आशय है पुरुषार्थ चतुष्टय। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को चार फल कहा गया है जिसे प्राप्त करना मानव जीवन का चरम लक्ष्य है। दोहे में "रघुबर" शब्द रघुकुल के परम प्रतापी राजा भगवान श्रीराम के लिए प्रयुक्त हुआ है। उनका चरित्र और व्यवहार ऐसा है जिससे उनके संबंध में की गई चर्चा विमल यश कही गई है। विमल अर्थात् किसी भी प्रकार के दोष दूषण से मुक्त। भगवान श्रीराम का चरित्र ऐसा ही है। 

श्रीगुरू के चरण कमल के धूल से मन रूपी दर्पण को साफ करना!  ऐसा कलाप तुलसीदास जी ने बताया है। धूल से दर्पण साफ करना एक विशेष प्रविधि है। जब तैल आदि के धब्बे दर्पण पर पड़ जाते हैं तो उन्हें हटाने के लिए धूल की सहायता ली जाती है। धूल, सामान्यतया गंदा करती है किंतु दर्पण के मामले में वही स्वच्छ करने वाला उपादान है। श्रीगुरू के चरणों की धूल भी ऐसी उपयोगी है जो मन पर पड़े हुए मैल को हटा देती है। 

तुलसीदास जी महान कवि हैं। #श्रीहनुमानचालीसा के इस प्रथम वंदना वाले दोहे में उन्होंने विशिष्ट वर्णन पद्धति का आश्रय लिया है।  

इस चालीसा का आरंभ दोहा छंद से हुआ है। #दोहा एक अर्द्धसम मात्रिक छंद है। इसके पहले और तीसरे चरण बराबर होते हैं और मात्राएं 13-13 होती हैं। दूसरे और चौथे चरण भी समान मात्रा वाले होते हैं। यहां 11-11 मात्रा होती है। अर्द्धसम कहने का आशय है आधा समान। मात्रिक का अर्थ है, जिसमें मात्राओं की गणना का ध्यान रखा जाता है। 

भाग - १ 


#एकधागा 

सद्य: आलोकित!

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : पहला दोहा

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