श्री हनुमान चालीसा की इस चौपाई में हनुमान जी के दो रूप, सूक्ष्म और विकट की चर्चा है। सिद्धियों के प्रभाव से हनुमान जी अपना रूप मनचाहा धर सकते हैं। जब वह सीताजी का पता लगाने के क्रम में लंका में पहुंचे तो सुरक्षा कारणों से वह सीता जी के पास सूक्ष्म रूप में पहुंचे। इससे पहले वह मसक समान रूप धारण कर चुके थे, जब लंकिनी से साक्षात् हुआ था। वहीं उन्होंने सुरसा के निकट अपना रूप विस्तार किया था।
सूक्ष्म रूप देखकर श्री जानकी जी को एक बार संदेह भी हुआ तब हनुमान जी ने अपना "भूधराकार शरीर" दिखाया। फिर तो उन्हें आशीर्वाद मिला, आठ सिद्धि और नौ निधि प्रदान करने वाले स्वामी का। हनुमान जी का एक विकट रूप लंका में दिखा जब रावण ने "अंग भंग करि पठियऊ बंदर" का आदेश दिया तो हनुमान जी ने अपना रूप विस्तार किया। उनकी पूंछ में लगाई गई आग ने समूची लंका को जला दिया। इस एक कदम से लंका के निशाचरों में जो भय व्याप्त हुआ, वह कभी गया ही नहीं। स्वयं रावण भी मानता था कि वानरों में हनुमान बलशाली हैं।आशय यह कि हनुमान जी आवश्यकता अनुरूप विविध रूप धारण कर कार्यों में सफल होते हैं।
इस चौपाई में उनके भीम रूप धारण कर असुरों का संहार करने की चर्चा है। भीम रूप अर्थात विशाल स्वरूप में। भीम का अर्थ विशाल, बड़ा है। हनुमान जी लंका में प्रवेश के साथ ही असुरों का मर्दन आरम्भ कर देते हैं। "मुठिका एक महाकपि हनी।" से लेकर अक्षय कुमार के संहार तक वह लंका में भय का पर्याय बन चुके हैं। युद्ध में तो वह अपने मुष्टिका प्रहार से रावण तक को मूर्छित कर देते हैं।
हनुमान जी ने विविध स्वरूप में आकर कौतुक नहीं किया और न ही धाक जमाने के लिए चमत्कार। उनका एक ही उद्देश्य है, भगवान श्रीरामचन्द्र जी का कार्य संवारना।और भगवान श्रीराम का काम क्या है? असुरों का संहार कर धर्म की प्रतिष्ठा करना। धर्म की प्रतिष्ठा के लिए आवश्यक है कि आसुरी शक्तियों पर नियंत्रण हो, उनका उन्मूलन हो। हनुमान जी महाराज इस कार्य में भगवान श्रीराम के सबसे बड़े सहायक हैं। इस चौपाई में हनुमान जी के इस योगदान को रेखांकित कर भगवान श्रीराम की वंदना भी कर ली गई है। वस्तुतः भगवान श्रीराम का अवतार ही धर्म की संस्थापना के निमित्त हुआ था। हनुमान जी इस महत् कार्य के सबसे बड़े सहयोगी हैं।
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