जब मैं कोई अच्छी किताब पढ़ने लगता हूँ तो यह भावना मन में घर करने लगती है कि अगर यह जल्दी ही पढ़ ली जाएगी तो कैसा लगेगा! फिर एक उदासी, सूनापन, रिक्ति का अहसास घर करने लगता है क्योंकि उसे पढ़ते समय जैसी समृद्धि रहती है वैसी उसके आखिरी शब्द पढ़ने के बाद नहीं रहेगी। बीते दिन भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित पानी पर पटकथा पढ़ते हुए भी यही भावना मन में थी और उसका एकाध निबंध अभी भी नहीं पढ़ सका हूँ।
आज उल्लेख करना है #प्रभात_रंजन की पुस्तक #पालतू_बोहेमियन की। यह कृति प्रख्यात साहित्यकार और धारावाहिक लेखक मनोहर श्याम जोशी को याद करते हुए लिखी गयी है। मैंने प्रभात रंजन द्वारा अनुदित एक किशोरी की डायरी पढ़ी है, उनका उपन्यास कोठागोई मुझे किस्सा शैली का बेहतरीन उदाहरण मानने में कोई संकोच नहीं होता। उनकी कहानियां, विशेषकर जानकीपुल ने बहुत कीर्ति अर्जित की है। यह कृति मनोहर श्याम जोशी को याद करते हुए लिखी गयी है तो इसे पढ़ने के कई कारण हैं। मनोहर श्याम जोशी को पसंद करने के कई कारण हैं। उनका उपन्यास 'कसप' किशोर जीवन का सबसे शानदार आख्यान है। जब हमने उनका उपन्यास 'हमजाद' एमए के दिनों में पढ़ा था तो हम उनसे मोहाविष्ट थे और हमजाद के चरित्रों को अपने आसपास खोजते और थुक्का फजीहत करते थे। उनकी और भी किताबें मसलन ट-टा-प्रोफेसर, क्याप और हरिया हरक्यूलिस की कहानी ने हमलोगों को बहुत आकर्षित किया था।
प्रभात रंजन की यह किताब अपने शीर्षक के कारण भी आकर्षक लगी थी और मन में इच्छा थी कि मनोहर श्याम जोशी जैसे 'असामाजिक' लेखक ने कैसा जीवन जिया, इसे जरूर जाना जाए। वह अपने लेखन के प्रति बहुत सजग थे और यही करना चाहते थे। यह समर्पण भाव उन्हें बड़ा भी बनाता है और उनके प्रति श्रद्धा भाव भी जगाता है।
प्रभात जी ने इसका हवाला देते हुए लिखा भी है कि जोशी जी अक्सर इस बात पर रंज प्रकट करते थे कि हिंदी में लेखन को लेकर समर्पण भाव का अभाव है, इसलिए उम्दा लेखन का भी टोटा रहता है।
पालतू बोहेमियन मनोहर श्याम जोशी के जीवन के कई पहलू उजागर करती है और प्रभात रंजन ने उनके साथ जिये समय को बहुत आत्मीयता और साफगोई से अभिव्यक्त किया है। यह किताब न सिर्फ जोशी जी के जीवन और लेखन के विविध पक्षों को उद्घाटित करती है अपितु लिखने, लेखन के प्रबंधन और पढ़ने के तौर तरीके भी सिखाती है। इस किताब में कई ऐसे प्रसंग हैं जहां से नए और पुराने लेखकों को सबक मिल सकता है।
इस पुस्तक के विवरण से पता चलता है कि प्रभात रंजन उनके बेहद करीबी रहे हैं और उन्हें अच्छे से जानते बूझते रहे हैं। उन्होंने मनोहर श्याम जोशी के जीवन के कई ऐसे प्रसंगों पर विस्तार से लिखा है जब वह जरूरतमंद लोगों की आगे बढ़कर मदद करते थे और इसका श्रेय भी नहीं चाहते थे।
पालतू बोहेमियन कई दिन से पढ़ रहा था। एक अध्याय पढ़कर दूसरा कुछ पढ़ने लगता था, लेकिन आज मिले कुछ निराशाजनक खबरों के बीच इसे पढ़कर पूरा कर लिया। यह पुस्तक अपने आखिरी पन्नों में शोक विह्वल कर देती है जब मनोहर श्याम जोशी के न रहने का वृतांत लेखक शब्दबद्ध करता है।
अपने लिखे/पढ़े/अधूरा छोड़ दिये/योजना में शामिल साहित्य, पत्रकारिता, धारावाहिक और फ़िल्म को लेकर मनोहर श्याम जोशी की भावना का बेहतरीन अंकन करने में प्रभात रंजन कामयाब रहे हैं।
इस किताब की भूमिका पुष्पेश पंत ने लिखी है जो मनोहर श्याम जोशी को पहाड़ के दिनों से यानि उनके आरम्भिक संघर्ष और निर्माण के समय से जानते हैं। उनकी भूमिका इस किताब को पढ़ने का गवाक्ष भी देती है।
वैसे तो इस किताब में कई उल्लेखनीय प्रसंग और प्रेरक बाते हैं लेकिन 'क्याप' उपन्यास पर साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित होने के बाद लेखक को दी गयी प्रतिक्रिया उद्धृत कर इस अनुशंसा के साथ अपनी बात समाप्त करना चाहता हूँ कि यह किताब नवोदित और स्थापित सभी साहित्यकारों को जरूर पढ़नी चाहिए और उन लोगों को भी जो लेखकों के जीवन में झांककर उनका अंतर्मन और बाह्य जीवन जानने के इच्छुक हैं। लेखक ने साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित होने के बाद जब मनोहर श्याम जोशी को फोन किया तो उन्होंने 'स्थितप्रज्ञ' भाव से कहा था- "इसमें बधाई की क्या बात है? हर बार एक ज्यूरी बैठती है और अपनी पसंद के किसी लेखक को पुरस्कार दे देती है। इस बार संयोग से ऐसी ज्यूरी थी जो मुझे पसंद करती थी। हिन्दी में पुरस्कारों का यही हाल है।"
पुस्तक का नाम- पालतू बोहेमियन मनोहर श्याम जोशी-एक याद
प्रकाशक-राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
मूल्य- 125₹
भूमिका- पुष्पेश पंत