श्री हनुमान चालीसा में हनुमान जी की वंदना करते हुए तुलसीदास जी ने कहा है कि हनुमान जी के यश का गान हजारों मुख करते हैं। अर्थात असंख्य लोग हनुमान जी के प्रति श्रद्धा और पूज्य भाव रखते हैं। यहां "यश गावैं" पद अति विशिष्ट है। यशो गान तब होगा, जब आदर और श्रद्धा की मात्रा अधिक होगी। हजारों लोग हनुमान जी की प्रशंसा करते रहते हैं, यह कहकर श्रीपति भगवान राम, हनुमानजी को अपने गले से लगा लेते हैं। भगवान राम को याद करते हुए उन्हें श्रीपति कहा गया है। श्री का सामान्य अर्थ लक्ष्मी है लेकिन लाक्षणिक अर्थ में धन, धान्य, समृद्धि, शोभा और ऐश्वर्य! भगवान श्रीराम इस सबके भी स्वामी हैं।
श्री हनुमान चालीसा की इस चौपाई में हनुमान जी की लोकप्रियता का बखान है और इस लोकप्रियता का एक लाभ है, भगवान श्रीराम का सानिध्य!
इस चौपाई में हनुमान जी का यशोगान करने के क्रम में उन सभी मुनियों, देवताओं को याद किया गया है जो वाणी के हस्ताक्षर हैं अर्थात जिनकी वाणी में तेज और अर्थ है तथा जिनको त्रिकाल का ज्ञान है। इसमें ब्रह्मा के पुत्र सनकादि का उल्लेख है। परमपिता ब्रह्मा के चार पुत्र हैं - सनक, सनंदन, सनातन और सनत कुमार। यह सब मुनि मंत्रद्रष्टा हैं। इन मुनियों के साथ साथ देवर्षि नारद, साक्षात् सरस्वती और अहीसा शेषनाग जी, जो अहि अर्थात सर्पों के प्रधान हैं, भी हनुमान जी के गुणों की प्रशंसा करते हैं।
तुलसीदास जी ने ब्रह्मा जी के चार पुत्र, सनक, सनंदन, सनातन और सनत कुमार का उल्लेख जिस प्रकार एक शब्द में कर दिया है, वह उनकी सामासिक पद प्रयोग की क्षमता का परिचायक है। अतः यह कहा जा सकता है कि श्री हनुमान चालीसा हनुमान जी का कवित्वपूर्ण आख्यान है।
इसके बाद वाली चौपाई में यशोगान का यह क्रम पूरा होता है जहां कहा गया है कि यह सब लोग भी हनुमान जी के गुणों का संपूर्ण व्याख्यान नहीं कर पाते हैं।
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