गुरुवार, 6 फ़रवरी 2025

कीर्तिलता : पहली रचना का महत्त्व

विद्यापति : भाग पांच

अपनी पहली रचना कीर्तिलता में विद्यापति ने आश्रयदाता राजा कीर्ति सिंह की कीर्ति कथा की है। इसमें राजा कीर्ति सिंह द्वारा अपने पिता का वध करके राज्य हड़पने वाले अरसलान को पराजित करने और राज्य वापस पाने की कथा है जिसमें जौनपुर के शासक इब्राहिम शाह की सहायता मिली है। इस रचना में विद्यापति ने अपने समय और समाज की गाथा सुनाई है। कीर्तिकथा के बीच-बीच में जौनपुर शहर का वर्णन तद्युगीन समाज का प्रतिबिंब है।

कीर्तिलता में वर्णित नगर जौनपुर ही है। इस रचना में एक ऐसी घटना का संदर्भ है जिसमें ओइनवार राजा, राजा गणेश्वर, को तुर्की सेनापति मलिक अरसलान ने 1371 ई में मार दिया था। 1401ई तक, विद्यापति ने जौनपुर सुल्तान इब्राहिम शाह ने अरसलान को उखाड़ फेंकने और गणेश्वर के पुत्रों, वीरसिंह और कीर्तिसिंह को सिंहासन पर स्थापित करने में योगदान दिया। सुल्तान की सहायता से, अरसलान को हटा दिया गया और सबसे बड़ा पुत्र कीर्ति सिंह मिथिला का शासक बने।

कीर्ति सिंह ने अपनी वीरता से अरसलान को पराजित किया। यह सच्चाई है। इस कृति में नगर वर्णन की चर्चा बारंबार इसलिए होती है क्योंकि नगर की जिस गहमा गहमी की बात उन्होंने की है, वह अद्भुत वर्णन के साथ है। सबसे अधिक मन वैश्याओं के रूप वर्णन में रमा है। रूप वर्णन करते हुए विद्यापति का ध्यान मांसल रूप पर अधिक है। मलिक मोहम्मद जायसी ने पद्मावत में भी यह किया है। रसिकों को आकर्षित करने के लिए यह होता होगा। शिवपूजन सहाय के अनुसार इस रचना के तृतीय पल्लव में पहली बार बिहार शब्द का प्रयोग स्वतंत्र राज्य के रूप में हुआ है।

दूसरे, इस ग्रंथ में जौनपुर के शासक के 'शांतिप्रिय समुदाय वाले' सैनिकों की लुच्चई को भी विद्यापति ने अपने पर्यवेक्षण में छोड़ा नहीं है। यह रचना विद्यापति की पहली कृति है। इसमें चार पल्लव हैं। भृंग भृंगी की कहानी में कीर्ति सिंह "सुपुरिस" हैं। सुपुरुष, अर्थात? सु की व्याख्या अच्छे अर्थ में जितनी कर ली जाए।

यह रचना अवहट्ट में है। विद्यापति देसिल बयना यानी लोक की बोली को मीठा मानते हैं। इसीलिए यह रचना अवहट्ट में हुई।
"देसिल बयना सब जन मिट्ठा।
ते तैसन जम्पओ अवहटट्ठा।।”
काव्य में सरसता का भाव भाषा के माध्यम से भी हो आया है। इसी कृति में विद्यापति ने कहा है कि बाल रूप में चंद्रमा (द्वितीया का चांद) और विद्यापति की भाषा पर दुर्जनों के उपहास का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
बाल चंद विज्जावइ भाषा,
दुहु नहि लग्गइ दुज्जन हासा।

आगामी शृंखला में पदावली की चर्चा करते हुए विद्यापति के प्रिय शब्द "अपरूप" की चर्चा करेंगे। यह शब्द उन्होंने राधा और कृष्ण दोनों के लिए किया है।

कीर्तिलता : पहली रचना का महत्त्व


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विद्यापति : भाग पांच

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