महाकुंभ में मौनी अमावस्या के दिन हुई
दुर्भाग्यपूर्ण घटना ने समूचे देश को क्षुब्ध कर दिया। उत्तर प्रदेश सरकार के
पुख्ता इंतजामों के बावजूद ऐसी अप्रिय घटना हो जाना हृदयविदारक है। इस घटना के बाद
जहाँ सरकार ने कुम्भ नियमों में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं वहीं ट्रैफिक व्यवस्था
में सहयोग हेतु राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सोलह हजार स्वयंसेवकों ने भी पुलिस के
साथ सहयोग करने का फैसला लिया है। इस निर्णय की चारों तरफ प्रशंसा हो रही है,जो संघ की देश एवं समाज के प्रति प्रतिबद्धता
को भी दर्शाता है।
इस साल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना को
सौ साल पूरा हो जाएगा। बीते सौ सालों में संघ ने कई उत्तर-चढ़ाव देखे हैं हालांकि
किसी भी तरह की नकारात्मकता को त्यागकर संघ ने प्रत्येक मौके पर देश की जरूरत में
हाथ बँटाया है,जिससे संघ की प्रासंगिकता एवं
लोकप्रियता में कभी गिरावट नहीं आयी ।स्थापना की एक शताब्दी बाद भी किसी संगठन की
वैचारिकी एवं प्रतिबद्धता में दृढ़ता का उदाहरण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अलावा
समूचे विश्व में विरले ही मिलेगा। उपर्युक्त कथन की विवेचना करने पर आभास होता है
कि संघ ने इन सौ सालों में समाज की जरूरत के हिसाब से बदलाव में सफलता पाई है।
बदलाव के इस दौर में संघ ने मूलभूत भारतीय मूल्यों के साथ समझौता नहीं किया और
भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के बचाव में एक मजबूत स्तंभ बनकर खड़ा रहा। संघ के सौ
सालों के इतिहास में ऐसे कई कारक हैं जो इस संगठन एवं इसके कार्यकर्ताओं को खास
बनाते हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने विकसित भारत की
परिकल्पना में शिक्षा के भारतीयकरण के महत्व को समझा तथा इस दिशा में व्यापक कार्य
किये। वर्तमान समय में संघ द्वारा संचालित हजारों स्कूल जातीय एवं धार्मिक भेदभाव
रहित शिक्षा प्रदान कर रहे हैं तथा सशक्त भारत के निर्माण में अपना योगदान दे रहे
हैं। इसके अलावा प्राकृतिक आपदाओं के समय
संघ ने सुरक्षा बलों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य किया। 2013 में उत्तराखंड के केदारनाथ में आई भारी तबाही
के वक्त संघ ने राहत कार्यों में भरपूर सहयोग किया था। आरएसएस कार्यकर्ताओं के लिए
संवेदनशील राज्य केरल में आई बाढ़ के वक्त स्वयंसेवकों के बचाव कार्यों की चारों ओर
प्रशंसा हुई थी। कोविड-19 जैसी वैश्विक महामारी के बीच भी
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों के
सेवार्थ कार्य किया। इस दौरान कोरोना वायरस से कई स्वयंसेवकों की जान भी गई किंतु
उनके हौसलों में कमी नहीं आई।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ स्वास्थ्य के क्षेत्र
में भी सक्रिय रहा है। संघ ने स्वास्थ्य कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए कई पहल
की है। संघ के विभिन्न प्रकल्पों जैसे सेवा भारती इत्यादि की स्वास्थ्य के क्षेत्र
में सक्रिय भागीदारी रही है। जिसने समय-समय पर स्वास्थ्य शिविरों के आयोजन से लेकर
शहरी झोपड़-पट्टियों, आदिवासी समुदायों एवं समाज के कमजोर
वर्ग के लिए कार्य किया है।
आरएसएस ने महिला सशक्तिकरण के महत्व को समझते
हुए ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते,रमन्ते
तत्र देवता’ के तहत बीते कुछ सालों से महिलाओं के शिक्षा,बेहतर स्वास्थ्य एवं सुरक्षा की दिशा में
कार्यों का निष्पादन किया है। संघ द्वारा मार्गदर्शित भाजपा सरकार ने उज्ज्वला
योजना, ड्रोन दीदी एवं तीन तलाक खत्म करने
जैसे क्रांतिकारी कार्यों को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है।
इसके अलावा भी भिन्न-भिन्न स्थानों पर समय एवं
जरूरत को देखते हुए रक्तदान शिविरों का आयोजन,सामूहिक
एवं सर्वजातीय विवाह,कौशल प्रशिक्षण एवं विभिन्न जागरूकता
कार्यक्रमों का सफल आयोजन एवं उनके उच्च प्रबंधन आरएसएस एवं उसके प्रकल्पों के
महत्वपूर्ण कार्य हैं। आधुनिक भारतीय समाज में जातीय विभेद गहनता से देखने को
मिलता है जिस जातीय भेद को तोड़ने की पृष्ठभूमि भी आरएसएस ने तैयार किया है जहाँ
सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने हेतु पक्षपातरहित कार्यक्रमों का आयोजन होता है
सामूहिक भोज के वक्त जात-पात तथा ऊंच-नीच के भेद टूट जाते हैं एवं कार्य का
निष्पादन एक-दूसरे की सहायता से सम्पन्न होते हैं। अनुशासन एवं समयबद्धता का आचरण
भी आरएसएस के कार्यकर्ताओं में सामान्यतः देखा जा सकता है। इसे देखकर 1934 में महाराष्ट्र के वर्धा में आरएसएस के शिविर
का दौरा करने के दौरान गांधी जी ने आरएसएस की खूब प्रशंसा की थी। बाद में, उन्होंने 16
सितंबर 1947 को दिल्ली में स्वीपर्स कॉलोनी में
आरएसएस की एक बैठक को संबोधित भी किया।
स्वयंसेवक शब्द का शाब्दिक अर्थ निःस्वार्थ
भावना से दूसरों की सेवा करना होता है। डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा 1925 में स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने
स्थापना के समय हिन्दू समाज को मजबूत बनाने एवं उसमें सामाजिक,आर्थिक,सांस्कृतिक,धार्मिक एवं राजनीतिक मूल्यों के विस्तार तथा
समाज के विभिन्न चुनौतियों के प्रति सचेत रहने हेतु सशक्त एवं एकजुट होने पर जोर
दिया। जिन मूल्यों के निष्पादन हेतु संघ की स्थापना की गई उन मूल्यों पर आज भी
गंभीरता से अमल किया जा रहा है। वर्तमान समय मे भी संघ की प्रगतिवादी सोच ने
प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का संरक्षण करते हुए आधुनिकता को आत्मसात किया
है। संघ के विभिन्न आनुषंगिक संगठन समाज एवं राष्ट्र के प्रत्येक क्षेत्र में अपना
योगदान दे रहे हैं एवं भारतीय जनमानस में राष्ट्रवाद की भावना को प्रज्ज्वलित कर
रहे हैं। यही कारण है कि संघ की स्थापना के दौर में जहाँ एक तरफ अनेक संस्थाएं बनी
जो समय के साथ कदमताल मिला पाने में असफल रहीं एवं अपने मूल्यों के साथ समझौता
करके वैचारिक रूप से नष्ट हो गईं,
वहीं दूसरी तरफ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने मूल्यों को बचाये रखा तथा समाज मे
प्रगति का सकारात्मक द्वीप जलाए रखा जिससे संघ की प्रासंगिकता आज भी बरकरार है।
पीयूष कान्त राय
शोध छात्र, फ्रेंच साहित्य
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय
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