गुरुवार, 6 फ़रवरी 2025

ए सखि पेखल एक अपरूप!

विद्यापति : भाग- सात

हमने बताया है कि विद्यापति के अपरूप वर्णन में ध्यान कच, कुच, कटि पर टिक गया है। पीन पयोधर दूबरी गता और नितंब पर वह मुग्ध हैं। जहां मिलन, संयोग का प्रसंग है वहां राधा आश्रय हैं। वह कृष्ण से उनके मिलन का प्रसंग निकालते हैं। मिलना होता है। दर्शन पाने के बाद कृष्ण व्यथित से, उद्विग्न हैं। सजनी को अच्छी तरह देख न पाया!

ए सखि पेखल एक अपरूप!

सजनी भल कए पेखल न भेल।
फिर सजनी के उन्हीं अंग प्रत्यंग का उल्लेख है। "चंचल पवन के चकोर से वस्त्र गिर गया। अचानक राधा की सुचिक्कन देहयष्टि दिखाई पड़ गई। केशपाश से घिरी हुई वह देहयष्टि, लगा जैसे नए श्याम जलधार के नीचे बिजली की रेखा चल रही है।* इस गजगामिनी कामिनी को देख श्रीकृष्ण कहते हैं - उसके चरणों का जावक, मेरे हृदय को पावक की तरह दग्ध कर रहा है- "चरन जावक हृदय पावक, दहय सब अंग मोर।" चरणों का जावक, आलता। वह लाल रंग जिसे महावर की तरह प्रयुक्त करते हैं, को देखकर उनका अंग अंग जलता है। लाल रंग का कितना सुघड़ बिम्ब है।

और राधा! वह तो हर क्षण कुछ अद्भुत करती हैं। कभी तिरछी नजर से देखती हैं तो कभी अपना वस्त्र संभालती हैं। अनायास ही।
खने खने नयन कोन अनुसरई।
खने खने वसन धूलि तनु भरई।।
वह बायां पैर रखती हैं और दाहिना उठाती हैं तो लज्जा होती है। क्यों? रूप की राशि जैसे खनक जाती है। कृष्ण को देखने के बाद राधा व्यग्र हो उठती हैं। विद्यापति लिखते हैं -
नगर के बाहर न जाने कितने लोग आते जाते हैं, कृष्ण की ओर देखते हैं। एक मेरा देखना सबको चुभता है?
पुर बाहर पथ करत गतागत
के नहिं हेरय कान।
तोहर कुसुम सर कतहुं न संचर
हमर हृदय पेंच बान।।

राधा ऐसी हैं कि उन्होंने अपनी कटाक्ष से कन्हाई को कीन लिया है।

विद्यापति के पद पढ़कर, उन्हें प्रत्यक्ष कल्पित कर ही इस आनंद की कल्पना हो सकती है। मिलन के प्रसंग इतने रसीले और मादक हैं कि झूम जाएं।

पुर बाहर कत करत गतागत

पहले भी कहा था हमने कि संयोग के प्रसंग में विद्यापति अति प्रगल्भ हैं। यह प्रगल्भता अंतरंग क्षणों में चुकती नहीं। राधा कृष्ण को देखकर पुलकित हो उठती हैं। इस पुलक में "चूनि चूनि भए कांचुअ फाटलि, बाहु बलआ भांगु।" वाणी कंपित हो गई है, बोली नहीं फूटती। वह रति प्रसंग का वर्णन सखियों में करती हैं -
जब नीवी बंध खसाओल कान
तोहर शपथ हम किछु जदी जान।

विद्यापति के यहां प्रेम का इतना सरस और उन्मुक्त वर्णन उन्हें घोर शृंगारी बनाता है। इस शृंगार के रस का अवगाहन कोई कोई ही कर पाता है।

कल कुछ दूसरे पदों की सहायता से इस शृंगार के वियोग पक्ष को स्पष्ट करेंगे।

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