शनिवार, 28 दिसंबर 2024

श्री हनुमान चालीसा शृंखला :छठी चौपाई

लाय संजीवन लखन जियाए।
श्री रघुवीर हरषि उर लाए।।
रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।

श्री हनुमान चालीसा शृंखला :छठी चौपाई

छठी चौपाई
भाग - 8
श्री हनुमान चालीसा शृंखला

श्री हनुमान चालीसा में हनुमान जी के सर्वाधिक बड़े कामों में से एक संजीवनी बूटी लाने को रेखांकित किया गया है। मेघनाद से युद्ध के क्रम में शेषावतार लक्ष्मण को शक्ति लग जाती है। हनुमान जी ने लंका प्रवेश के क्रम में ही "मंदिर मंदिर प्रतिकर सोधा" करके नगर की संरचना का ज्ञान कर लिया था। वह विभीषण के कहने पर सुषेण वैद्य को ले आते हैं। उनके निर्देश पर संजीवनी लाना होता है।

संजीवनी कहां है? इस विषय पर विद्वान एकमत हैं कि संजीवनी बूटी द्रोणगिरी पर्वत पर थी। यह वर्तमान उत्तराखंड में है। अर्धरात्रि के समय हनुमान जी इस वनस्पति को पहचान नहीं पा रहे थे। तब उन्होंने द्रोणागिरी पर्वत का एक हिस्सा उखाड़ लिया था और इस हिस्से को लंका ले गए थे। इस विशेष उपक्रम से लक्ष्मण जी की मूर्छा भंग हुई और एक बड़ा संकट टल गया।

भगवान श्रीराम लक्ष्मण के शक्ति बाण लगने से बहुत निराश और व्यथित हो गए थे। तुलसीदास जी ने उनके विलाप का मार्मिक वर्णन कवितावली में किया है। लक्ष्मण के मूर्छित होने पर वह स्वयं के पुरुषार्थ के थकने की व्यथा बताते हैं - मेरो सब पुरुषारथ थाको! इसलिए जब हनुमान जी के प्रयास से लक्ष्मण उठ बैठे तो रघुवीर भगवान श्रीराम ने उन्हें अपने हृदय से लगा लिया।

इस चौपाई में तुलसीदास जी ने हनुमान और श्रीराम के एकत्व को निरूपित किया है। सीता जी का पता लगाना, लंका दहन के बाद संजीवनी बूटी लाना क्रमशः अत्यधिक महत्व के काम हैं। यह सब हनुमान चालीसा में अभिव्यक्त हुआ है। इस अभिव्यक्ति का उद्देश्य हनुमान जी की महानता प्रदर्शित करना है।

हनुमान जी के योगदान से प्रसन्न होकर भगवान श्रीराम ने उनकी बहुत प्रशंसा की। इस चौपाई में आता है कि हनुमान जी की भूरि भूरि प्रशंसा भगवान श्रीराम ने की और उन्हें भरत समान भाई माना। अव्वल तो भगवत कृपा मिलना कठिन है, यदि मिल जाए तो भगवान का सानिध्य मिलना दुर्लभ। हनुमान जी की विशिष्टता यह है कि उन्हें भगवान श्रीराम ने भरत समान भाई माना।

भरत समान ही क्यों? तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस में भगवान श्रीराम की भरत के प्रति भावना का कुछ परिचय दिया है। जब लक्ष्मण उद्धत होते हैं कि भरत सैन्य बल समेत वन क्षेत्र में भी आ गए हैं तो श्रीराम उन्हें समझाते हैं -
भरतहि होइ न राजमद, बिधि हरि हर पद पाई!
(भरत को कभी राज सत्ता का अहंकार नहीं हो सकता, चाहे उन्हें त्रिदेवों का पद भी क्यों न मिल जाए।) इस आलोक में देखें तो हनुमान जी को भरत समान भाई कहना बहुत बड़ा सम्मान है। हनुमान जी को मिलने वाला यह सम्मान शैव और वैष्णव मतानुयायी लोगों के मध्य आपसी सौहार्द और प्रेम की भी सूचना देता है।

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