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बुधवार, 2 अगस्त 2023

देह शिवा बरु मोहि इहै - गुरु गोविंद सिंह

देहु शिवा बरु मोहि इहै सुभ करमन ते कबहूं न टरों।

न डरों अरि सो जब जाइ लरों निसचै करि अपुनी जीत करों ॥

अरु सिख हों आपने ही मन कौ इह लालच हउ गुन तउ उचरों।

जब आव की अउध निदान बनै अति ही रन मै तब जूझ मरों ॥

अर्थ

हे शिवा (शिव की शक्ति) मुझे यह वर दें कि मैं शुभ कर्मों को करने से कभी भी पीछे न हटूँ।
जब मैं युद्ध करने जाऊँ तो शत्रु से न डरूँ और युद्ध में अपनी जीत पक्की करूँ।
और मैं अपने मन को यह सिखा सकूं कि वह इस बात का लालच करे कि आपके गुणों का बखान करता रहूँ।
जब अन्तिम समय आये तब मैं रणक्षेत्र में युद्ध करते हुए मरूँ।

बुधवार, 20 जनवरी 2021

“वाहे गुरुजी का खालसा/ वाहे गुरुजी की फतेह!”

 -डॉ रमाकान्त राय

गुरु गोविन्द सिंह गुरु तो हैं ही, महान योद्धा भी हैं। उन्होंने सिखों को संगठित किया। आजीवन औरंगजेब के अत्याचारी और क्रूर शासन के विरोध में सशस्त्र प्रतिरोधी रहे। उनकी "पंज प्यारे" की खोज अद्भुत है। सिखों के लिए पांच "क" अनिवार्य कर दिया। हर समुदाय के लोगों को एक मंच दिया। इस्लाम के खिलाफ बड़ी दीवार बना दी। इस्लाम समानता के समादृत सिद्धांत के साथ आया था और यह उसकी ताकत थी। गुरु गोविन्द सिंह ने उसे सिखों के समूह का मूल बना दिया। वहां सब सिंह हैं।

गुरु गोविन्द सिंह ने गुरु ग्रंथ साहिब का संपादन किया। हिन्दी के कई संत कवियों की वाणी को संकलित किया। कबीर, दादू, रैदास आदि के पदों को शामिल किया। यह बहुत बड़ा काम था। वह कवि थे। उन्होंने भक्ति और शक्ति की कविताएं लिखी हैं। उनकी यह कविता तो जगत प्रसिद्ध है-

चिड़ियों से मैं बाज लडाऊं,

गीदड़ों को मैं शेर बनाऊ।

सवा लाख से एक लडाऊं

तभी गोबिंद सिंह नाम कहाउँ !!

वह संत थे लेकिन धज राजा की थी। वह कुशल घुड़सवार थे। उन्हें देखकर याद आता है कि संत योद्धा, संगठनकर्ता, सेनापति और शासक हो सकता है। उन्होंने सम्पत्ति के प्रति अनासक्ति नहीं दिखाई। लोकोपकारक कार्य बिना समृद्धि के नहीं आ सकती। और इसके लिए कर्मवीर होना आवश्यक है।

गुरु गोविंद सिंह

उन्होंने सिखों को कर्मवीर होने के लिए प्रवृत्त किया। हमारे समाज में यह सहज धारणा है कि सिख भीख नहीं मांगता। गुरुद्वारों में अहर्निश चलने वाला लंगर उनके भोजन की आवश्यकता पूरी कर देता है। उन्होंने सिखों को श्रम का महत्त्व बताया। कोई काम छोटा नहीं होता। खूब धनी सिख, गुरुद्वारों में दर्शनार्थियों के जूता सहेजता, लंगर के उपरांत जूठा हुए बर्तन साफ करता दिख जाता है। यह "सेवा" का उत्कृष्ट उदाहरण है जिसे गुरु गोविंद सिंह ने सिखों को सिखाया।

गुरु गोविंद सिंह का योगदान क्या था? बुल्ले शाह, जो बहुत प्रसिद्ध सूफी कवि थे, ने अपनी एक कविता में लिखा है-

            मैं अतीत की बात नहीं कहता

            मैं वर्तमान की बात करता हूँ

            यदि गुरु गोविन्द सिंह नहीं होते

            हर व्यक्ति तब मुस्लिम होता।

मूल पंजाबी पाठ

            ना कहूँ जब की, ना कहूँ तब की,

            बात कहूँ मैं अब की,

            अगर ना होते गुरु गोविन्द सिंह,

            सुन्नत होती सभ की।

          गुरु गोविंद सिंह ने तलवार के बल पर चल रहे धर्मांतरण को रोकने के लिए सशस्त्र बल बनाया। सिखों को लड़ाकू बनाया। उन्हें कृपाण रखना और उसका उपयोग करना सिखाया। कृपाण उन पाँच क में से एक है, जिसे सिखों द्वारा धारण करना अनिवार्य कर दिया गया था। यह अस्त्र आत्मरक्षा और निर्बल, असहाय की रक्षा का उपकरण है। यह मन में विश्वास भरता है, आत्मनिर्भर बनाता है।

          महान योद्धा और रक्षक गुरु गोविंद सिंह तरल, सरल हृदय के संत थे। ईश्वर के अनन्य भक्त थे। खालसा पंथ की स्थापना ने उन्हें इतिहास का अमर पुरुष बना दिया।

                    “वाहे गुरुजी का खालसा

                    वाहे गुरुजी की फतेह!”

गुरु गोविंद सिंह की जयंती पर पुण्य स्मरण!

प्रस्तुत है गुरु गोविंद सिंह के दो पद-

(1)

          कोऊ भयो मुंडिया संनियासी कोऊ जोगी भयो कोई ब्रह्मचारी कोऊ जती अनुमानबो।

          हिन्दू-तुरक कोऊ राफजी इमाम साफ़ी मानस की जात सबै एकै पहचानबो।

          करता करीम सोई राजक रहीम ओई दूसरों न भेद कोई भूल भ्रम मानबो।

          एक ही की सेव सब ही को गुरुदेव, एक एक ही सरूप सबै एकै जोत जानबो॥

(2)

          देहरा मसीत सोई पूजा और निवाज ओई मानस सबै एक पै अनेक को भ्रमाउ है।

          देवता अदेव जच्छ गंधरब तुरक हिन्दु निआरे निआरे देसन के भेस को प्रभाउ है।

          एके नैन एके कान एके देह एके बान खाक बाद आतस और आब को रलाउ है।

          अलह अभेख सोई पुरान और कुरान ओई एक ही सरूप सबै एक ही बनाउ है॥



असिस्टेंट प्रोफेसर, हिन्दी

राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय

इटावा, उ०प्र०

9838952426, royramakantrk@gmail.com


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