मंगलवार, 26 जनवरी 2010
एक छोटी सी बात
आज लोकतंत्र का उत्सव पर्व है और आज ही मुझे मौका मिला कि मैं रक्तदान करूँ.
हालांकि मुझे थोड़ी सी हिचकिचाहट हुई , अरे नहीं! इसलिए नहीं कि मैं डरा,बल्कि इसलिए कि कल मेरी एक परीक्षा है
और मुझे कल ही २ दिन की लिए दिल्ली भी जाना है।
वहां भी एक परीक्षा है और फिर वापस ३१ को इलाहबाद में।
तो मैं डरा।
लेकिन चुकी ये एक अच्छा मौका था कि इस दिन एक काम हो जो यादगार हो तो मैंने किया।
और ये भी कि मैं बिलकुल ठीक हूँ।
बाकी कि बातें ३१ की बाद.....
मंगलवार, 12 जनवरी 2010
मेरे गांव को जानिए.....
कल घर जा रहा हूँ।
मेरा अपना घर.
मेरा घर जिस सुन्दर से गाँव में है उसका नाम है- चौरंगी चक ।
ये गाँव गाजीपुर जिले में है।
जब आप बनारस से बिहार की लिए निकलते हैं और सीधा रास्ता चुनते हैं तो आपको तकरीबन ८० किलोमीटर के बाद ये जनपद मिलेगा।
गाजीपुर जिन कुछ चीजों के लिए भारत भर में जाना जाता है उनमे एक तो है अफीम फैक्ट्री।
जिस एक साहित्यकार ने यहाँ की धरती पर जन्म लिया और बहुत प्रसिद्धि पाई उनका नाम है राही मासूम रज़ा।
अरे! राही मासूम रज़ा का नाम नहीं जानते?
आधा गाँव नहीं पढ़ा क्या?
टोपी शुक्ला?
महाभारत तो देखा होगा? अरे वही जिसे बी आर चोपड़ा ने निर्देशित किया था।
तब तो आपको जरुर पता होगा की उसके संवाद राही मासूम रज़ा ने ही लिखे थे।
अगर आपने दूरदर्शन पर नीम का पेड़ धारावाहिक देखा है तो आपके लिए ये नाम अनजाना नहीं होगा।
खैर,
अभी बस इतना ही राही मासूम रज़ा के बारे में।
मेरा जिला कार्नवालिस की अंतिम साँसे गिनते देख कर जहाँ बहुत ही खुश हुआ था वहीँ कई शहीदों की क़ुरबानी का पुन्यस्थल भी बन के गौरवान्वित हुआ था।
१९७१ के अमर शहीद अब्दुल हमीद का नाम तो आपको पता ही है, अब उनके नाम पर गंगा के ऊपर से गुजरने के लिए पुल है।
बहरहाल।
अब तक आपका परिचय हो गया होगा।
तो कुछ अपने गाँव के बारे में!
जिला मुख्यालय से कोई १३ किलोमीटर की दूरी पर शाहबाज़ कुली मिलेगा। यहाँ १९०२ में ही रेल का स्टेशन बन गया था। बस के रास्ते से भी जाया जा सकता है।
गंगा नदी के तट पर ही है।
वहां से कोई एक किलोमीटर की दूरी पर उत्तर की ओर रेल लाइन पार करके सीधे मेरे गाँव जाया जा सकता है।
चारो ओर से प्रकृति के अद्भुत नज़ारे से घिरा ये गाँव हमेशा से ही मेरे लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। मैं जब भी अपने इस गाँव की बात करता हूँ, मुझे भवभूति की लिखी और राम द्वारा कही उक्ति याद आती है- जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।
कल जब मैं अपने गाँव जाऊंगा तो मेरे जिम्मे कई काम होंगे।
मैं घर से लौट कर जब आऊंगा तो आपको बताऊंगा की मेरे गाँव में इस कडकडाती ठण्ड से लड़ने के लिए लोग क्या कर रहे हैं।
मैं पक्का जानता हूँ की वहां मुझे गन्ने का रस, मटर की घुघुनी और अलाव में भुना हुआ आलू खाने को मिलेगा।
सद्य: आलोकित!
कथावार्ता : राजेश जोशी की कविता, बच्चे काम पर जा रहे हैं।
सुबह घना कोहरा घिरा देखकर प्रख्यात कवि राजेश जोशी की कविता याद आई - "बच्चे काम पर जा रहे हैं।" कविता बाद में, पहले कुछ जरूरी बाते...
