गुरुवार, 6 फ़रवरी 2025

विद्यापति : रचनाएं

   विद्यापति : भाग चार

      वैसे तो विद्यापति की तीन कृतियों, कीर्तिलता, कीर्तिपताका और पदावली की ही चर्चा होती है लेकिन हम उनकी पुस्तक "पुरुष परीक्षा" से आरंभ करेंगे। यह विद्यापति की तीसरी पोथी है जिसको लिखने की आज्ञा शिव सिंह ने दी थी। यह धार्मिक और राजनीतिक विषय पर कथाओं की पोथी है। ध्यान रहे कि इसमें भी शृंगार विस्मृत नहीं है। पुरुष परीक्षा नामक पोथी का बहुत आदर है। सन 1830 में इसका अंग्रेजी अनुवाद हुआ और प्रसिद्ध फोर्ट विलियम कॉलेज में यह पढ़ाई जाती थी। बंगला के प्राध्यापक हर प्रसाद राय ने 1815 ई० में इसका भाषानुवाद किया।

कीर्तिलता विद्यापति की प्रथम रचना है। प्राकृत मिश्रित मैथिली, जिसे उन्होंने अवहट्ट नाम दिया है, में राजा कीर्तिसिंह प्रमुख हैं। इसी में विद्यापति ने "देसी बोली सबको मीठी लगती है" जैसा सिद्धांत प्रतिपादित किया है - देसिल बयना सब जन मिट्ठा! इस रचना में जौनपुर का वर्णन है। मेरे मित्र सुशांत झा ने विद्वानों के हवाले से बताया है कि यह जौनपुर असल में जौनापुर है, जो दिल्ली अथवा उसके निकट का कोई उपनगर है। अगली कड़ी में इस पर स्वतंत्र रूप से लिखेंगे।

दूसरी पोथी नैतिक कहानियों की है- भू परिक्रमा शीर्षक से। चौथी कृति कीर्तिपताका है। इसमें प्रेम कविताएं हैं। पांचवीं लिखनावली है जिसमें चिट्ठी लिखने की विधि बताई गई है। शिवार्चन पर संस्कृत में रचित 'शैवसर्वस्वसार' एक पूर्ण पुस्तक है, जिसमें विविध पुराणों के आधार पर शिवार्चन की पद्धति बतायी गयी है।

संस्कृत कृतियों में विभासागर, दान वाक्यावली, पुराणसंग्रह, गंगा वाक्यावली, दुर्गाभक्ति, तरंगिनी, मणिमंजरी, गयापत्तलक, वर्णकृत्य तथा व्यादिभाक्ति, विभाग सार आदि विद्यापति की अन्य प्रमुख कृतियां हैं जो उनकी विद्वता का परिचय देती हैं।

इन सबसे ऊपर है- पदावली! यही विद्यापति की लोकप्रियता का आधार और लंब सब कुछ है। इसमें गेय पद हैं, राग रागिनियों में आबद्ध। हम इसे केंद्र में रखकर आगे चर्चा करेंगे और कुछ सरस पदों की व्याख्या भी।
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विद्यापति : चार
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