#चार_आम पर मेरी कालजयी कविता पढ़िए- #चार_आम
सुबह हुई, नाश्ते में मार दिए चार आम
और थोड़ा दिन चढ़ा तो नाप दिए चार आम।
दोपहर में भोजन के साथ लिए चार आम
जब थोड़ा लेटे तो सपने में चार आम।
शाम को आम आम कह कह के चार आम।
गदबेला में राम राम कह कह के चार आम।
रात को भिगो दिए बाल्टी में चार आम
और रात बीती तो चू गए चार आम।
हरे राम हरे राम कहकह के चार आम
हुए थोड़ा दक्खिन से वाम तो चार आम।
पका आम देखा तो चिंचोड़ दिए चार आम
मार दिया पालथी, निचोड़ दिए चार आम।
कथावार्ता : सांस्कृतिक पाठ का गवाक्ष |
- डॉ रमाकान्त राय
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