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शुक्रवार, 9 फ़रवरी 2024

कर्णधार : मानस शब्द संस्कृति

 

कर्णधार : मानस शब्द संस्कृति 

करनधार तुम अवध जहाजू।
चढ़ेउ सकल प्रिय पथिक समाजू।।
धीरजु धरिअ त पाइअ पारू।
नाहिं त बूड़िहि सब परिवारू।।

नौका/जहाज को पानी में यत्र तत्र के जाने के लिए जो चप्पू प्रयुक्त होता है, वह भी कर्ण है। उसे धारण करने वाला, नौका को दिशा देने वाला #कर्णधार। उसका ही दायित्व रहता है कि वह नौका को जहां चाहे ले जाए। पार उतारे या डुबोए, उसका कौशल है।

#मानस_शब्द #संस्कृति

प्रसंगवश कौशल्या कहती हैं कि राम के वियोग रूपी समुद्र में अयोध्या रूपी जहाज के कर्णधार राजा दशरथ हैं।

सद्य: आलोकित!

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