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शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2020

कथावार्ता : सबको साधने में बिखर गया मिर्जापुर का सीजन -2

क्या सबको साधने में मिर्जापुर-2 बिखर गया हैनवरात्रि में मिर्जापुर-2 के अमेज़न प्राइम पर जारी होने का दबाव इस वेबसीरीज़ पर रहा हैनवरात्रि में स्त्री सशक्तिकरण के पारंपरिक विमर्श से इस नए सीजन को जोड़ने की कोशिश हुई हैबीते दिनों में आपत्तिजनक कहे जाने वाले प्रसंगों को लेकर अतिरिक्त सावधानी बरती गयी हैसोशल मीडिया के ट्रेण्ड्स हावी हुए हैंबीते दिनों के ज्वलंत मुद्दों को ध्यान में रखकर प्रसंगों को गढ़ा गया है और विवादित होने से बचाने के सभी प्रयास किए गए हैंअमेज़न प्राइम पर मिर्जापुर का सीजन -2 देखते हुए अनेकश: ऐसे खयाल उभरते हैं।

अमेज़न प्राइम पर मिर्जापुर का सीजन -2 दस बड़े अंकों (एपिसोड) के साथ कल देर शाम जारी हो गया। मिर्जापुर का आरंभिक सीजन बहुत लोकप्रिय हुआ था और कसे हुए कथानकउत्तम अभिनय और चुस्त संवाद के लिए जाना गया। अपराध की दुनिया को केंद्र में रखकर बुने गए कथानक में हिंसासेक्स और गालियों के छौंक से वह ठीक ठाक मसालेदार भी बना था। दूसरा सीजन कालीन भैयामुन्ना त्रिपाठीगुड्डू पण्डितशरद शुक्ला के आपसी गैंगवार में अपना क्षेत्र विस्तार करता है और अब इसका क्षेत्र मिर्जापुर से आगे जौनपुरलखनऊ के साथ-साथ बलियासोनभद्रगाजीपुरगोरखपुर गो कि समूचे पूर्वाञ्चल को समेट लेता है और अफीम के अवैध व्यापार का क्षेत्र बिहार के सिवान तक जा पहुँचता है। इस क्रम में कुछ नए माफियाओं का उदय होता है जिसमें सिवान का त्यागी खानदान और लखनऊ में रॉबिन की विशेष छाप है।


          पिछले सीजन के अंत तक यह बात समझ में आने लगती है कि माफियाओं की दुनिया में महिलाओं का प्रवेश होने वाला है। कालीन भैया की पत्नी की महत्वाकांक्षा ज़ोर पर है, जौनपुर में शुक्ला के मरने के बाद उसकी विधवा यह जिम्मा लेती है। गुड्डू पण्डित के साथ उसके छोटे भाई की मंगेतर है और छोटी बहन। सीजन दो में मुख्यमंत्री की विधवा पुत्री माधुरी यादव का अवतरण है जो मुन्ना त्रिपाठी की आकांक्षाओं को पंख देती है और सत्ता-संघर्ष में सबको पीछे छोडते हुए मुख्यमंत्री बन जाती है।

          सीजन दो में महिलाओं के प्रवेश और उनके हस्तक्षेप से यह सहज समझ में आने लगता है कि निर्माता इसमें स्त्री सशक्तिकरण का अध्याय जोड़ना चाहते हैं। माफियाओं की दुनिया में लड़कियाँ अग्रणी भूमिका में हैं। लगभग हर गिरोह में स्त्री शक्ति की भूमिका बन गयी है। उनकी महत्वाकांक्षा चरम पर है लेकिन सभी प्रसंग मिलकर भी कोई विशेष छवि नहीं गढ़ पाते। सारी कवायद संतुलन बनाने के लिए की गयी है और अगर वह बिखर नहीं गयी है तो वह कसाव नहीं बना पाई है, जो उदघाटन वाले सीजन में था।

          मिर्जापुर का सीजन -2 अपना क्षेत्र विस्तार करता है और लखनऊ समेत पूर्वाञ्चल के अन्यान्य जिलों में भी इसका कथानक पहुँचता है और बिहार के सिवान तक भी लेकिन सिवान और बलिया को छोडकर किसी अन्य जनपद की कोई विशेष उल्लेखनीय परिघटना नहीं मिलती। गाजीपुर का नाम अफीम के खेत के सिलसिले में उभरता है और बलिया का बिहार से सटे निकटवर्ती जनपद और गुड्डू पण्डित के ताज़ा अड्डे से जुड़कर। लखनऊ का इसलिए कि वह राजनीतिक घट्नाक्रमों का केंद्र है और रॉबिन का अवतरण स्थान। क्षेत्र विस्तार करने में सिर्फ नाम दे दिये गए हैं। किसी अन्य स्थानीय विशेषता से यह प्रकट नहीं होता कि पात्र बिहार में है अथवा जौनपुर में। यहाँ तक कि भाषिक भिन्नता भी रेखांकित नहीं की जा सकेगी।

          इस सीजन का सबसे लचर पक्ष राजनीतिक उठापटक है। मुख्यमंत्री बनने की लालसा में जेपी यादव अपने बड़े भाई और पुनर्निर्वाचित मुख्यमंत्री को मरवा देता है। जे पी यादव पिछले सीजन में मिर्जापुर की गद्दी दिलवाने के लिए राजनीतिक एजेंट की भूमिका में था जो इस बार मुख्यमंत्री बनने के लिए हर हथकंडे अपनाता है। लेकिन शपथ ग्रहण से पूर्व उसको जिस तरह से पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निष्काषित किया जाता है वह सबसे अविश्वसनीय पहलू है। फिर माधुरी यादव त्रिपाठी- माधुरी यादव मुन्ना त्रिपाठी की ब्याहता बनने के बाद मुख्यमंत्री पिता के मरने के बाद इसी रूप में आती हैं- विधायक दल की बैठक में अपना नाम स्वतः प्रस्तावित करती हैं। कालीन भैया भी मुख्यमंत्री बनने की रेस में हैं और प्रथमद्रष्टया तो लगता है कि माधुरी उनका नाम ही प्रस्तावित करेंगी। लेकिन इस सीजन के कथानक बुनने वालों ने राजनीतिक उठापटक को इतना एकरैखिक बनाया है और इस विषय पर इतना कम शोध किया है कि यह समूचा प्रकरण अतिनाटकीय और यथार्थ से बहुत परे चला गया है।

          सिवान का क्षेत्र इस सीरीज में दद्दा त्यागी के कारण उल्लेखनीय हो गया है। बिहार में शराबबंदी लागू है लेकिन दद्दा धड़ल्ले से उसका अवैध व्यापार कर रहे हैं। उनके दो बेटों में छोटे को भी सम्मान पाने की लालसा है। वह स्मैक का धंधा ले आता है जबकि दद्दा त्यागी ने संकल्प किया है कि वह अफीम के धंधे में नहीं उतरेगा क्योंकि उसका नाटा कद इसी नशे के कारण है। त्यागी अधिकांशतौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वर्चस्व वाले हैं। इस सीरीज में वह सिवान में हैं, यह बात भी थोड़ी अटपटी लग सकती है।


         मिर्जापुर का सीजन -2 अंतत: गैंगवार और सत्ता संघर्ष है। आखिरी अंक में यह निर्णायक संग्राम होता है जिसमें मुन्ना त्रिपाठी मारा जाता है। कालीन भैया को शरद ने बचा लिया है लेकिन वह कब तक और किन शर्तों पर बचेंगे, यह अगले सीजन के लिए छोड़ दिया गया है। माधुरी के लिए वैधव्य ही नियति है। कालीन भैया को मंत्रीपद मिला है लेकिन पिता की मृत्यु के बाद वह जिस तरह अंतिम संस्कार करने पहुँचते हैं, वह यथार्थ से बहुत दूर की कौड़ी है।

          इस सीरीज के दस अध्यायों के नामकरण में भी कोई खास रचनात्मक विशेषता नहीं झलकती। इस सीरीज के अध्यायों में एक और खटकने वाली बात है कि सिवान, बलिया, जौनपुर से मिर्जापुर या लखनऊ तक पहुँचने की दूरी पलक झपकते पूरी कर ली जाती है। कोई पात्र मिलने की इच्छा प्रकट करता है और यह मिलन हो जाता है। यह इतना सहज है जैसे एक मुहल्ले से दूसरे तक का सफर करना हुआ हो। अतः यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं कि इस वेबसीरीज़ में कई पक्षों को साधने की कोशिश असफल हुई है और यह बिखर गया है।

          तमाम अव्यवस्थाओं और शिथिलताओं के बावजूद मिर्जापुर का सीजन -2 पंकज त्रिपाठी, अली फज़ल, दिव्येंदु शर्मा, ईशा तलवार, कुलभूषण खरबन्दा, श्वेता त्रिपाठी के दमदार अभिनय और कथाजनित सस्पेंस से दर्शनीय बन गया है। इसे एक बार तो देखा ही जा सकता है!

 

डॉ रमाकान्त राय

असिस्टेंट प्रोफेसर, हिन्दी

राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय,

इटावा, उत्तर प्रदेश 206001

9838952426, royramakantrk@gmail.com


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