(डिक्लेरेशन-इस कहानी के कई संस्करण हो सकते हैं)
एक थी बुढ़िया।
बहुत सयानी।
घाट घाट का पीकर पानी।
बन गयी थी सबकी नानी।
एक दिन की बात है।
सच्ची-सच्ची बात है।
नहीं है कुछ भी झूठा-मूठा
पतियाओ या चूसो अंगूठा।
वह चली अपने मायके।
बहुत समय बितायके।
राह में मिल गया एक सियार।
बोला अपना दाँत चियार।
'बुड्ढी तुझको खाऊंगा।
अपनी क्षुधा मिटाऊंगा।'
बुढ़िया ने कहा- 'सुनो सियार!
मैं जाती अपने गाँव
लौटूंगी उलटे पाँव।
जब मैं वापस आऊँगी
तब मुझको खा लेना
अभी बहुते काम है
बाद में क्षुधा मिटा लेना।
सियार का दिल पसीज गया
वह
कुछ सोचा फिर रीझ गया।
बुढ़िया
उसके बाद अपने गाँव गयी। वह थोड़ा परेशान थी। उसके भाई-भतीजे मिले। सबने आशीष लिया।
सबने कुशल क्षेम जाना। भौजाई ने ठिठोली की। भाई ने चिन्ता का कारण पूछा। बुढ़िया ने
सब कहानी कह सुनाई।
तब भाई ने मंगाया एक कद्दू।
एक बड़ा कद्दू।
एक बहुत बड़ा कद्दू।
कद्दू को काटकर बनाई गई एक टमकी।
बुढ़िया उसी में बैठकर वापस लौटी।
वह टमकी गाती थी-
चल टमकिया टामक टुम
कहाँ की बुड्ढी कहाँ की तुम?
टमकी गाती जाती थी-
चल टमकिया टामक टुम
कहाँ की बुड्ढी कहाँ की तुम?
तब बुढ़िया संगत करती और जवाब
देती-
चल टमकिया टामक टुम
छोड़े बुड्ढी सूँघे तुम।
चल टमकिया टामक टुम
छोड़े बुड्ढी सूँघे तुम।
टमकी
लुढ़कते लुढ़कते चली। सियार का डेरा आ गया। वह जबर खुश हो गया। उसने गाना सुना तो
नाचने लगा।- 'आज सुरन्ह मोहि दीन्हि अहारा'...
बुढ़िया
ने कहा- 'सुनो सियार, हमने अपना वचन पूरा
किया है। अब तुम मुझे अपना आहार बना सकते हो। लेकिन अच्छा यह रहेगा कि मैं गंगा
स्नान कर आऊँ। पवित्र हो जाऊँ और आखिरी प्रार्थना भी कर लूं।'
सियार
ने कहा- 'ठीक बात! आई विल वेट!'
बुढ़िया
गंगा स्नान को गयी और जितना नहाया- उससे अधिक समय उसने अपने पिछवाड़े में बालू भरने
में लगाया। जब खूब बालू भर लिया तो आयी। सियार अपने दांत तेज कर चुका था। बुढ़िया
ने अपने को प्रस्तुत करते हुए पूछा- 'सिर की तरफ से
खाओगे या धुसू की तरफ से?'
अब सियार का माथा चकराया।
इसका रहस्य क्या है, उसने हाथ नचाया।
बुढ़िया ने कहा-
जो तीता-तीता खाना है तो सिर की
तरफ से खाओ।
और मीठा मीठा पाना है तो धुसू की
तरफ़ मुंह लाओ।
सियार ने सोचा-इसमें क्या बुरा
है।
अच्छा शिकार है और डेरे में सुरा
है।
तो उसने कहा- धुसू की तरफ से
खाऊँगा।
बुढ़िया ने कहा- तब हो जाओ तैयार।
ज्योंहि सियार ने मुँह लगाया-
बुढ़िया बोली भड़ाम
बालू छोड़ी धड़ाम!
सब
बालू सियार के आंख-मुँह में भर गया। वह रोते बिलखते भागा..
5 टिप्पणियां:
रोचक। गुदगुदाने वाली!
😁😁😁
😁😁🙏🙏
यह कहानी हम सभी भाई दादा जी से अक्सर सुना करते थे सर,जब वे गाते थे तो हमे बड़ा आनंद आता था,आपने बचपन की यादें ताजा कर दी |
मज़ा आ गया।बचपन को एक बार फिर से जी लिए...बहुत खूब सर������������
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