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सोमवार, 30 मार्च 2020

कथावार्ता : लॉकडाउन में लोक कथा : कौड़ी वाली चिड़िया


          एक चिड़िया थी। बातूनी। कहीं से एक कौड़ी पा गयी। वह कौड़ी उसके लिए बहुत मूल्यवान थी। कौड़ी को उसने बहुत जतन से अपने घोंसले में छिपा रखा था। इस संपत्ति को पाकर वह बहुत प्रफुल्लित थी। वह अपनी खुशी छिपा नहीं पा रही थी। तो हर तरफ लगी इसकी चर्चा करने। बातूनी तो थी ही, चर्चा का ढंग भी अनूठा था। कहती थी- "हमरा त ढेर धन, रजवा कंगाल बा।" सुबह शाम यही कहती रहती थी। नाचती-गाती और गुनगुनाती। "हमरा त ढेर धन, रजवा कंगाल बा।" उसका गाना गुनगुनाना आमजन में चर्चा का विषय बन गया।

          धीरे धीरे यह बात राजा तक जा पहुंची, उसे बहुत बुरा लगा। उसने सेनापति को बुलाया, मामले का ठीक ठीक पता लगाने को कहा। सेनापति ने सैनिकों को काम पर लगा दिया। सैनिकों से कहा देखो तो क्या है इसके पास! सैनिक घोंसले तक पहुँचे। कौड़ी बरामद हुई। राजा ने आदेश किया- कब्जे में ले लो। सैनिकों ने आदेश का पालन किया।
          अब चिड़िया बहुत चिन्तित हुई। पहले तो उसने दुख प्रकट किया और बाद में अपने प्रतिरोध का तरीका बदल लिया। अब चिड़िया गाने लगी। उसने अपना सुर बदल दिया, कहने लगी- “रजवा कंगाल बा, हमार कौड़िया छीन लिहलस!" राजा ने देखा कि इससे तो भारी बेइज्जती हो रही तो कहा, लौटा दो भाई। सैनिकों ने वापस रख दिया कौड़ी तो चिड़िया को खुशी हुई। उसने हर्ष की अभिव्यक्ति में नया गाना गुनगुनाया- "रजवा डेरा गइल, मोर कौड़िया रख गइल।"
          चिड़िया की खुशी तो ठीक बात थी लेकिन राजा के डरपोक होने की बात राजा को बहुत अखरी। अब राजा के क्रोध की सीमा न रही। उसने आदेश दिया कि चिड़िया पकड़कर उसका मांस पकाया जाये और शाम के खाने में परोसा जाए। आदेश का पालन हुआ। चिड़िया ने कठिन परिस्थिति में अपना गाना जारी रखा। चिड़िया की गरदन कटने लगी तो उसने गाना शुरू किया- "अब काट पीट मोर होत बा!" जब पकाई जाने लगी तो आवाज सुनाई पड़ने लगी, "छनन मनन मोर होता बा।" जब राजा खाने लगा तो यह कि "गबर गुबुर मो खवात बानी!" तौबा तौबा करके उससे पीछा छूटा। राजा निश्चिंत हुआ। बला टली।
          लेकिन जब राजा बिस्तर पर गया तो चिड़िया पेट में खदबदाने लगी। राजा परेशान। गुड़गुड़ की आवाज आती रही। रात बहुत बेचैनी में गुजरी। किसी किसी तरह सुबह हुई। सुबह उठते ही राजा ने सैनिकों से कहा कि जब मैं शौच जाऊं और यह चिड़िया बाहर निकले तब इसकी गरदन तलवार से काट देना। सैनिक मुस्तैद थे। चिड़िया बाहर निकली। सैनिकों ने तलवार का भरपूर वार किया। चिड़िया का कुछ न हुआ राजा का पिछवाड़ा लाल हो गया। अब चिड़िया ने कहना शुरू किया- "राजा के लाल गां$@& देख लिहलीं। राजा क लाल ....."

          नोट-कई ऐसे मामले जिनका संज्ञान नहीं लिया जाना चाहिए, लेने पर ऐसी ही किरकिरी होती है।


गुरुवार, 26 दिसंबर 2019

कथावार्ता : चल टमकिया टामक टुम


(डिक्लेरेशन-इस कहानी के कई संस्करण हो सकते हैं)

     चल टमकिया टामक टुम

एक थी बुढ़िया।
बहुत सयानी।
घाट घाट का पीकर पानी।
बन गयी थी सबकी नानी।
एक दिन की बात है।
सच्ची-सच्ची बात है।
नहीं है कुछ भी झूठा-मूठा
पतियाओ या चूसो अंगूठा।
वह चली अपने मायके।
बहुत समय बितायके।
राह में मिल गया एक सियार।
बोला अपना दाँत चियार।
'बुड्ढी तुझको खाऊंगा।
अपनी क्षुधा मिटाऊंगा।'
बुढ़िया ने कहा- 'सुनो सियार!
मैं जाती अपने गाँव
लौटूंगी उलटे पाँव।
जब मैं वापस आऊँगी
तब मुझको खा लेना
अभी बहुते काम है
बाद में क्षुधा मिटा लेना।
सियार का दिल पसीज गया
  वह कुछ सोचा फिर रीझ गया।

बुढ़िया उसके बाद अपने गाँव गयी। वह थोड़ा परेशान थी। उसके भाई-भतीजे मिले। सबने आशीष लिया। सबने कुशल क्षेम जाना। भौजाई ने ठिठोली की। भाई ने चिन्ता का कारण पूछा। बुढ़िया ने सब कहानी कह सुनाई।
तब भाई ने मंगाया एक कद्दू। 
एक बड़ा कद्दू। 
एक बहुत बड़ा कद्दू।
कद्दू को काटकर बनाई गई एक टमकी। बुढ़िया उसी में बैठकर वापस लौटी।
वह टमकी गाती थी-
चल टमकिया टामक टुम
कहाँ की बुड्ढी कहाँ की तुम?
टमकी गाती जाती थी-
चल टमकिया टामक टुम
कहाँ की बुड्ढी कहाँ की तुम?

तब बुढ़िया संगत करती और जवाब देती-
चल टमकिया टामक टुम
छोड़े बुड्ढी सूँघे तुम।
चल टमकिया टामक टुम
छोड़े बुड्ढी सूँघे तुम।

टमकी लुढ़कते लुढ़कते चली। सियार का डेरा आ गया। वह जबर खुश हो गया। उसने गाना सुना तो नाचने लगा।- 'आज सुरन्ह मोहि दीन्हि अहारा'...

बुढ़िया ने कहा- 'सुनो सियार, हमने अपना वचन पूरा किया है। अब तुम मुझे अपना आहार बना सकते हो। लेकिन अच्छा यह रहेगा कि मैं गंगा स्नान कर आऊँ। पवित्र हो जाऊँ और आखिरी प्रार्थना भी कर लूं।'

सियार ने कहा- 'ठीक बात! आई विल वेट!'

बुढ़िया गंगा स्नान को गयी और जितना नहाया- उससे अधिक समय उसने अपने पिछवाड़े में बालू भरने में लगाया। जब खूब बालू भर लिया तो आयी। सियार अपने दांत तेज कर चुका था। बुढ़िया ने अपने को प्रस्तुत करते हुए पूछा- 'सिर की तरफ से खाओगे या धुसू की तरफ से?' 

अब सियार का माथा चकराया।
इसका रहस्य क्या है, उसने हाथ नचाया।
बुढ़िया ने कहा-
जो तीता-तीता खाना है तो सिर की तरफ से खाओ।
और मीठा मीठा पाना है तो धुसू की तरफ़ मुंह लाओ।
सियार ने सोचा-इसमें क्या बुरा है।
अच्छा शिकार है और डेरे में सुरा है।
तो उसने कहा- धुसू की तरफ से खाऊँगा।
बुढ़िया ने कहा- तब हो जाओ तैयार।
ज्योंहि सियार ने मुँह लगाया- 
बुढ़िया बोली भड़ाम
बालू छोड़ी धड़ाम!

सब बालू सियार के आंख-मुँह में भर गया। वह रोते बिलखते भागा..


सद्य: आलोकित!

आर्तिहर : मानस शब्द संस्कृति

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