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गुरुवार, 8 फ़रवरी 2024

बुलडोजर न्याय और पत्थरबाजी

बुलडोजर न्याय कोई न्याय नहीं है। यह खासा हिंसक है और दूरगामी प्रभाव डालता है। इसका समर्थन नहीं किया जा सकता। लेकिन पत्थरबाजी जैसे बर्बर और अमानुषिक कृत्य का कोई दूसरा इलाज भी नहीं है।


आइए पत्थरबाजी और बुलडोजर न्याय को समझने का प्रयास करते हैं।

#एक_धागा 

#बुलडोजर #पत्थरबाज


पत्थर आदिम मानव का अस्त्र था। मानव सभ्यता के इतिहास में नियंडरथल किस्मों ने पत्थर का बढ़िया उपयोग किया था। इतिहास और नृतत्त्वशास्त्र के विद्यार्थी अच्छी तरह जानते हैं कि पत्थरों का कैसा और कितना सुघड़ उपयोग आदिममानव ने किया था। फिर तांबे, कांसे और लोहे का युग आया।

सभ्यताएं प्रगति करती रहीं। उसके अस्त्र शस्त्र आधुनिक होते गए। आज हम मिसाइल और परमाणु बम के युग से भी संक्रमण कर रहे हैं। चीन ने जैविक अस्त्र का परीक्षण दुनिया भर में किया जिसे #COVID19 का नाम दिया गया। 

समाज आज पत्थरयुग से लगभग बाहर निकल आया है। लाठी मनुष्य का सहारा बना।


यदि आग्नेयास्त्रों को छोड़ दें तो अन्य सभी अस्त्रों में (और शस्त्र में भी) तकनीक काम करती है लेकिन पत्थर वाला पारंपरिक अस्त्र अभी भी उसी आदिम तरीके से चलाया जा रहा है। हालांकि दिल्ली में बीते दिनों हुए दंगे में #पत्थरबाजी करने के लिए गुलेल की तकनीक भी अपनाई गई थी। अस्तु,

अरब समाज में आज भी यह सबसे प्रमुख अस्त्र/शस्त्र है। मक्का में शैतान को पत्थर मारते हैं और यह एक बहुत प्रसिद्ध "फंक्शन" है, जिसमें दुनिया भर के मुसलमान एकत्रित होते हैं और पत्थर फेंकने की रस्म अदायगी करते हैं। शरिया वाले समाज में #संगसार करना न्याय का तरीका है।


कोई पत्थर से ना मारे मेरे दीवाने को.. 

तथाकथित पापियों को संगसार करके सजा देना शरिया का हिस्सा है। तो जब किसी प्रदर्शन/दंगा/लूट आदि में पत्थर चलता है तो इसका केवल यह अर्थ नहीं है कि पत्थर सर्वसुलभ है, घातक है, पहचान छिपाता है इसलिए चलता है; बल्कि इसका एक सांस्कृतिक पक्ष है।


पत्थरबाजी करने में एक लाभ है कि आप कभी भी अस्त्र/शस्त्र हीन/युक्त हो सकते हैं। इसकी कोई विशेष तैयारी नहीं है। अभी खाली हाथ थे, अभी पत्थर युक्त हो गए। निशाने पर फेंका और हाथ झाड़कर मासूम बन गए। कोई सबूत नहीं बचा। विकासशील समाजों में पत्थर मिलने की संभावना बहुत अधिक रहती है।


अब यह सब जानते हैं कि हमारे देश में शरिया क़ानून व्यवस्था नहीं है। लेकिन दंगा, उपद्रव, सामूहिक हिंसा तो आम है। अभी कुछ साल पहले तक लाठी चलाने वाले लोगों का एक समूह यदि विपक्षी को सबक सिखाना रहता था तो धावा बोलता था और विपक्षी भी लाठियों से सुसज्जित होकर भिड़ता था।


लेकिन सामंती समाज के विघटन के बाद शत्रु अदृश्य हो गए। कोई किसी को कभी भी बिना बताए नुकसान पहुंचा सकता है। यदि आपको #आधा_गांव उपन्यास की याद हो तो उसमें फुन्नन मियां और कुंवरपाल सिंह एक दूसरे को सावधान कर लाठी चलाते हैं। यही तरीका था। बचने/प्रत्युत्तर के लिए स्पेस मिलता था।पूंजीवादी व्यवस्था ने नैतिकता नष्ट कर दी।


लेकिन हम पत्थरबाजी और दंगे की बात कर रहे थे।

आधुनिक प्रदर्शनों में दंगाई पत्थर का इसलिए भी प्रयोग करते हैं कि इससे लैस होना और मुक्त होना बहुत क्षिप्र गति से संभव है। जब तक फेंकते नहीं, यह हथियार नहीं है। अरब समाज में यह नैपकिन है।


पत्थर फेंकने का कोई प्रमाण नहीं रहता। यह दंगाइयों के लिए सबसे #आदर्श स्थिति है। मारो और भीड़ में छिप जाओ। यदि वीडियो न बने तो पता नहीं चल सकता कि वास्तव में पत्थर किसी को आहत करने के लिए चलाया गया है। वीडियो बने भी तो वह सिर्फ यह बता सकता है कि #पत्थर फेंका गया है।


इसलिए बीते दिनों में अराजकता वादी समूहों ने #पत्थरबाजी को एक फेवरेट टूल की तरह अपनाया है। पत्थरबाजी में और वह भी समूह द्वारा की गई पत्थरबाजी में अनुशासन का अभाव होता है इसलिए इसमें प्रहार और बचाव का कोई नियम नहीं है। सब अंधाधुंध है। यह सुरक्षाबलों के लिए चुनौती हो जाती है।


जब आपके हाथ बंधे हों, बचाव करना एकमात्र रास्ता हो तो पत्थरबाजी एक चक्रव्यूह है और आप अभिमन्यु हैं। जहां क्षत विक्षत होना ही अंतिम परिणति है। जहां क्रूरता है, अट्टहास है और नंगानाच।

सुरक्षा बलों को दंगाइयों का इसी तरह सामना करना पड़ता है। मारना नहीं है। संभव भी नहीं।


ऐसे में, पत्थरबाजी चुनकर दंगाइयों ने मौके का खूब फायदा उठाया है। बीते कुछ समय से इस वृत्ति ने म्लेच्छों में अपार लोकप्रियता हासिल कर ली है। शासन एक तो सॉफ्टकॉर्नर रखता था और फिर यह लूपहोल उसे नख दंत विहीन कर देता था।

अब शासन ने काट खोज ली है। यह उपाय है #बुल्डोजर तकनीक ने शासन के #बुलडोजर अभियान को अपेक्षाकृत न्यायशील बनाया है। दंगा, उपद्रव, अराजकता, बलात्कार, गंभीर अपराध में संलिप्तता का प्राथमिक साक्ष्य मिलते ही कार्रवाई के लिए अनुमति मिल जाती है।

चूंकि न्यायिक प्रणाली धीमी है और बहुत लंबी खिंच जाती है, इसलिए यह न्याय आया है।


शासन ने दंगाइयों, उपद्रवी और अराजक लोगों की संपत्ति नष्ट करने का एक तरह से संकल्प लिया है। न्याय होगा, पहले आपको इसका फल चखा दिया जाए। सम्पत्ति किसी भी व्यक्ति के शक्ति का आधार है। शासन आरोपी के अचल सम्पत्ति को ध्वस्त करती है और चल को जब्त। इससे उसकी शक्ति क्षीण हो जाती है।


चूंकि शासन कोई कार्य द्वेषवश, विभेदकारी तरीके से और अन्याय करते हुए नहीं कर सकती तो इसके लिए उसने अवैध निर्माण और अतिक्रमण का एक ऐसा मार्ग चुना है जिसमें अपार संभावनाएं हैं। अवैध निर्माण बताना तो इतना आसान है कि इसकी कोई काट नहीं। न्यायालय भी इसके आगे विवश रहेगा।


#पत्थरबाजी में जितनी अराजकता और स्वच्छंदता है, #बुल्डोजर में भी वही है। शासन के हाथ यह विशिष्ट तरीका लगा है। इसमें अच्छी बात यह है कि #बुलडोजर_बाबा चलते हैं तो लोग प्रसन्न होते हैं क्योंकि यह आततायी, अत्याचारी, गुण्डा, माफिया आदि को पंगु करता है, लोगों को निर्भय बनाता है।


लोग मुझसे पूछते हैं कि यह न्याय कहां तक जाएगा? मुझे भस्मासुर की कथा याद आ जाती है। उसे वरदान मिला था कि वह जिसके सिर पर हाथ रख देगा, वह भस्म हो जाएगा। उसे वरदान का सदुपयोग करना था। उसकी तपस्या का यह फल मजेदार होना था किन्तु उसने बहकावे में आकर गलत पंगा ले लिया। भस्म हुआ।


तो #बुलडोजर शासन को प्राप्त एक अपरिमित शक्ति से युक्त वरदान है। शासन इसका वरदान की तरह प्रयोग करे तो वह सुशासन बनाए रखने में सहायक होगा। दुरुपयोग करेगा, जैसा महाराष्ट्र में कंगना राणावत के साथ किया तो भस्मासुरी अन्त होगा।


वरदान रूप में मैं बुलडोजर के साथ हूं और आप?


#कथा #वार्ता #कथावार्ता

सद्य: आलोकित!

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