महावीर विक्रम बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
तीसरी चौपाई
श्री हनुमान चालीसा की तीसरी चौपाई में हनुमान जी के तीन और विशेषण आए हैं। यह विशेषण उनके पर्याय ही हो गए हैं। दूसरी अर्द्धाली में उनके चरित्र की एक विशेषता बताई गई है।
हनुमान जी को महावीर कहा गया है। महा का अर्थ विशाल/बड़ा है। वह बहुत बड़े वीर हैं। वीरता के समस्त लक्षण हनुमान जी में मिलते हैं। धैर्य, शील, शौर्य और शक्ति और विनम्रता; हनुमान जी का चरित्र इस सबसे परिपूर्ण है।
वह विक्रम हैं। विक्रम का अर्थ शक्ति है, विशेष क्रम वाला है। वह स्वयं शक्ति स्वरूप हैं। उनका एक अन्य नाम बजरंगी है। वज्र के समान अंग वाले हनुमान जी को बजरंगी कहा गया है। सबको पता है कि वज्र देवराज इन्द्र का शस्त्र है, जो अपनी कठोरता के लिए जाना जाता है। इसी वज्र की सहायता से वृत्रासुर का वध हुआ था और यह वज्र महर्षि दधीचि की अस्थियों से बना था।
हनुमान जी को कुमति अर्थात दुर्बुद्धि का निवारण करने वाला तथा सुमति यानि अच्छी बुद्धि, सद्बुद्धि का साथी बताया गया है। तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस में एक स्थान पर लिखा है कि जहां सुबुद्धि है, वहां सम्पन्नता है और जहां दुर्बुद्धि है वहां विविध तरीके की विपत्तियां। - जहां सुमति तहां संपति नाना।
जहां कुमति तहां विपत्ति निधाना।।
इस प्रकार #हनुमानजी संपति और संपन्नता के स्वामी हैं तथा विपत्ति के निवारण कर्ता।
#HanumanChalisa की यह तीसरी चौपाई हनुमान जी के चरित्र की विशिष्टताओं को बताने वाली महत्वपूर्ण पंक्ति है।
आइए इसका ध्यान करें और हनुमान जी महाराज को सादर प्रणाम करें!🙏
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